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Saturday, May 22, 2010

Fwd: My objections: caste and the census



---------- Forwarded message ----------
From: dilip mandal <dilipcmandal@gmail.com>
Date: 2010/5/22
Subject: Re: My objections: caste and the census
To: Yogendra Yadav <yogendra.yadav3@gmail.com>, Satish Deshpande <sdeshpande7@gmail.com>, JANHIT ABHIYAN <janhitabhiyan@gmail.com>, "Sushma_iipa@yahoo.co.in" <Sushma_iipa@yahoo.co.in>, "rakeshyadav123@yahoo.com" <rakeshyadav123@yahoo.com>, "csyadavortho@gmail.com" <csyadavortho@gmail.com>, "yogendra.yadav@gmail.com" <yogendra.yadav@gmail.com>, "surendramohan1@gmail.com" <surendramohan1@gmail.com>, "rakeshnbt99@gmail.com" <rakeshnbt99@gmail.com>, "anilthakurthakur@gmail.com" <anilthakurthakur@gmail.com>, "nikhildey@gmail.com" <nikhildey@gmail.com>, "arunaray@gmail.com" <arunaray@gmail.com>, "shyamsalona@indiatimes.com" <shyamsalona@indiatimes.com>, "shekharsingh@gmail.com" <shekharsingh@gmail.com>, "ranbir33@gmail.com" <ranbir33@gmail.com>, "someshgupta@hotmail.com" <someshgupta@hotmail.com>, "kpyd@yahoo.com" <kpyd@yahoo.com>, "manak.publications@gmail.com" <manak.publications@gmail.com>, urmilesh urmil <urmilesh.urmil@yahoo.co.in>, "jitenykumar@gmail.com" <jitenykumar@gmail.com>, anil chamadia <namwale@gmail.com>, "arvindmohan2000@yahoo.com" <arvindmohan2000@yahoo.com>, "pioneercbp@yahoo.com" <pioneercbp@yahoo.com>, "d.ram" <d.ram@rediffmail.com>, GangaSahay Meena <gsmeena.jnu@gmail.com>, harimohan mishra <harimohan.mishra@gmail.com>, jugnu shardeya <jshardeya@gmail.com>, "jaishankargupta@gmail.com" <jaishankargupta@gmail.com>, Kaushalendra Yadav <yadavkaushalendra@yahoo.in>, Raj Kishore <raajkishore@gmail.com>, "kpmeena_jnu@yahoo.in" <kpmeena_jnu@yahoo.in>, "h.l dusadh bahujandiversitymission" <hl.dusadh@gmail.com>, Aflatoon Swati <aflatoon@gmail.com>, "nikhil.anand20@gmail.com" <nikhil.anand20@gmail.com>, satyendra Ranjan <satyendra.ranjan@gmail.com>, प्रमोद रंजन <pramodrnjn@gmail.com>, "jite.jnu20@yahoo.com" <jite.jnu20@yahoo.com>, benil biswas <sweetbinu4u@gmail.com>, mrityunjay prabhakar <mrityunjay.prabhakar@gmail.com>, "paswan_rajesh@yahoo.co.in" <paswan_rajesh@yahoo.co.in>, umraosingh jatav <jatavumraosinghwetelo@gmail.com>, ashutosh@network18online.com, medha pushkar <medhaonline@gmail.com>, vbrawat@gmail.com, sheorajsinghbechain@gmail.com, Palash Biswas <palashbiswaskl@gmail.com>, Rakesh Singh <rakeshjee@gmail.com>, vineet kumar <vineetdu@gmail.com>, avinash das <avinashonly@gmail.com>, reyaz-ul-haque <beingred@gmail.com>, jaishankargupta@lokmat.com, jai yadav <jpy30@yahoo.com>, rsachan@jagran.com, Shyamlal Yadav <shyamlal.yadav@intoday.com>


जनगणना-2011 में सभी जातियों-समुदायों की गिनती के पक्ष में हम क्यों हैं

 

प्रो.डी. प्रेमपति, मस्तराम कपूर, राजकिशोर, उर्मिलेश, प्रो. चमनलाल, नागेन्दर शर्मा, जयशंकर गुप्ता, डा. निशात कैसर, श्रीकांत और दिलीप मंडल द्वारा जारी आलेख


