Friday, May 3, 2013

हरियाणा में डेढ़ दशक में बढ़ी हैं दलितों पर अत्याचार की घटनायें

हरियाणा में डेढ़ दशक में बढ़ी हैं दलितों पर अत्याचार की घटनायें


हरियाणा के पबनावा गाँव की दलित बस्ती में दबंगों द्वारा हमले की तथ्यात्मक रिपोर्ट  

15 अप्रैल 2013 के समाचारपत्र दैनिक जागरण में हरियाणा प्रदेश के कैथल जिले के गाँव पबनावा की दलित बस्ती पर गाँव के ही दबंगों द्वारा हमले की खबर के आधार पर दिल्ली के विभिन्न प्रगतिशील, जनवादी एवम् क्रान्तिकारी संगठनों की दिनाँक 22-4- 13 को एक बैठक हुयी, बैठक में पबनावा गाँव की दलित बस्ती पर हुये  हमले का सच जानने के लिये एक फैक्ट-फाइंडिंग टीम का गठन किया गया। 25 अप्रैल 2013, को तीन सदस्यीय टीम दिल्ली से प्रातः सवा छह बजे पबनावा गाँव के लिये रवाना हुयी। टीम में जाति उन्मूलन आन्दोलन के संयोजक जे.पी. नरेलान्यू डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इण्डिया के महासचिव अरूण मांझी और मजदूर नेता के.के. नियोगी शामिल थे। जाति उन्मूलन आन्दोलन के संयोजक जे.पी. नरेला ने हमें फैक्ट फाइंडिंग टाम की रिपोर्ट भेजी है जो निम्नवत् है–

दलित बस्ती पर हमले के विरोध में हरियाणा के विभिन्न संगठनों द्वारा प्रदर्शन एवम् रैली

 टीम के सदस्यों को यह सूचना थी कि इस दलित उत्पीड़न की घटना के विरोध में 25 अप्रैल 2013 को हरियाणा प्रदेश के विभिन्न संगठन इकट्ठे होकर कैथल में डी. सी आफिस पर प्रदर्शन करने जा रहे हैं, इसके लिये सभी संगठनों को कैथल के जवाहर पार्क में इकट्ठा होना हैए इसलिये टीम, विरोध प्रदर्शन में शामिल होने के लिये करीब चार घण्टे के सफर के बाद सवा दस बजे पहले कैथल के जवाहर पार्क, में पहुँची। सभा के आयोजकों ने टीम के सदस्यों से सभा के समक्ष अपनी बात रखने का आग्रह करने पर टीम के सदस्य जे.पी. नरेला ने सभा को सम्बोधित करते हुये कहा कि पहले तो हम टीम की ओर से आपके इस आन्दोलन का समर्थन करते हैं। दूसरा, हरियाणा में दलित उत्पीड़न की घटनाओं के विरोध में चल रहा यह आन्दोलन एक सकारात्मक कदम है। तीसरी बात, हरियाणा के सभी संगठनों को मिलाकर इससे भी बड़ा एक आन्दोलन खड़ा करने का प्रयास साथ-साथ चलना चाहिये। चौथा, भारत की राजधानी दिल्ली में भी हरियाणा के विभिन्न संगठनों की तरफ से दस्तक दी जानी चाहिये और एक बड़ा विरोध प्रदर्शन किया जाना चाहिये, ताकि केन्द्र सरकार की तरफ से हरियाणा की राज्य सरकार पर एक दबाव बनाया जा सके।

