Friday, August 9, 2013

तो क्या हावड़ा बनने जा रहा है बंगाल की राजधानी?

तो क्या हावड़ा बनने जा रहा है बंगाल की राजधानी?


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​


पूरे 237 साल में जो नहीं हुआ,वह अब हो रहा है। कोलकाता के राइटर्स का पता बदल रहा है।मुख्यमंत्री ममता बनर्जी हुगली के उस पार हावड़ा में राइटर्स को ले जारही हैं। कहा जा रहा है कि राइटरस् की मरम्मत के लिए तीन सौ करोड़ की लागत से मंदिरतला में एचारबीसी में सभी मंत्रालयों को लेकर जा रही हैं।अब अक्तूबर में दीदी का दरबार वहीं लगेगा। समझा जाता है कि कोलकाता की रोशनी में पूरे तीन सौ साल से उपेक्षित हावड़ा की किस्मत एक झटके से बदलने वाली हैं दीदी। उनका राइटर्स में फिर वापस आने का इरादा नहीं है।मंदिरतला के पास ही डुमुरजला में पचास एकड़ जमीन भी दीदी ने खोज ली है नये राइटर्स के लिए। पहले लालदीघि के किनारे नये राइटर्स बनाने की योजना थी ,जो लगता है अब खटाई में है। हावड़ा महानगर और हावड़ा जिले के लिए यह बेहद अच्छी खबर है ौर जनता को उम्मीद है कि दीदी को अपने बीच पाकर उन्हें अपनी समस्याएं सुलझाने में ासानी होगी।लेकिन कोलकाता से राइटर्स के स्थानांतरण से कोलकाता में जमे हुए कर्मचारियों के लिए मुसीबत खड़ी हो गयी है। वे अपने नये दफ्तर तक कैसे पहुंच पायेंगे, इसकी खोज खबर लेने में ही व्यस्त हैं।राज्य सचिवालय को हावड़ा के मंदिरतला में स्थानांतरित करने के फैसले से सरकारी कर्मचारियों में मिश्रित प्रतिक्रिया देखने को मिली है।कुछ कर्मचारी तो राज्य सरकार के इस फैसले से खुश हैं, लेकिन राइटर्स बिल्डिंग में कार्य करनेवाले कई कर्मचारी इस फैसले से काफी नाराज हैं। उनका कहना है कि राइटर्स बिल्डिंग में पुनर्विकास कार्य जरूरी है, लेकिन इसके लिए पूरे राज्य सचिवालय का स्थानांतरण सही नहीं है। इससे राज्य सरकार का खर्च भी बढ़ेगा।उनका कहना है कि सरकारी कर्मचारियों का सरकार पर 28 फीसदी डीए बकाया है। राज्य सरकार इसका भुगतान करने के बजाय करोड़ों रुपये खर्च करके राज्य सचिवालय का पुनर्विकास करने की योजना बनायी है। सरकारी कर्मचारियों का कहना है कि राज्य सरकार को परिवहन खर्च के बारे में भी ध्यान देना चाहिए।



नया सचिवालय राइटर्स के सामने बना देने पर वहां स्थानांतरण के बाद राइटर्स का जीर्मोद्धार मुफ्त में हो जाता। राइटर्स को हावड़ा स्थानांतरित करने की नौबत नहीं आती और न ही आर्थिक बदहाली के आलम में तीन तीन सौ रुपये लगाकर आरबीसी को राइटर्स के लायक चाक चौबंद बनाने की जरुरत पड़ती। इसलिए दो महीने के भीतर राइटर्स की मरम्मत करके फिर कोलकाता वापसी की दलील लोगों को गले नहीं उतर रही है। दीदी ने डुमुरजला में जमीनदेखने की घोषणा कर दी तो अब हावड़ावालों की बांछे खिल गयी है और उन्हें लग रहा है कि उनकी तो चल पड़ी है और आखिरकार हावड़ा की भी लाटरी निकल आयी है।


गौरतलब है कि अंग्रेजी हुकूमत के दौरान 1776 में तरुण लिपिकों की रिहाइश के लिए डालहौसी में लालदीघि के किनारे इस भवन को बनाने की शुरुआत हुई,जिसके निर्माण में लगभग तीन साल लगे।नीचे गोदाम थे तो ऊपर लिपिकों के लिए रहने का इंतजाम था।  लेफ्टटिनेंट गवर्नर ऐशले इडेन के जमाने में (1877-1882)