देश में 80 साल बाद एक बार फिर से जाति-आधारित जनगणना की संभावना बन रही है। संसद के बजट सत्र के दूसरे चरण की अंतिम बैठकों में जनगणना में अनुसूचित जाति-जनजाति और धार्मिक समुदायों की तरह अन्य जातियों की भी गणना किए जाने की पुरजोर ढंग से मांग उठी। बहस के दौरान इस पर सदन में लगभग सर्वानुमति सी बन गई, जिसकी सरकार ने कल्पना तक नहीं की थी। सभी प्रमुख दलों के सांसदों ने माना कि जाति भारतीय समाज की एक ऐसी सच्चाई है, जिससे भागकर या नजरें चुराकर जातिवाद जैसी बुराई का खात्मा नहीं किया जा सकता है। सामाजिक न्याय, एफर्मेटिव एक्शन और सामाजिक समरसता के लिए जाति-समुदायों से जुड़े ठोस आंकड़ों और सही कार्यक्रमों की जरुरत है। यह तभी संभव होगा, जब जनगणना के दौरान जातियों की स्थिति के सही और अद्यतन आंकड़े सामने आएं। 
पता नहीं क्यों, ससंद और उसके बाहर सरकार दरा इस बाबत दिए सकारात्मक आश्वासन और संकेतों के बाद कुछ लोगों, समूहों और मीडिया के एक हिस्से में जाति-आधारित जनगणना की धारणा का विरोध शुरू हो गया। हम ऐसे लोगों और समूहों के विरोध-आलोचना का निरादर नहीं करते। लोकतंत्र में सबको अपनी आवाज रखने का अधिकार है। पर ऐसे मसलों पर सार्थक बहस होनी चाहिए, ठोस तर्क आने चाहिए। किसी संभावित प्रक्रिया के बारे में जल्दबाजी में निष्कर्ष निकालने और फतवे देने का सिलसिला हमारे लोकतंत्र को मजबूत नहीं करेगा। सरकार पर एकतरफा ढंग से दबाव बनाने की ऐसी कोशिश जनता के व्यापक हिस्से और संसद में उभरी सर्वानुमति का भी निषेध करती है। बहरहाल, हम जाति-आधारित जनगणना पर हर बहस के लिए तैयार हैं। अब तक उठे सवालों की रोशनी में जाति-गणना से जुड़े कुछ उलझे सवालों पर हम संक्षेप में अपनी बात रख रहे हैं-


1-
जनगणना में अनुसूचित जाति-जनजाति और धार्मिक-समूहों की गिनती हमेशा से होती आ रही है। सन 1931 और उससे पहले की जनगणनाओं में हर जाति-समुदाय की गिनती होती थी। सन 1941 में दूसरे विश्वयुद्ध के चलते भारतीय जनगणना व्यापक पैमाने पर नहीं कराई जा सकी और इस तरह जातियों की व्यापक-गणना का सिलसिला टूट गया। आजादी के बाद भारत सरकार ने तय किया कि अनुसूजित जाति-जनजाति के अलावा अन्य जातियों की गणना न कराई जाए। पिछली जनगणना में भी ऐसा ही हुआ, सिर्फ एससी-एसटी और प्रमुख धार्मिक समुदायों की गणना की गई थी। पर इसके लिए कोई ठोस तर्क नहीं दिया गया कि अनुसूचित जाति-जनजाति और धार्मिक समूहों की गणना के साथ अन्य जातियों की गिनती कराने में क्या समस्या है।़ हमें लगता है कि आज संसद में बनी व्यापक सहमति के बाद वह वक्त आ गया है, जब जनगणना के दौरान फिर से सभी जातियों-समुदायों की गिनती कराई जाए। सिर्फ ओबीसी नहीं, अन्य सभी समुदायों को भी इस गणना में शामिल किया जाय। भारतीय समाज के समाजशास्त्रीय-नृतत्वशास्त्रीय अध्ययन के सिलसिले में भी जनगणना से उभरी सूचनाएं बेहद कारगर और मददगार साबित होंगी।


2-
समाज को बेहतर, सामाजिक-आर्थिक रूप से उन्नत और खुशहाल बनाने के लिए शासन की तरफ से सामाजिक न्याय, समरसता और एफर्मेटिव-एक्शन की जरूरत पर लगातार बल दिया जा रहा है। ऐसे में सामाजिक समूहों, जातियों और विभिन्न समुदायों के बारे में अद्यतन आंकड़े और अन्य सूचनाएं भी जरूरी हैं। जातियों की स्थिति को भुलाने या उनके मौजूदा सामाजिक-अस्तित्व को इंकार करने से किसी मसले का समाधान नहीं होने वाला है। 


3-
कुछेक लोगों और टिप्पणीकारों ने आशंका प्रकट की है कि जाति-गणना से समाज में जातिवाद और समुदायों के बीच परस्पर विद्वेष बढ़ जाएगा। यह आशंका इसलिए निराधार है कि अब तक अनुसूचित जाति-जनजाति और धार्मिक समूहों की गिनती होती आ रही है, पर इस वजह से देश के किसी भी कोने में जातिगत-विद्वेष या धार्मिक-संाप्रदायिक दंगे भड़कने का कोई मामला सामने नहीं आया। जातिवाद और सांप्रदायिक दंगों के लिए अन्य कारण और कारक जिम्मेदार रहे हैं, जिसकी समाजशास्त्रियों, मीडिया और अन्य संस्थानों से जुड़े विशेषज्ञों ने लगातार शिनाख्त की है।