घटना के फलस्वरूप विभिन्न संगठनों द्वारा दिनाँक 25 अप्रैल 2013 को डी.सी. कार्यालय पर प्रदर्शन के दौरान मुख्यमन्त्री को दिये गये ज्ञापन में दर्जनों संगठनों की तरफ से माँग की गयी है कि 1) एफ.आयी.आर. में दर्ज सभी दोषी व्यक्तियों को तुरन्त गिरफ्तार किया जाये; 2) इस घटना की पूर्व आशंका एवम् डी.सी.पी. कार्यालय को ठोस सूचना दिये जाने के उपरान्त सुरक्षा एवम् पुख्ता प्रबन्ध न करने के दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही की जाये; 3) दलित बस्ती में की गयी तोड़फोड़, लूटपाट व आगजनी में हुये नुकसान की तुरन्त भरपायी करवाई जाये तथा अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 के नियमानुसार मुआवजा दिलाया जाये; 4) घटना से मौसमी कार्य में हुयी क्षति की पूर्ति के लिये प्रति परिवार दस क्विंटल अनाज एवम् वैकल्पिक रोजगार की तुरन्त व्यवस्था की जाये; 5) घटना में घायल व्यक्तियों की निशुल्क चिकित्सा की व्यवस्था की जाये; 6) घटना में उत्पीड़ित परिवारों की सुरक्षा की स्थाई व्यवस्था की जाये; 7) अन्तर्जातीय विवाह करने वाले दम्पत्ति को प्रोत्साहन राशि तुरन्त मुहैय्या कराई जाये; 8) अनुसूचित जाति उत्पीड़न रोकने के लिये उत्पीड़न विरोध निवारण कमेटी का जिलाहरियाणा के पबनावा गाँव की दलित बस्ती में दबंगों द्वारा हमले की तथ्यात्मक रिपोर्ट   स्तर पर गठन किया जाये; 9) गाँव के पीड़ित परिवरों से सभी दलित परिवारों के लिये शौचालय बनवाया जाये।

इस विरोध प्रदर्शन के बाद जिलाधीश कार्यालय से टीम के सभी सदस्य करीब दोपहर डेढ़ बजे पबनावा गाँव की ओर रवाना हुये। हम सभी टीम के सदस्य दोपहर दो बजे पबनावा की दलित बस्ती के गेट के पास पहुँचे ! हमने देखा कि करीब 15-20 पुलिस वाले दलित बस्ती के प्रवेश द्वार पर मौजूद हैं, कई तो चारपायी पर लेटे आराम फरमा रहे हैं, कई अलसाए ढंग से बैठे हैं। यह तो लग ही नहीं रहा था कि इतनी बड़ी घटना के बाद ये पुलिस कर्मी दलित बस्ती की सुरक्षा के लिये अपनी ड्यूटी मुस्तैदी के साथ निभा रहे हैं। बहुत ही अनमने, अनचाहे ढंग से, जैसे कि केवल अपनी ड्यूटी निभाने के लिये यहाँ बैठे हैं, और वह भी एक दलित बस्ती की सुरक्षा का कार्य जैसे उनकी मजबूरी बन गया है। जब हम गेट पर पहुँचे थे तो अलसाई आँखों से उनमें से कई बैठे हुये सिपाहियों ने हमारी ओर देखा और हमने भी उनकी ओर देखा,! जायजा लिया और आगे निकल गये। उन्होंने हमसे यह भी नहीं पूछा कि आप कौन हो और कहाँ से आये हो। इसलिये हमने भी जबरदस्ती बताने की कोई आवश्यकता नहीं समझी।

हमले की शिकार दलित बस्ती के लगभग हर घर का टीम ने मुआयना किया और बस्ती में ज्यादातर मकान खाली पड़े थे। चन्द मकानों में इक्का-दुक्का पुरुष व महिला मौजूद थे। मुआवने के साथ-साथ टीम ने जो भी लोग दलित बस्ती में मौजूद थे उनसे घटना के सम्बन्ध में पूछताछ की और जानकारी ली। करीब दस लोगों का साक्षात्कार लिया।

             घटना और उसकी पृष्ठभूमि

इस पबनावा गाँव के सूर्यकान्त नामक 21 वर्षीय युवक ने, जो पास के ही एक शहर में छोटी-मोटी नौकरी करता है और चमार जाति से सम्बन्धित है, इनके पिता श्री महेन्द्रपाल जो कि एक ईंट भट्ठा मजदूर है और गरीबी रेखा के नीचे (बी.पी.एल.) के दायरे में आते हैं, ने मीना नामक 19 वर्षीय युवती, सुपुत्री श्री पृथ्वीसिंह, जो कि रोड़ जाति से सम्बन्धित है, और गरीब किसान की श्रेणी में आते हैं, से 8 अप्रैल 2013 को चंडीगढ़ हाई कोर्ट में विवाह कर लिया। हाई कोर्ट में इसलिये कि डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में उनको अपनी जान का खतरा था। इस अन्तर्जातीय विवाह के बदले 13 अप्रैल 2013, शनिवार, रात करीब नौ बजे रोड़ जाति के करीब 600 लोगों ने चमार समुदाय की बस्ती पर लाठी, कुल्हाड़ी, बन्दूक, देशी कट्टा इत्यादि हथियारों के साथ हमला बोल दिया। करीब 125 मकानों के दरवाजे तोड़े, घरों का सामान तोड़फोड़ डाला, कई घरों के टेलिवीजन, फ्रिज तोड़ डाले, लगभग 10 मोटरसाइकलें तोड़ दी। नरेश कुमार, सुपुत्र श्री कलीराम, ने बताया कि उनके घर का टेलीविजन व ड्रेसिंग टेबल तो तोड़ा ही, साथ ही करीब 29000 रुपये भी लूट कर ले गये। दर्शनसिंह ने बताया कि उनके गैस सिलेन्डर में आग लगाकर उनके मकान में विस्फोट करने का प्रयास किया, ताकि विस्फोट के बाद घर का कोई भी सदस्य बच न पाए। घरों में लगी पानी की टंकियाँ तोड़ डाली, नल तोड़ दिये गये, बस्ती में कई परचून की दुकानदारी कर रहे लोगों के दुकानों का सामान उठा ले गये और बाकी सामान तोड़फोड़ दिया गया।  हमले के दौरान तीन लोगों को गम्भीर चोटें आयीं और रोहतक के सिविल अस्पताल में उनको भर्ती कराया गया।