ईजे मार्टिन के नक्शे के मुताबिक यूरोपीय गोथिक वास्तुकला के तहत इस भवन का कायाकल्प किया गया। तब से बंगालका प्रशासनिक केंद्र राइटर्स ही बना हुआ है। इसमे कोई व्यवधान नहीं पड़ा।इस इमारत से कभी देश पर ब्रिटिश हुकुमत चला तो अब यह पश्चिम बंगाल में शक्ति का प्रमुख केंद्र है। ब्रिटिश जमाने में यहां लेफ्टिनेंट गवर्नर का कार्यालय था और आजादी के बाद से ही यह पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री समेत राज्य के तमाम बड़े मंत्रालयों का कार्यालय है। इसे कोलकाता की पहली तीन मंजिला इमारत होने का भी गौरव प्राप्त है।पिछले दो सदियों से भी ज्यादा समय से देश की शासन प्रक्रिया में अहम भूमिका निभाने वाले ऐतिहासिक राइटर्स बिल्डिंग की वर्तमान संरक्षक और राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अब इसके पुनर्निर्माण की योजना बनाई है। वर्ष 2011 में बनर्जी के सत्ता में आने के बाद राज्य सचिवालय को थोड़ा आकर्षक रूप देने की पहल की गई और यहां अस्थायी सजावट के साथ-साथ रंग-रोगन का कार्य भी किया गया था। लेकिन अब इसकी पूरी मरम्मत की जाएगी।


अब लोगों की समझ में यह बात नहीं आ रही है कि इतनी पुरानी इमारत का कायाकल्प मात्र दो महीने की अवधि में कैसे पूरा किया जै सकता है और सिर्फ दो महीने के लिए तीन सौ करोड़ की लागत से मंदिरतला आरबीसी बिल्डिंग को अस्थाई राइटर्स बनाने की क्या जरुरत है। जाहिर है कि डुमुरजला में नया राइटर्स बनाने की योजना खास है और सिर्फ दो महीने के लिए तीन सौ करोड़ का न्यारा वारा नहीं हो सकता। वैसे ही मुख्यमंत्री पद पर शपथ लेने के बाद सेद दीदी का मन इस राइचर्स से उचाट है और वे वहां से सरकार चलेने के मूड में नहीं है। पंचायत चुनावं में भीरी जीत के बाद महानगर कोलकाता को अलविदा कहकरग्राम बांग्ला में हावड़ा को राजधानी बनाकर वे अपना जनादार स्थाई बनाना चाहती हैं।


मालूम हो कि आजादी के बाद भी राइटर्स में जगह की कमी समझी जाती रही है और इस समस्या के समाधान के लिए पचास और साठ दशक के दरम्यान राइटर्स इलाके मे ंही चार नये भवन बना दिये ग।अब राइटर्सका कुल क्षेत्रफल साढ़े चार लाख वर्गफुट है।


बंगाल के बड़े अफसरों को भी यह पहेली सुलझाने में सर चकराने लगा है कि मंदिरतला आरबीसी में राइटर्स स्थानांतरित करने के बाद दीदी क्या वहां से जीपीओ के सामने प्रस्तावित मुख्यमंत्री कार्यालय में लौटनेक तैयार होंगी। अगर उनकी ऐसी इच्छा ही है तो वे डुमुरजला की बात क्यों कर रही हैं।गौरतलब है कि मुख्यमंत्री पद संभालते ही दीदी ने ही जीपीओ  के सामने चार मंजिली मुख्यमंत्री कार्यालय की योजना तैयार करवायी।कहा जा रहा है कि देश की राजधानी नईदिल्ली की तर्ज पर दीदी भी सारे मंत्रालयों को एक जगह रखने के बजाये सारे महानगर में छितरा देना चाहती हैं। लेकिन कोलकाता में चालू परियोजनाओं के लिए ही जमीन उपलब्ध नहीं हैं,इसलिए मुख्यमंत्री कार्यालय के लिए जीपीओ के सामने जमीन निकल आने के बावजूद मंत्रालयों का नया विन्यास असंभव है।


 इस लिहाज से हावड़ा कोलकाता का बेहतर  विकल्प है। सलेम की खटाई में पड़ी कोलकाता वेस्ट इंटरनेशनल सिटी के अलावा राष्ट्रीय राजमार्ग नंबर दो और छह के अलावा कोना एक्सप्रेस वे में नये मंत्रालयों के लिए बिना झंझट खूब जगह निकल सकती है। आरबीसी को राइटर्स लायक बनाकर बाकी मंत्रालयों को दीदी इन सभी जगहों पर शिफ्ट कर ही सकती हैं। डुमुरजला का भवन बन जाने पर दीदी सीधे वही शिफ्त कर सकती है।


