Wednesday, April 17, 2013

Fwd: [Display India] बहुजनों का सामाजिक परिवर्तन का आन्दोलन न तो...



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From: Nilakshi Singh <notification+kr4marbae4mn@facebookmail.com>
Date: 2013/4/17
Subject: [Display India] बहुजनों का सामाजिक परिवर्तन का आन्दोलन न तो...
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बहुजनों का सामाजिक परिवर्तन का आन्दोलन न तो...
Nilakshi Singh 4:47pm Apr 17
बहुजनों का सामाजिक परिवर्तन का आन्दोलन न तो पूंजीवाद के समर्थन में है और न ही समाजवाद के समर्थन में. सामाजिक परिवर्तन का बहुजन आन्दोलन शोषण के विरुद्ध खड़ा हुआ एक बिलकुल अलग किस्म का आन्दोलन है. मार्क्सवादियों को बहुजनों से यह उम्मीद क्यों करनी चाहिए कि वह उनके पीछे हाथ बाँधकर चुपचाप खड़े हो जाएँगे? जबकि मार्क्सवादियों ने अब तक ऐसा कोई उदाहरण प्रस्तुत नहीं किया है कि वह बहुजनों के बहुत बड़े हितैषी हैं. नब्बे के दशक में देश की एक बड़ी आबादी के लिए जब मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू की गई तब भी एक-आध को छोड़कर मार्क्सवाद के लगभग हर गुट ने इसका विरोध किया था. माना कि आरक्षण से बहुजनों की स्थिति में कोई आमूल-चूल परिवर्तन नहीं हो गया लेकिन इसका कारण यह नहीं है कि आरक्षण की अवधारणा ही गलत है. सच तो यह है कि आरक्षण ठीक से कभी लागू ही नहीं किया गया. आज भी आरक्षण का क्रियान्वयन पचास फीसदी भी नहीं हो सका है. आज तक ऐसा कभी नहीं हुआ कि आरक्षण के समुचित क्रियान्वयन के लिए मार्क्सवादियों ने कभी कोई आंदोलन किया हो. आंदोलन करना तो दूर की बात है, मार्क्सवादियों ने अपने द्वारा शासित राज्यों में भी आरक्षण ठीक से लागू नहीं किया. इसके विपरीत मार्क्सवादी हमेशा मजदूरी बढ़ाने के लिए आंदोलन करने को क्यों तैयार रहते हैं?
दरअसल मजदूरी अधिक दिलाने वाले सभी आंदोलनों का यही उद्देश्य होता है कि मजदूरी करने वाले मजदूरी करके जी-खा सकें ताकि वह हमेशा मजदूरी ही करते रहें और मजदूरी छोड़कर अन्य कार्यों की तरफ ध्यान ही न दें. इसलिए शिक्षा और नौकरी के अलावा बाकी सभी तरह के आंदोलन बहुजनों को पीछे ले जाने की कुत्सित चाल हैं. याद रखिए, सत्ता की चाबी मजदूरों के हाथ कभी नहीं होती. बहुजनों को मजदूरी बढ़ाने टाइप के आंदोलनों से सतर्क रहने की आवश्यकता है.
शिक्षित बनें, संगठित हों और संघर्ष करें !!

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