       पुलिस प्रशासन की भूमिका

दलित बस्ती में मौजूद दर्शन सिंह नामक युवक से हमने पूछा कि क्या घटना की आशंका की जानकारी आपको थी। जवाब में उन्होंने बताया कि दिनाँक 13 अप्रैल 2013 को रोड़ जाति के समुदाय की दिन (दोपहर) में एक पंचायत हुयी थी, जिसमें करबी 500 लोग मौजूद थे। उसी में दलित बस्ती पर हमले का निर्णय लिया गया था।

मैने करीब ढाई बजे दोपहर ढ़ाड़ां गाँव के थाना प्रभारी एवम् डी.एस.पी. कार्यालय में फोन कर हमले की आशंका की सूचना दी। दूसरी बार मैने करीब सायं छह बजे पुनः फोन किया। उधर से जवाब मिला कि हम पुलिस कर्मी सुरक्षा हेतु भेज रहे हैं। तीसरी बार करीब साढ़े आठ बजे रात को मैने थाना प्रभारी, ढ़ाड़ां एवम् डी.एस.पी. कार्यालय को फोन किया। दिनाँक 13 अप्रैल 2013 को ही फोन पर पुलिस वालों ने बताया कि दलित बस्ती के ही एक व्यक्ति बलवंत सिंह का भी इस सम्बन्ध में फोन आया था। उसके बाद करीब 15-20 पुलिस कर्मी दलित बस्ती से दूर घूमते दिखाई दिये। जैसे वे दलित बस्ती की सुरक्षा के लिये नहीं, कोई सैर-सपाटा करने आये थे। फिर रात नौ बजे पुलिस की मौजूगदी में ही दलित बस्ती पर हमला शुरू हुआ। दर्शनपाल ने बताया कि घटना पुलिस प्रशासन, स्थानीय राजनीतिज्ञ के गठजोड़ की शह पर ही घटित हुयी है।

इस घटना के बाद गाँव ढ़ाड़ां के थाना प्रभारी ने अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम, 1989 के तहत मामला दर्ज कर करीब 22 लोगों को गिरफ्तार किया। प्राथमिक रिपोर्ट में कुल 52 व्यक्ति नामजद हैं। 30 व्यक्ति अभी फरार हैं। एफ.आई.आर. में धारा 148/149/333/452/427/307/395/332/353/186/120बी लगायी गयी है। एफ.आई.आर. नम्बर 39, दिनाँक 14 अप्रैल 2013, पी.एस. ढ़ाड़ां, जिला कैथल, थाना प्रभारी विक्रम सिंह ने मामला दर्ज किया।

एफ.आई.आर. में बताया गया है कि चंदगीराम, पुत्र श्री छज्जूराम, जाति चमार, गाँव पबनावा, उम्र करीब 65 साल ने रिपोर्ट दर्ज की है कि इस अन्तर्जातीय विवाह की सूचना के बाद रोड़ जाति के करीब 500-600 लोगों की 13 अप्रैल 2013 को पबनावा गाँव में एक पंचायत हुयी। पंचायत में निर्णय लिया गया कि रोड़ बिरादरी की लड़की को चमार जाति का लड़का भगाकर ले गया है, जिसमें हमारी बिरादरी की नाक कट गयी है। इसी रंजिश के कारण सारी पंचायत ने फैसला कर योजनाबद्ध तरीके से हमारे मकानों पर ताबड़तोड़ हमला कर दिया और हमारे को ढे़ड, चमार, जल्लाद, कह रहे थे। हमला देशी कट्टे से लेकर लाठियों, डंडों, कुल्हाड़ियों, तलवारों से किया गया है। उपरोक्त घटना और एफ.आई.आर. के बाद युवक एवम् युवती दोनों हरियाणा पुलिस के सेफ हाउस में हैं।