दूरी के हिसाब से हावड़ा के नजरिये से देखें तो विद्यासागर सेतु से न आरबीसी दूर है और न डुमुरजला। राष्ट्रीय राजमार्गों और कोना एक्सप्रेस वे की वजह से सिर्फ अतिरिक्त बस सेवाएं चालीकरके दक्षिण बंगाल और उत्तर बंगाल से तेज रफ्तार परिवहन से जोड़ा जा सकता है नयी राजधानी को। जबकि हावड़ा और सियालदह रेलवे स्टेशनों से राइटर्स की दूरी कम होने के बावजूद वहां तक पहुंचने में लोग तबाह हो जाते हैं। जहां तक राजारहाट,साल्टलेक या न्यू टाउनकी बात है, वहां एक मुश्त इतनी जमीन मिल ही नहीं सकती। वैसे दीदी विकास भवन के अवस्थान से खुश भी नहीं हैं। जबकि राइटर्स से अबतक कम से कम अनेक मंत्रालय और कार्यालय या तो कैमाक स्ट्रीट या पिर साल्टलेक में स्थानांतरित हो चुके हैं। लेकिन राइटर्स से इऩ मंत्रालयों और दफ्तरों तक सांतरागाछी की तरह फटाक से पहुंच ही नहीं सकती मुख्यमंत्री जबकि राइटर्स में अब भी 38 दफ्तर बने हुए हैं और उनका स्थानांतरण जरुरी है। स्थानांतरण से ज्यादा जरुरी है इन सभी मंत्रालयों, विभागों और दफ्तरों में मुख्यमंत्री की अबाध पहुंच। इस नजरिये से कोलकाता या नया कोलकाता हावड़ के मुकाबले कहीं टिकता ही नहीं है।पु


नर्निर्मित राइटर्स बिल्डिंग में केवल 11 मंत्रालयों के कार्यालय होंगे। इसमें गृह, वित्त, उद्योग और भूमि जैसे मंत्रालय शामिल हैं। बहरहाल माना जा रहा है कि इमारत के नवीनीकरण का कार्य जल्द शुरू किया जाएगा। उल्लेखनीय है कि पिछले साल मई में अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने राइटर्स बिल्डिंग का दौरा किया था। इस समय मुख्यमंत्री ने इमारत की पुनरुद्घार योजना को सैद्घांतिक मंजूरी दे दी है। एक सरकारी अधिकारी ने बताया, 'राज्य के लोकनिर्माण विभाग को एक माह के भीतर इमारत के नवीनीकरण से जुड़े कार्यों की विस्तृत रिपोर्ट देने के कहा गया है। इसमें अनुमानित लागत का भी ब्योरा होगा।' सरकार इस कार्य के लिए बाहरी एजेंसी की भी मदद ले सकती है। मुख्यमंत्री ने इस मुद्दे पर पिछले सप्ताह गुरुवार को राज्य सरकार के वरिष्ठï अधिकारियों के साथ एक बैठक की थी, जिसमें राज्य के मुख्य सचिव, गृह सचिव, लोक निर्माण विभाग के सचिव आदि शामिल थे। बैठक के दौरान बिल्डिंग के नीवीनीकरण से संबंधित शुरुआती पावर प्वाइंट प्रेजेंटेंशन भी प्रस्तुत किया गया।


राइटर्स में ही लोग बता रहे हैं कि तमाम खास मंत्रालयों समेत कम सेकम सत्रह विभागो के राइचर्स में फिर लौटनेकी कोई संभावना नहीं हैं। इन मंत्रालयों को कोलकाता से बाहर करके मुख्यमंत्री निश्चिंत भाव से जीपीओ के समने बैठकर राजकाज नहीं चला सकती । इसलिए इनका कहना है कि दीदी के हावड़ा से कोलकाता लौटने की संभावना नहीं के बराबर है। इसका सीधा मतलब हुआ कि कोलकाता सा राजधानी का हावड़ा में स्थानांतरण।


इसी बीच राइटर्स बिल्डिंग की नये सिरे से साजसज्जा के बारे में सुझाव प्राप्त करने के लिए प्रदेश सरकार ने विशेषज्ञों एवं विश्वविद्यालयों से सम्पर्क किया है।इमारत में मरम्मत कार्य के लिए इसे एक अक्तूबर तक पूरी तरह से खाली करा लिया जायेगा।


राज्य के लोक निर्माण मंत्री सुदर्शन घोष दस्तीदार ने एक कार्यक्रम से इतर कहा कि सरकार ने जादवपुर और बंगाल इंजीनियरिंग एंड साइंस यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञों से इस बारे में सुझाव मांगे हैं ताकि इस धरोहर इमारत के स्वरूप को बरकरार रखा जा सके।उन्होंने कहा कि इस इमारत में अंतरराष्ट्रीय मापदंडों के अनुरूप साजसज्जा का काम मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की प्रत्यक्ष निगरानी में होगा।


मंत्री ने हालांकि इमारत की साजसज्जा और मरम्मत पर आने वाले खर्च के बारे में नहीं बताया।



No comments:

Post a Comment