4-
जनगणना की प्रक्रिया और पद्धति पर सवाल उठाते हुए कुछेक क्षेत्रों में सवाल उठाए गए हैं कि आमतौर पर जनगणना में शिक्षक भाग लेते हैं। ऐसे में वे जाति की गणना में गलतियां कर सकते हैं। यह बेहद लचर तर्क है। जनगणना में आमतौर पर जो शिक्षक भाग लेते हैं, वे स्थानीय होते हैं। जाति-समाज के बारे में उनसे बेहतर कौन जानेगा।

 
5-
कुछेक टिप्पणीकारों ने यह तक कह दिया कि दुनिया के किसी भी विकसित या विकासशील देश में जाति, समुदाय, नस्ल या सामाजिक-धार्मिक समूहों की गणना नहीं की जाती। अब इस अज्ञानता पर क्या कहें।़ पहली बात तो यह कि भारत जैसी जाति-व्यवस्था दुनिया के अन्य विकसित देशों में नहीं है। पर अलग-अलग ढंग के सामाजिक-समूह, एथनिक-ग्रुप और धार्मिक-भाषायी आधार पर बने जातीय-समूह दुनिया भर में हैं। ज्यादातर देशों की जनगणना में बाकायदा उनकी गिनती की जाती है। अमेरिका की जनगणना में अश्वेत, हिस्पैनिक, नैटिव इंडियन और एशियन जैसे समूहों की गणना की जाती है। विकास कार्यक्रमों के लिए इन आंकड़ों का इस्तेमाल भी किया  जाता है। यूरोप के भी अनेक देशों में ऐसा होता है। 


6-
एक तर्क यह भी दिया जा रहा है कि जनगणना तो अब शुरू हो गई है, ऐसे में जाति की गणना इस बार संभव नहीं हो सकेगी। मीडिया के एक हिस्से में भी इस तरह की बातें कही गईं। पर इस तरह के तर्क जनगणना सम्बन्धी बुनियादी सूचना के अभाव में या लोगों के बीच भ्रम फैलाने के मकसद से दिए जा रहे हैं। जनगणना-कार्यक्रम के मौजूदा दौर में अभी मकानों-भवनों आदि के बारे में सूचना एकत्र की जा रही है। आबादी के स्वरूप और संख्या आदि की गणना तो अगले साल यानी 2011 के पहले तिमाही में पूरी की जानी है। इसके लिए फरवरी-मार्च के बीच का समय तय किया गया है। ऐसे में जाति-गणना की तैयारी के लिए अभी पर्याप्त वक्त है। 

7-जनगणना में अनुसूचित जाति-जनजाति और धार्मिक समुदायों की गणना पहले से होती आ रही है। इस बार से अन्य सभी जातियों, समुदायों और धार्मिक समूहों की गणना हो। इससे जरूरी आंकड़े सामने आएंगे। इन सूचनाओं से समाज को बेहतर, संतुलित और समरस बनाने के प्रयासों को मदद मिलेगी।

 


On Fri, May 21, 2010 at 11:10 AM, Ashutosh (IBN7) <ashutosh@network18online.com> wrote:

The problem with Identity politics is its never identity neutral . same with caste . There are very few neutral voices whose analysis and observation is not influenced or guided by the identity of the person to which he or she belongs . After sixty years of independent it is expected from the intellectuals to be a dispassionate observer and remain caste neutral while building an argument for or against the caste census .  

 


From: dilip mandal [mailto:dilipcmandal@gmail.com]
Sent: 21
मई 2010 10:37
To: Yogendra Yadav
Cc: Ashutosh (IBN7); Satish Deshpande; JANHIT ABHIYAN; Sushma_iipa@yahoo.co.in; rakeshyadav123@yahoo.com; csyadavortho@gmail.com; yogendra.yadav@gmail.com; surendramohan1@gmail.com; rakeshnbt99@gmail.com; anilthakurthakur@gmail.com; nikhildey@gmail.com; arunaray@gmail.com; shyamsalona@indiatimes.com; shekharsingh@gmail.com; ranbir33@gmail.com; someshgupta@hotmail.com; kpyd@yahoo.com; manak.publications@gmail.com; urmilesh urmil; jitenykumar@gmail.com; anil chamadia; arvindmohan2000@yahoo.com; pioneercbp@yahoo.com; d.ram; GangaSahay Meena; harimohan mishra; jugnu shardeya; jaishankargupta@gmail.com; Kaushalendra Yadav; Raj Kishore; kpmeena_jnu@yahoo.in; h.l dusadh bahujandiversitymission; Aflatoon Swati; nikhil.anand20@gmail.com; satyendra Ranjan;
प्रमोद रंजन; jite.jnu20@yahoo.com; benil biswas; mrityunjay prabhakar; paswan_rajesh@yahoo.co.in; umraosingh jatav


Subject: Re: My objections: caste and the census

 

