Sunday, July 7, 2013

जेएनयू में होगी आदिवासी साहित्‍य पर राष्‍ट्रीय संगोष्‍ठी

जेएनयू में होगी आदिवासी साहित्‍य पर राष्‍ट्रीय संगोष्‍ठी

देश के प्रतिष्ठित विश्‍विद्यालय जेएनयू, नई दिल्ली के भारतीय भाषा केन्‍द्र में 29 और 30 जुलाई को 'आदिवासी साहित्‍य : स्‍वरूप और संभावनाएं' विषय पर दो दिवसीय राष्‍ट्रीय संगोष्‍ठी का आयोजन किया जाएगा. इसमें देशभर से आदिवासी साहित्‍य के विशेषज्ञ भाग लेंगे. गोष्‍ठी के संयोजक डॉ. गंगा सहाय मीणा ने बताया कि 'स्‍त्री लेखन और दलित लेखन के बाद अब साहित्‍य और शोध के गलियारों में आदिवासी लेखन अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुका है. आदिवासी साहित्‍य की परंपरा बहुत पुरानी है लेकिन वह अब तक आदिवासी समाज के समान ही उपेक्षा का शिकार रहा है.

आदिवासी समाज की चिंताओं से संवाद करने के लिए आदिवासी साहित्‍य एक सशक्‍त माध्‍यम बन सकता है. इस वक्‍त देश-विदेश में आदिवासी साहित्‍य से जुड़े विषयों पर बड़ी संख्‍या में शोध कार्य हो रहा है, बड़ी संख्‍या में आदिवासी भाषाओं में पत्र-पत्रिकाएं निकल रही हैं. ऐसे समय में आदिवासी साहित्‍य के विविध पक्षों पर बात करते हुए उसके स्‍वरूप की पहचान करना और संभावनाओं की तलाश लाजिमी है. इसी लक्ष्‍य को ध्‍यान में रखते हुए इस राष्‍ट्रीय संगोष्‍ठी का आयोजन किया जा रहा है. इसमें देशभर से अलग-अलग भाषाओं, अलग-अलग क्षेत्रों और विभिन्‍न आदिवासी समुदायों व उनके साहित्‍य से जुड़े विशेषज्ञ भाग लेंगे.'

गोष्‍ठी की औपचारिक घोषणा करते हुए भारतीय भाषा केन्‍द्र के अध्‍यक्ष प्रो. रामबक्ष ने कहा कि 'जेएनयू में इस तरह की गोष्‍ठी निश्चिततौर पर आदिवासी साहित्‍य की दशा और दिशा पर एक समझ बनाने में मदद करेगी'. गोष्‍ठी में भाग लेने वाले आदिवासी साहित्‍य के विद्वानों में डॉ. रोज केरकेट्टा (झारखंड), निर्मला पुतुल (झारखंड), वाहरू सोनवणे (महाराष्‍ट्र), रमणिका गुप्‍ता (दिल्‍ली), हरिराम मीणा (राजस्‍थान), अनुज लुगुन (झारखंड), डॉ. धनेश्वर मांझी (विश्वभारती शांति निकेतन), अश्विनी कुमार पंकज (रांची), जोवाकिम टोप्पनो (पटना), नारायण (केरल), प्रो. महेश अगुस्‍टीन कुजूर (झारखंड), सुषमा असुर (झारखंड), श्‍यामचरण टुडु, काशराय कुदाद, जवाहरलाल बांकिरा आदि प्रमुख हैं.


http://bhadas4media.com/state/delhi/12845-2013-07-07-09-02-36.html

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