Wednesday, August 21, 2013

तीन साल पहले इसी दिन हम सभी साथियो की यादों में प्रवेश कर गया था प्यारा गिरदा। सलाम गिरदा!

एक है गिरदा, जो कंधे पर हुड़का और झोले में कविताएं लिए सदा यादों में टहलता रहता है। उसे 'थे' कहने का तो मन ही नहीं होता। आखिर किन अविनाशी कणों से बना था गिरदा कि उसकी हस्ती वक्त की सीमाओं में बंधे बिना हर वक्त मौजूद रहती है। जब चाहो बात कर लो उससे और जब चाहो हुड़के पर गीत गाते हुए सुन लो उसे। उसकी किताबों के पन्ने पलटते हैं तो पन्ने के आंखर नहीं, मन में आकर खुद गिरदा गीत सुनाने लगता है। और, कविता या गीत सुना कर मुस्कुरा कर पूछता है, 'कैसी रही?' आज बहुत व्यस्त होगा गिरदा अपने साथियो के साथ मिलने, बतियाने में। कहां-कहां तो जा रहा होगा यादों में उन साथियो से मिलने, देश और काल की सीमाओं से परे। तीन साल पहले इसी दिन हम सभी साथियो की यादों में प्रवेश कर गया था प्यारा गिरदा। सलाम गिरदा!

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