योगेंद्र जी, किसी की नीयत पर संदेह का कोई कारण नहीं है। मैं सिर्फ ये निवेदन कर रहा हूं कि जब सरकार की तरफ से ओबीसी गिनती की कोई बात पिछले कुछ दिनों में किसी ने नहीं की है। प्रणव मुखर्जी के बाद आज वीरप्पा मोईली ने भी जाति आधारित जनगणना की बात कही है।[i][i] ऐसे में हम अपनी तरफ से अपनी सीमाएं छोटी क्यों करें।

जनगणना में किसी को गिना जाए और बाकी को अन्य की श्रेणी में डाल दिया जाए, इसका तर्क आप हमें समझाइए। इसमें क्या गड़बड़ी हो सकती है इसके बारे में अपनी आशंकाएं मैं जता चुका हूं। उदाहरण के तौर पर, मैं आपसे ये जानना चाहता हूं कि किसी भी अनुमान के हिसाब से इस देश में 8-9 करोड़ ऐसे आदिवासी तो होंगे ही जो अपनी परंपराएं मानते हैं। जो वर्ण व्यवस्था को नहीं मानते और वर्ण व्यवस्था भी उन्हें अपने दायरे में नहीं मानती। हिंदुओं की मेट्रिमोनी में जाति के कॉलम में आदिवासी नहीं होते। ऐसे लोगों को हमारी जनगणना कहां रखती है? जनगणना के आंकड़ों में Other Religions & Persuasions के कॉलम में एक करोड़ से भी कम लोग ( 6,639,626) लोग दर्ज हैं। जिन्होंने अपना धर्म नहीं बताया है ऐसे लोग (नास्तिक नहीं) 727,588 हैं।[ii][ii] हिंदुओं की संख्या बढ़ाकर दिखाने के लिए जो किया गया वैसा ही सवर्ण (हिंदू अन्य) के साथ न हो, इसका ध्यान रखना होगा। आप जानते ही हैं कि अमेरिका की जनगणना में नस्ल गिनते समय श्वेतों की भी गिनती होती है। अमेरिका के श्वेत इससे नहीं डरते। दक्षिण अफ्रीका में 2001 की जनगणना में श्वेत, अश्वेत अफ्रीकी, एशियाई/भारतीय और कलर्ड इन सभी श्रेणियों की गिनती की गई थी।[iii][iii]  भारत में ऐसा क्या खास है कि लोग सवर्णों की गिनती से घबरा रहे हैं? इससे ऐसा क्या भेद खुल जाएगा, जो अब तक लोगों को पता नहीं है। एक अल्पसंख्यक समुदाय राष्ट्र के ज्यादातर संसाधनों पर कब्जा करके बैठा है, इसके अलावा जातीय जनगणना कौन सा नया राज खोल देगी। इससे किसे भयभीत होना चाहिए?

मेरी और मेरे जैसे कई लोगों की उम्मीद आप जैसे समाजशास्त्रियों से है। निराश करेंगे तो आलोचना की जाएगी। जिनसे उम्मीद नहीं है उनकी आलोचना मैं कहां कर रहा हूं। अभय कुमार दुबे, वेद प्रताप वैदिक, भानु प्रताप मेहता आदि से हमें कोई शिकायत नहीं है। वे आरक्षण के खिलाफ थे, वे महिला आरक्षण के समर्थक हैं, वे जाति आधारित जनगणना के विरोधी हैं। उनके व्यवहार में जाति प्रश्न को लेकर निरंतरता है। उनसे न उम्मीद है न शिकायत। वे वही कर रहे हैं, जो उनसे अपेक्षित है।

धन्यवाद

दिलीप

 



 

On Fri, May 21, 2010 at 3:37 AM, Yogendra Yadav <yogendra.yadav3@gmail.com> wrote:

दिलीप भाई,

इस संवाद में आपके जुड़ने का स्वागत करते हुए मैंने यही इच्छा व्यक्त कि थी कि इससे सामाजिक न्याय के पक्षधर साथियों के भीतर एक स्वस्थ संवाद शुरू हो सकेगा. इस सवाल पर अपने पिछले कई सालों से जिस शिद्दत और संजीदगी से लिखा है, उसका मैं कायल रहा हूँ और इसीलिये मुझे आपसे बातचीत में ज्यादा उम्मीद नजर आती है. लेकिन अगर इतना जल्दी ही एक दूसरे के इरादों पर शक करने लगे तो बातचीत कि गुंजाईश कैसे बचेगी? ( अपने लिखा है "तमाम बौद्धिक आवरण के बावजूद जनगणना में ओबीसी गणना का विचार जाने-अनजाने भारतीय समाज में वर्चस्ववादी मॉडल को बनाए रखने की इच्छा से संचालित है") अगर मैं आपके सामने सिर्फ आवरण पेश कर रहा हूँ और अपनी असली नीयत को छुपा रहा हूँ, या फिर आपको मेरे मन कि इच्छा मुझसे बेहतर पता है, तो फिर हम बात ही कैसे कर पाएंगे? मैं फिर अनुरोध करूंगा कि हमारे देश में सामाजिक सरोकार रखने वाले लोग अक्सर छोटे के मतभेद को मनभेद में बदल देते हैं. कम से कम मैं और आप ऐसा न करें.

