Wednesday, July 28, 2010

Fwd: [Hindi IWP] जीडी अग्रवाल का आमरण अनशन नवें दिन भी जारी



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From: Hindi Water portal <hindi@lists.indiawaterportal.org>
Date: 2010/7/29
Subject: [Hindi IWP] जीडी अग्रवाल का आमरण अनशन नवें दिन भी जारी
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प्रो. अग्रवाल के साथ खड़े हुए गोविंदाचार्य, अनशन का आज दसवां दिन

Author: 
इंडिया वाटर पोर्टल (हिन्दी) टीम
जीडी अग्रवाल का अनशनजीडी अग्रवाल का अनशनमातृ सदन, हरिद्वार। 29 जुलाई 2010। प्रख्यात पर्यावरणविद् और वैज्ञानिक प्रोफेसर जीडी अग्रवाल जी का आमरण अनशन आज दसवें दिन भी जारी है। हरिद्वार के मातृसदन में लोहारीनागा पाला जल विद्युत परियोजना के खिलाफ प्रो. अग्रवाल के अनशन को 27 जुलाई मंगलवार देर सायं प्रो. जीडी अग्रवाल को समर्थन देने के लिए राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन के संस्थापक व चिंतक गोविन्दाचार्य और गंगा महासभा के महामंत्री आचार्य जितेंद्र पहुंचे। गोविन्दाचार्य ने गंगा को अविरल व निर्मल बहने देने की वकालत की। गोविंदाचार्य इस मुद्दे पर माहौल तैयार करने का कार्य करेंगे। 

इस दौरान पत्रकारों से बातचीत में गोविंदाचार्य ने कहा कि गंगा राष्ट्रीय आस्था से जुड़ा सवाल है। गंगा को अविरल और निर्मल बहने देना चाहिए। रोजगार व ऊर्जा के दूसरे विकल्प की तलाश की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि विकास मानव केंद्रित नहीं बल्कि प्रकृति केंद्रित होना चाहिए। सभी दल दोहरेपन के शिकार हैं। 


वेब/संगठन: 
raviwar com
Source: 
रोली शिवहरे और प्रशांत दुबे रीवा से लौटकर

उसे यह नहीं मालूम है कि कोपेनहेगन में गरम हो रही धरती का ताप कम करने के लिये कवायद चली। उसे यह भी नहीं मालूम कि दुनिया भर से जंगल कम हो रहा है और उसे बचाने व नये सिरे से बसाने के प्रयास चल रहे हैं। उसे यह भी नहीं मालूम कि यदि जंगल बच भी गया तो उस पर कंपनियों की नज़र गड़ी है।

उसे मालूम है तो इतना कि पेड़ कैसे लगाये जायें और उन्हें कैसे बचाया जाये। पेड़ बचाने की धुन भी ऐसी कि एक छोटा जंगल ही लगा डाला। उसे नागर समाज की वन की परिभाषा भी नहीं मालूम लेकिन उसने बसा दिया 'प्रेम वन'। दीना ने वन क्यों लगाया ? इस पर मंद-मंद मुस्कराते हुये बड़े ही दार्शनिक अंदाज में वे कहते हैं " जीवन में किसी न किसी से तो मोहब्बत होती ही है, मैंने पेड़ों से मोहब्बत कर ली।" दीना ने तभी तो इस वन का नाम रखा है 'प्रेमवन '। 



गोमुख से गंगासागर तक पदयात्रा पर एक संन्यासी


Author: 
चौथी दुनिया
आचार्य नीरजआचार्य नीरजयदि यह पदयात्रा किसी नेता या अभिनेता की होती अथवा कोई रथयात्रा हो रही होती तो मीडिया इसकी पल-पल की जानकारी दे रहा होता, किंतु यह यात्रा एक संन्यासी कर रहा है, लिहाजा इसकी कहीं चर्चा नहीं हो रही, गोमुख से गंगासागर तक किनारे-किनारे पूरे ढाई हज़ार किलोमीटर लंबे मार्ग पर सर्दी, लू के थपेड़ों और बरसात के बीच इस संन्यासी की पदयात्रा गंगा की निर्मलता के लिए हो रही है। वह भी ऐसे मार्ग पर, जो कभी पारंपरिक यात्रा पथ नहीं रहा। कई स्थानों पर तो दूर-दूर तक सड़क ही नहीं है। 

उत्तर भारत की जीवन रेखा मानी जाने वाली गंगा नदी इन दिनों दोहरी मार झेल पही है। एक और व



विकास की गंगा में बह गयीं गंगा मैया

Source: 
वीएचवी। जुलाई, 2010

गंगोत्री के दर्शन को चलते चले जाइए लेकिन रास्ते में अपने प्रवाह-मार्ग में कहीं गंगा नहीं मिलेंगी। भागीरथी भी नहीं। उत्तराखंड के नरेंद्र नगर से चंबा तक सड़क मार्ग की यात्रा कर आगे बढ़िए और फिर देखिए महाकाय विकास के भीषण चमत्कार। अगर आपने 2005 के पहले कभी इस गंगोत्री के पथ पर गंगा के दर्शन किए होंगे तो निश्चित तौर पर आपकी आंखें ये देखकर फटी रह जाएंगी कि ये क्या हो गया है गंगा मां को? इसकी सांसे थम क्यों गई है? कहां है गंगा के प्रवाह की कल-कल ध्वनि? कहां हैं गंगा की उत्ताल तरंगे, इठलाती-बलखातीं लहरें और गंगा के पारदर्शी जल में गोते लगाते जलीय जीवों-मछलियों के नृत्य?

विलसन की विरासत को अपना मानने वाले लील गए गंगा को। हां, विलसन जिसके बारे में कहा जाता है कि 1859 में उसीने पहली बार गंगोत्री और आस-पास के गांव वालों को 'विकास की गंगा' के दर्शन कराए थे। महाराजा टिहरी से उसने कुछ वर्षों के लिए गंगोत्री और आस-पास के गांव-जंगल पट्टे पर लिए और फिर देवदार के घने जंगलों पर कहर बरस पड़ा। देवदार के पेड़ काट-काट कर उसके लट्ठे गंगा में बहा दिए जाते। ऋषिकेश और हरिद्वार में उन्हें एकत्रित कर फिर देश के अन्य इलाकों में विकास की गंगा बहाने के लिए भेजा जाने लगा।



गंगा पर विशेष

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Minakshi Arora
Chairperson-Water Community India
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Palash Biswas
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