इसके बाद दलित समुदाय एवम् युवक के परिवार पर दबाव डाला जा रहा है कि वे इन दोनों की शादी तुड़वाकर उनकी लड़की को उनके हवाले कर दें। किन्तु चमार समुदाय ने ऐसा करने से इन्कार कर दिया। श्रीमति गीता, शिक्षामन्त्री, हरियाणा सरकार ने दलित परिवारों पर समझौते का भी दबाव डाला और कहा कि एक ही गाँव में शादी करना ठीक नहीं होता है। घटना के पहले ही सुरक्षा कारणों की वजह से दलित परिवारों की ज्यादातर महिलाएं और बच्चे पबनावा गाँव से हटाकर दूसरी जगह भेज दिये गये थे। फिलहाल पबनावा गाँव में दलित परिवारों में ज्यादातर पुरुष ही मौजूद हैं। घटना के बाद दलित बस्ती के गेट पर लगभग 15-16 निहत्थे पुलिस कर्मी सुरक्षा के लिये मौजूद हैं। पबनावा गाँव में गये जाँच दल के एक सदस्य ने गाँव के दलित समुदाय के एक व्यक्ति लक्ष्मीचंद से पूछा कि हरियाणा में दलित उत्पीड़न की घटनायें निरन्तर क्यों हो रही है? इस पर लक्ष्मीचंद का कहना है कि दबंग जातियों को कानून व्यवस्था का डर नहीं है और सरकार भी उन्हीं की है।

घटनाक्रम के बाद दलितों को कुछ राहत सामग्री, राशन इत्यादि सरकार की ओर से भेजी गयी, लेकिन दलितों ने माँग की है कि जब तक सभी आरोपी गिरफ्तार नहीं कर लिये जाते हैं, हम लोग सरकार की कोई भी राहत मंजूर नहीं करेंगे। टीम जब तथ्यों की जानकारी जुटा रही थी, तभी सरकार की तरफ से दलितों के टूटे घरों के दरवाजे बनाने के लिये दरवाजे की नाम लेते हुये कई कर्मचारी घर-घर जा रहे थे। दलित बस्ती के ही एक व्यक्ति दर्शनसिंह ने टीम को बताया कि रोड़ जाति की खेतों में मजदूरी करके गेहूँ की फसल काटकर साल भर का अनाज जमा कर लेते हैं। वह हमारा नुकसान हो गया है। अब धान की खेती का समय आ रहा है। अब रोड़ जाति के लोगों के खेतों में और काम नहीं कर पायेंगे, इसलिये भविष्य में खाने के भी लाले पड़ने वाले हैं। अभी कुछ आने-जाने वाले संगठन, व एन.जी.ओ. वगैरह हम लोगों के खाने के लिये कुछ आर्थिक सहायता दे जा रहे हैं। इसलिये अभी भुखे मरने की नौबत नहीं आयी है।

पबनावा गाँव की सामाजिक-आर्थिक स्थिति

हरियाणा में जिला कैथल के गाँव पबनावा की कुल आबादी लगभग 18000 के करीब हैं, मतदाता करीब 8000 हैं। इस आबादी में चमार जाति की आबादी 1200 के करीब है। बाल्मीकियों के घर 75-80 के करीब है, बाजीगर जाति के लगभग 30 परिवार हैं, नाइयों के लगभग 50 घर हैं, कुम्हारों के 50 घर, बढ़ई 150 घर, ब्राह्मण करीब 100 घर, रोड़ जाति के करीब 200 घर और 50 घर मुस्लिमों के हैं (साथ में एक मस्जिद भी है)। लगभग 20-20 एकड़ कृषि भूमि रोड़ जाति के दो परिवारों के पास है। बाकी मध्यम व छोटे किसान हैं। ग्रामसभा की लगभग 30 एकड़ जमीन है। दलित परिवारों में कुछ परिवारों के पास एक एकड़ के आसपास जमीन है, जिससे उनके खाने भर की भी पूर्ति नहीं हो पाती, इसलिये ज्यादातर दलित रोड़ जाति के खेतों में मजदूरी करते हैं। कई परिवार राजगिरी मिस्त्री का कार्य और कई परिवार अन्य मजदूरों के काम कर अपना गुजर-बसर करते हैं। करीब 17-18 दलित व्यक्ति छोटी-मोटी सरकारी नौकरी भी करते हैं। इनमें ज्यादातर चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी हैं। चमार जाति के लगभग 50 परिवार बी.पी.एल. में आते हैं। इनमें शिक्षा का स्तर कुल करीब 5-6 नौजवान इंटर कॉलेज की शिक्षा व 4-5 स्नातक की शिक्षा ले रहे हैं। कई दलित परिवार गाय-भैंस भी पालते हैं।