 

अपने जनगणना में धर्मं कि गिनती को लेकर जो आशंका व्यक्त कि है वो सही नहीं है.  यह सच नहीं है कि जनगणना में जो लोग कोई और धर्मं कबूल नहीं करते उन्हें हिन्दू मान लिया जाता है. नियम यह हैं कि परिवार का मुखिया अपने परिवार का जो भी धर्मं बताता है जुसे लिखा जाता है और जनगणना के आंकड़ों में बाकायदा उंसी गिनती होती है. अगर आप धर्मं कि तालिका देखें तो आपको उसमे बिश्नोई, सतनामी, लिंगायत, नास्तिक अदि सभी नाम मिल जायेंगे जिनकी बाकायदा गिनती हुई है. सन २००१ में कोई ६६ लाख लोगो ने बड़े ६ धार्मिक सम्प्रदायों के इलावा बाकी धर्म संप्रदाय लिखवाए थे, कोई ७ लाख ने इस सवाल का जवाब नहीं दिया था, उन्हें अलग से रिकॉर्ड किया गया था. यह जरूर है कि जनगणना करने वाले अध्यापक्गन कई बार अपनी मर्जी से फॉर्म भर देते हैं, लेकिन अगर वो होगा तो यह बात जाती पर भी लागू होगी.

उम्मीद है मेरी इस जानकारी को वर्चस्ववादी मानसिकता का एक और प्रमाण नहीं माना जायेगा और हम एक स्वस्थ बातचीत जारी रख सकेंगे.

आपका

योगेन्द्र


Current affiliation (till July 2010): Fellow, Wissenschaftskolleg Zu Berlin (Institute for Advanced Study),
Wallotstrasse 19, Berlin 14193, Germany, Phone: +49-30-89001100 (PABX)  +49-30-89001 233 (Direct)
Residence: Apartment 332, Villa Walther, Koenigsallee 20, Berlin, Germany, Phone: +49-30-89001371

Regular affiliation:Senior Fellow, Centre for the Study of Developing Societies, 29 Rajpur Road, Delhi 110054 India

On 20 May 2010 19:16, dilip mandal <dilipcmandal@gmail.com> wrote:

I am posting this in Hindi. Hope that your browser supports Hindi font.

rgds

dilip

दोस्तो, 

सभी जाति की गणना के विरोधियों का तर्क यह है कि ओबीसी की इस गिनती से भी वह लक्ष्य हासिल हो जाएगा, जिसे जाति आधारित जनगणना से हासिल करने की कोशिश की जा रही है। उनका तर्क है कि कुल आबादी से दलित, आदिवासी और ओबीसी आबादी के आंकड़ों को निकाल दें तो इस देश में "हिंदू अन्य" यानी सवर्णों की आबादी का पता चल जाएगा। साथ ही ये तर्क भी दिया जा रहा है कि सवर्णों के लिए तो इस देश में सरकारें किसी तरह का विशेष अवसर नहीं देतीं इसलिए अलग अलग सवर्ण जातियों के आंकड़े इकट्ठा करने से क्या हासिल होगा। इन दोनों तर्कों में दिक्कत ये है कि इसमें वास्तविकता का अनदेखी की जा रही है। इस देश में जो भी व्यक्ति जनगणना के दौरान खुद को दलित, आदिवासी या ओबीसी नहीं लिखवाएगा, वे सारे लोग सवर्ण होंगे, यह अपने आप में ही अवैज्ञानिक विचार है। इस आधार पर कोई व्यक्ति अगर खुद को जाति से ऊपर मानता है और जाति नहीं लिखाता, तो भी जनगणना में उसे सवर्ण (हिंदू अन्य) गिना जाएगा। किसी भी कारण से जिसका नाम दलित, आदिवासी या ओबीसी कटगरी में नहीं आया, वह सवर्ण (हिंदू अन्य) गिना जाएगा। 

