Monday, July 8, 2013

इस्लामी आतंकवाद या फिर हिन्दू चरमपंथ?

इस्लामी आतंकवाद या फिर हिन्दू चरमपंथ?

By  

http://visfot.com/index.php/comentry/9589-bodhgaya-temple-blast-1307.html

रविवार की सुबह बोधगया के पवित्र महाबोधि मंदिर में लगातार नौ बम विस्फोट क्या कोई सीरीयल बम ब्लास्ट थे जैसा कि आमतौर पर आतंकी कार्रवाइयों के वक्त नजर आता है? या फिर कुछ सिरफिरों की ऐसी कारस्तानी थी जो बिहार में नीतीश सरकार को बदनाम करने के साथ साथ बौद्ध अनुयायाइयों को बिना नुकसान पहुंचाए सिर्फ डराने के लिए फुलझड़िया फोड़ दीं? देश में भले ही महाबोधि मंदिर में हुए बम विस्फोट को लेकर तात्कालिक तौर पर अफरा तफरी मची हो लेकिन पड़ोस के गया शहर निवासियों को समझ नहीं आ रहा है कि ऐसी कार्रवाई कोई कैसे कर सकता है? धुर नक्सलियों के समर्पित कॉडर की पनाहगाह में इस सीरियल ब्लास्ट पर शोक की लहर नहीं दौड़ी, बल्कि मीडिया द्वारा इसकी बढ़ाचढ़ाकर की गई रिपोर्टिंग पर हंसी के फुहारे छूटे। तो क्या वास्तव में यह विस्फोट वास्तव में वैसा नहीं है जैसा इशारा किया जा रहा है?

वर्तमान महाबोधि मंदिर का इतिहास अगर डेढ़ हजार साल से भी अधिक पुराना है तो इस महाबोधि मंदिर में हिन्दू बौद्ध विवाद भी कोई कम पुराना नहीं है। पिछले छह दशक से अधिक समय से बोधगया मंदिर ट्रस्ट पर हिन्दुओं का कब्जा है और इस ट्रस्ट की अकूत धन संपदा के कारण इस ट्रस्ट में होनेवाली नियुक्तियां राजनीतिक नियुक्तियां बनकर रह गई है। पदेन इस ट्रस्ट का अध्यक्ष गया का जिला कलेक्टर ही होता है लेकिन अन्य लोग सामान्य हिन्दू होते हैं। यह महज संयोग ही है कि इस ट्रस्ट में अभी जो दो लोग हैं उनमें से एक के बारे में कहा जाता है कि वह जदयू का समर्थक है जबकि दूसरा भारतीय जनताo पार्टी का। लेकिन फिलहाल यह किस्सा अभी अलग।

बोधगया में जो विस्फोट हुआ है उसमें नुकसान के लिहाज से भले ही कोई सिर्फ मेज कुर्सियां टूंटी हों और फूल पत्तियां बिखरीं हों लेकिन इसका सांकेतिक नुकसान छवि के लिहाज से वैश्विक है। महाबोधि मंदिर भगवान बुद्ध की निर्वाण भूमि है और बौद्ध धर्मावलंबी मानते हैं कि संसार का विनाश होने के बाद सिर्फ यही एक स्थान बचा रह जाएगा जहां से सृष्टि दोबारा शुरू होगी। बौद्ध धर्मावलम्बी बोधगया को धरती की नाभि मानते हैं इसलिए दुनियाभर के बौद्धों के लिए यह सबसे पवित्रतम स्थल है। यही कारण है कि दुनिया के 52 देशों ने अपने अपने धार्मिक दूतावास यहां बना रखे हैं जो उनके देश से आनेवाले नागरिकों की देखरेख करते हैं।

गया से दस बारह किलोमीटर की दूरी पर स्थित बोधगया में महाबोधि मंदिर के इतर कुछ भी महत्व का नहीं है इसलिए यहां जो आते हैं वे सिर्फ महाबोधि मंदिर में शीश झुकाने ही आते हैं। इसलिए बोधगया की करीब बीस पच्चीस हजार की सचल आबादी में बड़ा हिस्सा सिर्फ नियमित आनेवाले बौद्धभक्तों का ही होता है। ऐसे में यहां विस्फोट की खबर पूरी दुनिया के लिए एक ऐसी चेतावनी है जिसका सीधा मतलब यह निकलता है कि अब भारत में शांतिप्रिय बौद्धों को भी निशाना बनाया जा रहा है। कूटनीतिक स्तर पर होनेवाले नुकसान का अंदाजा संभवत: भारत सरकार को भी है इसलिए तत्काल जांच के लिए एनआईए टीम को कोलकाता से बोधगया के लिए रवाना कर दिया गया।