हरियाणा में दलित उत्पीड़न की घटनायें

दलितों पर अत्याचार की घटनायें पिछले डेढ़ दशकों से निरन्तर बढ़ी हैं। हरियाणा में काँग्रेस की सरकार एक विशेष जाति की सरकार बनकर रह गयी है। दूसरी तरफ, एक विशेष जाति के मध्ययुगीन बर्बर सामन्ती मूल्यों से ग्रसित खाप पंचायतें हरियाणा प्रदेश में निर्णायक भूमिका में मौजूद हैं। अन्तर्जातीय विवाहों के विरोध में पिछले दिनों कई फैसले ये खाप पंचायतें सुना चुकी हैं और ताकत के दम पर जबरदस्ती लागू की भी करवा चुकी हैं। हुड्डा सरकार के शासनकाल में दलित उत्पीड़न की घटनायें दुलिना काण्ड, जिसमें 15 अक्टूर 2002 को झज्जर जिले में 5 दलितों की हत्या कर दी गयी थी। गोहाना काण्ड : सोनीपत जिले के गोहाना में 2007 में दलितों के घरों पर हमला कर उनके घरों का सामान तोड़फोड़ कर घरों में आग लगायी गयी, फिर लारा नाम के दलित युवक को गोली मार दी गयी। दौलतपुर काण्ड : 15 फरवरी 2012 को उकलाना के दौलतपुर गाँव में राजेश नाम के दलित युवक का हाथ इसलिये काट दिया गया कि उसने दबंगों से मटके से पानी पी लिया था। पट्टी गाँव काण्ड: सन् 2012 में पट्टी गाँव के एक दलित युवक ने दबंग जाति के युवती से प्रेम विवाह कर लिया तो दबंगों की पंचायत ने दलित युवक का मुँह काला कर पूरे गाँव में घुमाया और उसके पिताश्री पर जुर्माना भी लगाया गया। डाबड़ा काण्ड : 9 सितम्बर 2012 को नाबालिग दलित लड़की से सामूहिक बलात्कार से दुखी पिता ने आत्महत्या कर ली। मिर्चपुर काण्ड : 19 अप्रैल 2010 के मिर्चपुर काण्ड में दलितों के 18 घरों में पेट्रोल और मिट्टी का तेल छिड़ककर आग लगा दी गयी थी जिसमें ताराचंद नाम के वाल्मिकी और उनके अपाहिज बेटी सुमन को घर में ही जिन्दा जला दिया गया था। भगाना काण्ड : मई 2012 मे दबंगों ने सामूहिक ग्रामसभा की जमीन और दलितों के घरों के सामने के चबूतरे पर कब्जा जमा लिया था और दलितों के प्रतिरोध के बाद दबंगों ने पंचायत कर समस्त दलित परिवारों का सामाजिक बहिष्कार कर दिया। 21 मई 2012 को करीब 70 दलित परिवारों को गाँव से पलायन करना पड़ा। मदीना काण्ड : रोहतक जिला के गाँव मदीना में अप्रैल 2013 में दबंग जाति के व्यक्यिों द्वारा दो दलितों की हत्या कर दी गयी।

