Wednesday, July 10, 2013

पूर्व विधायक का निधन: कफन तक के लाले पड़े

पूर्व विधायक का निधन: कफन तक के लाले पड़े

Wednesday, 10 July 2013 15:30

बहराइच। गरीबी और तंगहाली के दौर से गुजर रहे गम्भीर बीमारियों से ग्रस्त दो बार के विधायक भगौती प्रसाद का अस्पताल में जिंदगी के लिये संघर्ष आखिरकार कल सांसें थमने के साथ खत्म हो गया। वह करीब 78 वर्ष के थे। 
पारिवारिक सूत्रों ने बताया कि वर्ष 1967 और 1969 में श्रावस्ती की इकौना सुरक्षित सीट से भारतीय जनसंघ के टिकट पर विधायक चुने गये प्रसाद का कल जिला अस्पताल में निधन हो गया। वह पिछले कई महीनों से बुखार और हार्निया से पीड़ित थे।     पारिवारिक सूत्रों का दावा था कि परिवार की गरीबी का आलम यह रहा कि उसके पास अंतिम संस्कार तक के पैसे नहीं थे।
मौजूदा वक्त में राजनेताओं के ठाठ-बाठ के बरक्स चाय की दुकान चलाकर बेहद गरीबी में जिंदगी गुजारने वाले प्रसाद के परिवार में पत्नी फूलमती, तीन पुत्र, एक पुत्री हैं।
परिजन के मुताबिक गरीबी और तंगहाली के दौर से गुजरे पूर्व विधायक भगौती प्रसाद का जीवन के अंतिम समय में ठीक से इलाज तक नहीं हो सका। छह दिन पहले उन्हें बहराइच के एक निजी नर्सिंग होम में भर्ती कराया गया था, लेकिन पैसे की कमी की वजह से रविवार को उन्हें जिला अस्पताल लाना पड़ा।
उन्होंने आरोप लगाया कि जिला अस्पताल में पूर्व विधायक के इलाज में लापरवाही हुई और वह कई घंटे तक जमीन पर पड़े तड़पते रहे। आर्थिक तंगी का आलम यह था कि पूर्व विधायक के शव को उनके पैतृक गांव भेजने का खर्च भी अस्पताल प्रशासन को देना पड़ा। यहां तक कि परिजन के पास उनके अंतिम संस्कार के लिये भी पैसे नहीं थे।

सूत्रों के मुताबिक प्रदेश सरकार के पूर्व मंत्री भाजपा नेता दद्दन मिश्र और पूर्व विधान परिषद सदस्य सुभाष त्रिपाठी ने पार्टी की तरफ प्रसाद का आज उनके पैतृक गांव मढ़ारा में अंतिम संस्कार कराया।
परिजनों के मुताबिक दलित बिरादरी के भगौती प्रसाद ने अपना पूरा जीवन ईमानदारी से जनता की सेवा में लगा दिया। वर्ष 1967 और 1969 में इकौना सुरक्षित सीट से भारतीय जनसंघ के टिकट पर विधायक चुने गये प्रसाद को बेहद मुफलिसी भरी जिंदगी गुजारनी पड़ी।
प्रसाद ने वर्ष 2003 में अपने परिवार का खर्च चलाने के लिये गांव में एक नुक्कड़ पर चाय तथा चने की दुकान खोलनी पड़ी।
पूर्व विधायक के पास सम्पत्ति के नाम पर करीब तीन एकड़ कृषि भूमि थी तथा पहले वह अपने गांव में एक झोपड़ी में रहते थे। कुछ साल पहले ग्राम पंचायत ने उनके बेटे को गरीबों को मिलने वाला इंदिरा आवास आवंटित कर दिया था, जिसमें वह अपने परिवार के साथ रहते थे।

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