ऐसा करने से आंकड़ों में वैसी ही गड़बडी़ होगी, जैसे कि इस देश में हिंदुओं की संख्या के मामले में होती है। जनगणना में जो भी व्यक्ति अल्पसंख्यक की श्रेणी में दर्ज छह धर्मों में से किसी एक में अपना नाम नहीं लिखाता, उसे हिंदू मान लिया जाता है। यानी कोई व्यक्ति अगर आदिवासी है और अल्पसंख्यक श्रेणी के किसी धर्म में अपना नाम नहीं लिखाता, तो जनगणना कर्मचारी उसके आगे "हिंदू" लिख देता है। इस देश के लगभग करोड़ आदिवासी जो न वर्ण व्यवस्था मानते हैं, न पुनर्जन्म और न हिंदू देवी-देवता, उन्हें इसी तरह हिंदू गिना जाता रहा है। उसी तरह अगर कोई व्यक्ति किसी भी धर्म को नहीं मानता, तो भी जनगणना की दृष्टि में वह हिंदू है। अगर जातिगत जनगणना की जगह दलित, आदिवासी और ओबीसी की ही गणना हुई तो किसी भी वजह से जो "हिंदू" व्यक्ति इन तीन श्रेणियों में अपना नाम नहीं लिखाता, उसे जनसंख्या फॉर्म के हिसाब से "हिंदू अन्यकी श्रेणी में डाल दिया जाएगा। इसका नतीजा हमें "हिंदू अन्य" श्रेणी की बढ़ी हुई संख्या की शक्ल में देखने को मिल सकता है। इस तरह पूरी जनगणना का आधार ही गलत हो जाएगा।

साथ ही अगर जनगणना फॉर्म में तीन श्रेणियों आदिवासी, दलित और ओबीसी और अन्य की श्रेणी रखी जाती है, तो चौथी श्रेणी सवर्ण रखने में क्या समस्या है? अमेरिकी जनगणना में भी तमाम श्रेणियों की गिनती के साथ श्वेत लोगों की भी गिनती की जाती है। प्रश्न ये है कि भारत में कुछ लोग इस बात से क्यों भयभीत हैं कि सवर्णों की गिनती हो जाएगीतमाम बौद्धिक आवरण के बावजूद जनगणना में ओबीसी गणना का विचार जाने-अनजाने भारतीय समाज में वर्चस्ववादी मॉडल को बनाए रखने की इच्छा से संचालित है।

धन्यवाद

दिलीप

 

On Thu, May 20, 2010 at 7:47 PM, Ashutosh (IBN7) <ashutosh@network18online.com> wrote:

 

Finally I could not resist , I thought I will not respond then as you all know being a journalist its impossible after a point to keep quite .

 

I have very simple logic for caste based census . Has casteism increased after Mandal Implementation ?  No . Why ?

 

One , because caste was and is and will remain as the most important Identity of an individual in Indian context . And identities are permanent , its never temporary . Take the example of Raussia . Even after 70 years of anti-religious, anti-nationality regime, massive industrialisation , robust urbanisation identities remained the only solace for the entire population and the minute they got an opportunity they overtly became what they were , rather more committed to that , which became the reason for the fragmentation of Soviet Union .

 

Second, Who says casteism will increase ? It is an upper caste logic , If Laloo is casteist then what about Jagannath Mishra ? Laloo represents an upwardly mobile caste in terms of power so he makes more noise . Simple . Others who are used to social and political power for centuries are more subtle and sophisticated in their articulation but have the same  mindset and same logic .

 

 

Third, When everything is decided by caste , from choosing spouse to leader then why are we hiding behind a veil . Why are we trying to be moralist ? Left ignored world over and remained in denial mode , refused to recognise these pre-mordial identities and always believed it as retrograde , paid the price by being wiped out from the map , and in indian context lost the battle to Congress and BJP .

 

So lets accept it and accordingly deal with this .And it will help in evolving social , political and economic development strategies if we have a clear picture of catse configuration .

 

Ashutosh


From: dilip mandal [mailto:dilipcmandal@gmail.com
Sent: 20 
मई 2010 14:03
To: Yogendra Yadav
Cc: Satish Deshpande; JANHIT ABHIYAN; Sushma_iipa@yahoo.co.inrakeshyadav123@yahoo.comcsyadavortho@gmail.comyogendra.yadav@gmail.comsurendramohan1@gmail.comrakeshnbt99@gmail.comanilthakurthakur@gmail.comnikhildey@gmail.comarunaray@gmail.comshyamsalona@indiatimes.comshekharsingh@gmail.comranbir33@gmail.comsomeshgupta@hotmail.comkpyd@yahoo.commanak.publications@gmail.com; urmilesh urmil; jitenykumar@gmail.com; anil chamadia; arvindmohan2000@yahoo.compioneercbp@yahoo.com; d.ram; GangaSahay Meena; harimohan mishra; jugnu shardeya; jaishankargupta@gmail.com; Kaushalendra Yadav; Raj Kishore; kpmeena_jnu@yahoo.in; h.l dusadh bahujandiversitymission; Aflatoon Swati; nikhil.anand20@gmail.com; satyendra Ranjan; 
प्रमोद रंजनjite.jnu20@yahoo.com; benil biswas; mrityunjay prabhakar; paswan_rajesh@yahoo.co.in; umraosingh jatav; Ashutosh (IBN7)


Subject: Re: My objections: caste and the census

 

pl check the attachment. 