सब जानते हैं बिहार में विदेशी पर्यटन के नाम पर सिर्फ बौद्ध तीर्थ ही हैं। तो क्या इस विस्फोट से बिहार की नीतीश सरकार को घेरने के साथ साथ बिहार के बौद्ध पर्यटन को नष्ट करने तथा कानून व्यवस्था के नाम पर नीतीश सरकार को बदनाम करने की कोशिश की गई है? भले ही भगवान बुद्ध के इस निर्वाण स्थल को कोई क्षति न पहुंची हो लेकिन इस विस्फोट को जिस तरह से तत्काल मुस्लिम आतंकी कार्रवाई करार दिया जाने लगा उससे मीडिया और बुद्धिजीवियों की मंशा पर शक करना लाजिमी हो जाता है।अब यह एनआईए के ऊपर है कि वह इस पूरे मामले की तहकीकात करे और बम विस्फोट के पीछे के तार खोज निकाले। लेकिन जिस तरह से स्थानीय पुलिस और दिल्ली पुलिस के अधिकारी दावा कर रहे हैं उससे तो यही लगता है कि महाबोधि मंदिर पिछले कई महीनों से आतंकियों के निशाने पर था और इसकी खुफिया सूचनाएं पुलिस महकमें को मिलती रहती थीं लेकिन क्योंकि कभी कुछ हुआ नहीं इसलिए पुलिस प्रशासन ने कोई खास पुख्ता सुरक्षा व्यवस्था नहीं की। फिर भी महाबोधि मंदिर में अंदर भले ही सुरक्षा की बौद्ध व्यवस्था हो, बाहर तो बिहार पुलिस का पहरा रहता ही है। जिस तरह के विस्फोट हुए हैं उससे क्या इस बात पर यकीन किया जा सकता है कि कोई बड़ी आतंकी कार्रवाई अंजाम दी गई और बिहार पुलिस भोर की नींद सोती रह गई?  अगर बड़ी आतंकी कार्रवाई ही हुआ करें तो पाकिस्तान की मस्जिदों में होनेवाले विस्फोटों को क्या नाम देना होगा? अगर दिल्ली और बिहार पुलिस यह कह रही है कि उनके पास सूचनाएं थीं, तो कम से कम उनकी 'सूचनाओं के स्तर वाली आतंकी कार्रवाई' यह नहीं हो सकती जिसे अंजाम दिया गया है। इसलिए जो हुआ उसे भूलकर महाबोधि मंदिर की सुरक्षा व्यवस्था को पुख्ता करना पहली प्राथमिकता होनी चाहिए।

लेकिन जो हुआ उसके शुरूआती संकेत यही है कि महाबोधि मंदिर में आतंकी कार्रवाई नहीं बल्कि राजनीतिक रंजिश की कार्रवाई को अंजाम दिया गया। इश शक का सबसे पुख्ता आधार बम विस्फोट ही है। जिन स्थानों पर बम प्लांट किये गये थे वे मंदिर परिसर में कम महत्व के स्थान थे। यानी, कम तीव्रता वाले इन विस्फोटों से मंदिर परिसर को कोई नुकसान न पहुंचे, मानों इसका पूरा ध्यान रखा गया था। राजनीतिक रंजिश की गंध सूंघने के दो संभावित कारण हो सकते हैं। सोशल मीडिया पर भी इस संबंध में गया के ही रहनेवाले एक वकील मदन तिवारी ने सवाल उठाया है कि ये धमाके चौंकानेवाले नहीं बल्कि हंसानेवाले हैं। गया वासियों के लिए इस तरह के फुलझड़ी बम विस्फोट कोई आतंकी कार्रवाई नहीं हुआ करते हैं। मदन तिवारी सवाल उठाते हैं कि अगर वास्तव में यह कोई इस्लामिक आतंकी कार्रवाई थी तो फिर मंदिर में मूल को छोड़कर परिसर को निशाना क्यों बनाया गया? और बम भी इतने शक्तिशाली थे कि मेज कुर्सी तोड़ने के अलावा कुछ नहीं कर सके। हां, दो बौद्ध सन्यासी जरूर घायल हो गये जिनका स्थानीय अस्पताल में ही इलाज भी चल रहा है और ईश्वर की कृपा से उन्हें कोई खतरा नहीं है। 

अब आखिर में वही पहलेवाली बात कि क्या महाबोधि मंदिर में विस्फोट का कोई राजनीतिक कनेक्शन भी हो सकता है? क्या लंबे समय से चला आ रहा हिन्दू बौद्ध विवाद या फिर मोदी नीतीश झगड़े का इस विस्फोट से कोई लेना देना हो सकता है? आखिर क्या कारण है कि भाजपा के एक स्थानीय नेता नीतीश का विरोध करने बोधगया पहुंच गये और सीधे नीतीश कुमार को इसके लिए जिम्मेवार ठहराने लगे? आखिर क्या कारण है कि स्थानीय भाजपा इस घटना को नीतीश की नाकामी बताकर इस विस्फोट का राजनीतिकरण करना चाहती है? आखिर क्या कारण है कि इस विस्फोट को बर्मा में चल रहे मुस्लिम बौद्ध विवाद से जोड़कर दिखाने की कोशिश की जा रही है? ये सवाल एनआईए की जांच के दायरे में अगर आते हों तो उन्हें अपनी जांच के दायरे में ये सवाल भी जरूर शामिल करना चाहिए?

No comments:

Post a Comment