इन सारी घटनाओं में राज्य मशीनरी ने सम्विधान में दर्ज दलितों के नागरिक अधिकारों की धज्जियाँ उड़ा दी। पुलिस ने दबंग जातियों को शह दी कि वे दलित समुदाय के ऊपर खुले आम हमले करें। सामाजिक न्याय की अवधारणा की भी धज्जियाँ उड़ायी और साथ में दुनिया के सबसे मजबूत, सबसे बड़े और सबसे महान लोकतन्त्र की भी धज्जियाँ उड़ायी। हरियाणा में तो चुनावी लोकतन्त्र भी मृतप्रायः है, क्योंकि दलित समुदाय वहाँ पर दबंगों के दबाव में वोट डालते हैं और आरक्षित सीटों पर दबंगों के इशारे पर ही जीतते हैं और उन्हीं की चाटुकारिता करते हैं। दलित समुदाय के कल्याण के लिये वे कुछ भी नहीं कर पाते। सम्विधान की रक्षा करने वाली हरियाणा पुलिस, प्रशासन एवम् सरकार अपने घर-गाँव से पलायन किये हुये दलितों की पुनर्वास में आज तक कुछ भी नहीं कर पायी हैं। मिर्चपुर और भगाना के दलित परिवार आज तक दर-ब-दर की ठोकरें खाते घूम रहे हैं। हरियाणा की ये घटनायें भारत के सम्विधान और लोकतन्त्र को शर्मशार कर देने के लिये काफी है। गत वर्ष के दो माह के भीतर 16 सामूहिक बलात्कार की घटनायें हुयीं जिसमें 12 दलित महिलायें थीं।

दलित उत्पीड़न का भौतिक आधार और हमारी माँग 

सन् 1947 में जब काँग्रेस पार्टी के हाथ में सत्ता आयी तो नीति अख्तियार की गयी थी कि भारत में जाति प्रथा को बनाए रखने में ही भारत के शाासक वर्ग का हित है। इसलिये काँग्रेस ने कोई भी भूमि सुधार लगभग नहीं किया। नेहरू के खोखले समाजवाद,जिसके तहत पब्लिक सेक्टर का निर्माण हुआ, लेकिन भूस्वामियों की जमीन को उनके पास ही ज्यों का त्यों रहने दिया। आज उसी का नतीजा का है कि जमीन, उद्योगों एवम् अन्य संसाधनों पर ऊपरी जातियों का कब्जा बना हुआ है और दलित आबादी 90ः हिस्सा मजदूर है। इसी कारण से आज दलितों पर हरियाणा एवम् देश के विभिन्न राज्यों में अत्याचार की घटनायें निरन्तर घट रही हैं। इस समस्या के निवारण के लिये भारत में क्रान्तिकारी भूमि सुधार की आवश्यकता है। तमाम दलित पार्टियाँे एवम् संगठनों के स्थानीय कार्यकर्ता तो दलित उत्पीड़न के घटनाओं के विरोध में दिखाई पड़ने लगे हैं, किन्तु इनके नेताओं के लिये ये घटनायें कोई मायने इसलिये नहीं रखती हैं कि इनको वोट बैंक की राजनीति करनी है और वर्तमान व्यवस्था की सेवा करनी है। इसलिये इनके पास दलित उत्पीड़न की रोकथाम और एवम् जाति प्रथा की समाप्ति के लिये कोई भी जन आन्दोलन करने की नियत दिखाई नहीं देती है।

हमारा यह मानना है कि:                                                                

 1) पबनावा गाँव के दलित बस्ती पर किये गये हमले के दोषी सभी व्यक्तियों को तुरन्त गिरफ्तार कर न्यायोचित  कानून  कार्यवाही की जाये;

2) इस हमले में हुयी आर्थिक नुकसान की क्षतिपूर्ति शीध्र अति शीध्र की जाये;

3 अन्तर्जातीय वैवाहिक जोड़े की सरकार सुरक्षा की गारन्टी करे;

4) पबनावा गाँव के दलितों की सुरक्षा की गारन्टी की जाये;

5) घटना को रोकने में असफल जिम्मेदार पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही कर बर्खास्त किया जाये;

6) शादी तुड़वाने के दबंगों के प्रयास पर तुरन्त रोक लगायी जाये;

7) एस.सी./एस.टी. 1989 के नियमानुसार दलितों को तुरन्त मुआवजा दिया जाये;

8) दलित बस्ती के तमाम लोगों को रोजगार की सुविधा मुहैय्या की जाये;

9)दलित उत्पीड़ित तमाम इलाकों को प्रौन घोषित किया जाये।

10-मध्ययुगीन, सामन्ती, बर्बर, तालिबानी खाप पंचायतों पर रोक लगायी जाये !

11-क्रांतिकारी  भूमिसुधार  लागू  किया  जाये !

 

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