hope no one is feeling that we are flooding their mail box. if it is so, pl do let us know. will remove the name from the list immediately.

rgds

dilip

On Thu, May 20, 2010 at 1:36 PM, Yogendra Yadav <yogendra.yadav3@gmail.com> wrote:

Dilip bhai: thanks for drawing my attention to this report about Pranab Mukherjee's statement (I checked: it is a PTI despatch from Chhindwara, dated 8 May). What I have cited in my article is the Times of India news on  what he told teh reporters outside the parliament as soon as the PM accepted the demand. Here it is:

 

Mukherjee told reporters, "Yes, we will include it (caste) in this census." He added that it was not too late to add the criterion as part of the exercise rolled out on April 1. "It (the census) has just started. All we need to do is to include a column on OBC. There are already columns on General, SC/ST.

You would agree that I was not wrong in drawing the conclusion that I drew based on that first report. There appears to be an ambivalence in the government on this question.

 

 

Yogendra Yadav,

Current affiliation (till July 2010): Fellow, Wissenschaftskolleg Zu Berlin (Institute for Advanced Study), 
Wallotstrasse 19, Berlin 14193, Germany, Phone: +49-30-89001100 (PABX)  +49-30-89001 233 (Direct)
Residence: Apartment 332, Villa Walther, Koenigsallee 20, Berlin, Germany, Phone: +49-30-89001371

Regular affiliation:Senior Fellow, Centre for the Study of Developing Societies, 29 Rajpur Road, Delhi 110054 India

On 19 May 2010 20:38, dilip mandal <dilipcmandal@gmail.com> wrote:

Dear Yogendra ji,

 

Thanks for the responce. Aflatoon has said that medium of the discourse should be an Indian language. But I know that older versions of software do not support Indian languages, so we do not have option of communicating in languages of our choice.  I will articulate my views in a day or two and get back to everyone. 

 

But at this juncture I would like to draw everyone's attention to this part of your article: 

 

"The government's silence on what exactly the decision is, has only added to the confusion. Media headlines and parliamentary discussions have spoken of a "Caste Census." This gives the impression that the government has decided to resume the colonial practice of enumeration, and often ranking, of all castes and sub-castes among Hindus. But Pranab Mukherjee's statement to the media indicates that the government proposes to do something more limited — to extend the current practice of recording the SCs and the STs to include the OBCs. In other words, the enumerators will ask everyone if they belong to an SC or an ST or an OBC (enumerators already do so in the case of the SCs and the STs), and if the respondents do, the enumerators will record the exact caste name. Others will not be asked about their caste name. This appears to be the most reasonable interpretation of the demand for a "caste-based census" in the present context. There are some good arguments for a full caste-based Census, as those advanced by Professor Satish Deshpande. But we may not be ready for it at this stage of the current census operations and national deliberations. If we take 'caste-based census' to mean OBC enumeration, as I do here, this will not be a dramatic reversal of an 80-year-old policy, but only a logical culmination of many earlier attempts."  

 

Now let's see, what Pranab Mukherjee had said (as appeared in all newspapers): 

 

Union Finance Minister Pranab Mukherjee on Saturday justified the demand for conducting a caste-based Census in the country and said it should not have been discontinued post-independence. "The caste-based Census was last conducted in the year 1931 and the practice should have continued in post-Independence period also but it did not happen. Now the UPA government has taken an initiative in this regard," Mukherjee told reporters in Chhindwara.[i] [ii] [iii]

Mr Mukherjee has not suggested that census 2011 will be limited to counting OBCs. Are we not jumping the gun, by saying, what government may say or may not say?  

 

I can understand the logic of Brhaminical forces opposing caste based census. They should and will pitch for OBC census now, as this is the minimum, the government can offer. But forces of social justice should demand caste based census and collection of all data accordingly.  

 

regards,

 

dilip mandal  

 

 

On Wed, May 19, 2010 at 2:55 AM, Yogendra Yadav <yogendra.yadav3@gmail.com> wrote:


Dilip bhai: Thanks for your well considered objections. Open discussions like this one can carry forward a healthy debate within the supporters of social justice which is badly needed. For reasons of brevity, I am giving response to each of your points within the body of your email. My responses are in red.

I would encourage others to join and discuss this. Some of the premises of what I have said here have been articulated in my  article "Rethinking Social Justice" in Seminar in September 2009 issue.

Thanks again, to Dilip bhai, who has maintained a vigil on this question for years.

Yours

Yogendra

On 18 May 2010 21:12, dilip mandal <dilipcmandal@gmail.com> wrote:

Thanks for forwarding this article. This is a well crafted article but I have some objections. 

 

1. Please refer to the first paragraph of the article. I do not think that political  forces demanding caste based census should be termed as "retrograde forces". Only due to these so called "retrograde forces," we may have caste based census after 80 long years. On this point there is a simple misunderstanding. I should have used "  " to make my point clear. I have only reported how Congress wants to present it. I dont agree with this characterisation.

