Wednesday, August 21, 2013

खैर, हमें कुछ तय करने में मदद करना गिर्दा!

नौ तो क्या, अब तो 13 साल हो गये हैं गिर्दा! अब तो हालात और खराब हैं। इस साल की आपदा ने तो कमर ही तोड़ दी है। सरकार ICU में चली गयी है। उसके लिये ₹ 14,500 करोड़ की ऑक्सीजन मंगाई जा रही है। इसीलिये तो हम तुम्हें याद करने यहाँ देहरादून में बैठे हैं गिर्दा, जैसा तुम कहते थे, कुछ 'बकबक' करने। तुम्हारे बहाने कुछ सोचेंगे कि कैसे जनता की असहायता को तोड़ें, कैसे इस निकम्मी सरकार के कान उमेंठे। ठीक है न गिर्दा? तुम यही तो करते, अगर जिन्दा होते। तुम हमारे साथ तो रहोगे न गिर्दा? तुम बहुत याद आओगे गिर्दा कि कैसे टुकुर-टुकुर, चुपचाप सबकी सुनते और फिर 'एक लोहार की' वाली चोट के साथ अपनी बात रखते इस पुछल्ले के साथ कि 'सुन ली जाये, मानी न जाये'। माननी तो पड़ती ही थी, क्योंकि तुम्हारी बात सबसे वजनदार जो होती थी।
खैर, हमें कुछ तय करने में मदद करना गिर्दा!

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