 

2. My second objection is regarding using the term  "decision to count the Other Backward Classes." This has never been the demand of "retrograde forces" or forces like Janhi Abhiyan or socialists like Mastram Kapoor. Enumeration of the OBCs is in itself a faulty preposition and this will amount to negate the whole purpose of caste based census. I do agree that OBC enumeration is not full caste census. Professor Satish Deshpande has written a very good article to articulate the demand for full caste census. That should come out in Times of India very soon. I am not sure I agree with him or with you. And I am quite sure that it may be next to impossible to expect it at this stage of census.

 

3. If the data related to all the castes and their socio-economical status is not collected, than it will become more of an academic exercise, because no reference point will be available to do the comparative analysis. This is not correct.If we get data on OBC and we already have data on religion, it should be possible to compare OBCs with  Upper caste Hindus ('Hindu Others' in teh Census language). That is how we analyse the data given by NSS now.

 

4. Congress government may come up with an idea to count OBCs, so that hegemony of micro minority upper castes is not highlighted. As I said above, we can derive data for upper caste Hindus (but not for separate jatis within upper caste) from an OBC  enumeration. 

 

5. One more reason to go for caste based census is that we have a tested template for conducting caste based census (1931 census),  whereas we do not have any such template for doing OBC census. On this point I would really want Dilip bhai to rethink. The Home minister had taken this position to stall the demand. Since the NCBC has already developed a list (and it is an official classification already being used for jobs) there is no problem for using it for census.

 

6. The socialists and so called "retrograde forces" should stick to the demand for caste based census.  Yes we do have a difference. I would only plead that please do not push for a demand for full caste census in such a way that you jeopardise the possiblility of OBC enumeration as well. In movements there is often a temptation to direct our critique entirely on the position closest to ours and to risk losing everything. Let us not do that.     

 

I hope Yogendraji will give a thought to my objections. May I suggest that we invite Professor Deshpande to this discussion. His position is closer to Dilip bhai's. Although I disagree with him on this one aspect, I do think that he is among the best minds in our country thinking on the question of caste and who is well versed with the Census and its technicalities. I am taking the liberty of marking this mail to  him.

 

regards

 

dilip    

 

On Tue, May 18, 2010 at 2:47 PM, JANHIT ABHIYAN <janhitabhiyan@gmail.com> wrote:



---------- Forwarded message ----------
From: Yogendra Yadav <yogendra.yadav3@gmail.com>
Date: May 18, 2010 2:10 AM
Subject: My article on caste and the census
To: vinit bhargava <janhitabhiyan@gmail.com>
Cc: Sushma_iipa@yahoo.co.inrakeshyadav123@yahoo.comcsyadavortho@gmail.comyogendra.yadav@gmail.comsurendramohan1@gmail.comrakeshnbt99@gmail.comanilthakurthakur@gmail.comnikhildey@gmail.comarunaray@gmail.comshyamsalona@indiatimes.comshekharsingh@gmail.comranbir33@gmail.comsomeshgupta@hotmail.comkpyd@yahoo.commanak.publications@gmail.com

Dear friends,
I am sending my recent article on the recent controversy about caste and the Indian census. The article was carried in Kannada by Prajavani and in Hindi by Amar Ujala. I have also published a critique of Professor Pratap Mehta's article on this question in the Indian Express of May 17. 
Given that the media has been one-sided on this question, I would appreciate if you could circulate this widely.
Thanks
Yogendra

http://beta.thehindu.com/opinion/op-ed/article430140.ece

The Hindu, Opinion » Op-Ed 
May 14, 2010 
Why caste should be counted in
Enumeration of the OBCs as part of the Census will help evidence-based formulation and monitoring of policies of social justice. It should have been done in 2001 itself.
Yogendra Yadav

The United Progressive Alliance government has a knack of arriving at the right decisions for the wrong reasons. The latest announcement on counting caste in the Census is a case in point. In this instance, as in the case of Telangana, a policy measure that was long overdue has been made to look like a hasty decision. As in the case of the Mahatma Gandhi National Rural Employment Guarantee Scheme, the government needed some arm-twisting to act in the larger national interest, and its own. The decision to count the Other Backward Classes (OBCs) in the coming Census is, and should have been, presented as a forward-looking and overdue policy announcement that would help evidence-based formulation and monitoring of policies of social justice. Instead, by presenting it as a reluctant concession to retrograde forces, the government has left itself open to needless and ill-informed criticism from the usual quarters.
The government's silence on what exactly the decision is, has only added to the confusion. Media headlines and parliamentary discussions have spoken of a "Caste Census." This gives the impression that the government has decided to resume the colonial practice of enumeration, and often ranking, of all castes and sub-castes among Hindus. But Pranab Mukherjee's statement to the media indicates that the govern




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Palash Biswas
Pl Read:
http://nandigramunited-banga.blogspot.com/

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