Stop Urbanization, Stop the loot of Nature ...
Plzzzz Share It... Fast..... बदरीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग
पर स्थिति नंदप्रयाग के पास एक
छोटा सा गांव पुरसाड़ी। पांच
दिन से 22 परिवारों वाले गांव
का दूश्य बदला हुआ है। सड़क के एक
ओर टेंट लगाकर बनी रसोई में दस से ज्यादा गांवों की महिलाएं
भोजन बनाने में जुटी हैं। इनमें से कई
15 से 20 किलोमीटर पैदल
चलकर यहां पहुंच रही हैं। रसोई में
तीन शिफ्ट में दो हजार
लोगों के लिए 24 घंटे खाना पकाया जा रहा है। भोजन
बदरीनाथ राजमार्ग पर फंसे
यात्रियों के लिए है। सिर्फ
पुरसाड़ी ही नहीं, खाना 10
किलोमीटर दूर चमोली तक
पहुंचाया जा रहा है। वह भी निशुल्क।
दरअसल, मुसीबत की इस घड़ी में
पहाड़ का हर घर
दुखियारों की मदद में जुटा है।
महिलाओं ने घर और खेत के काम
छोड़ यात्रियों के लिए खाना बनाने में जुटी हैं। यह धान
की रोपाई का वक्त है, लेकिन
ग्रामीण में खेतों में जाने
की बजाए पीड़ितों के आंसू
पोछने निकल पड़े हैं। इसी कड़ी में
बदरीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग के आसपास बसे तेफना, सुनाली,
राजबगठी, मंगरोली, झूलाबगड़,
कंडारा, चमाली समेत दस से 15
गांवों की महिलाओं ने निर्णय
लिया कि इस माह धान
की रोपाई का काम छोड़ रसोई बनाई जाए। इस निर्णय के बाद
शुरू हुआ
यात्रियों की सेवा का कार्य।
रसोई में प्रशासन के पास
पहुंची भारी में मात्रा में
जमा खाद्य सामाग्री का इस्तेमाल
किया जा रहा है।
पुरसाड़ी से 12 किलोमीटर दूर
राजबगठी गांव से पैदल चलकर
भोजन बनाने आई
पुरणी देवी बताती हैं कि 'काम तीन शिफ्ट में चल रहा है। एक समूह
प्रात: चार बजे नाश्ता तैयार
करता है तो दूसरा समूह दस बजे से
दोपहर का भोजन तैयार
किया जाता है।
वहीं तीसरा समूह चार बजे से रात्रि का भोजन तैयार करने में
जुट जाता है।'
खाना बनाने में जुटी गौचर
निवासी राजेश्वरी नेगी और
मंगरोली गांव
की कमला देवी बताती हैं कि खाना चमोली तक पहुंचाने
के लिए ग्रामीणों ने अपने खर्च
पर एक वाहन किराए पर
लिया है। इससे थके मांदे
लोगों को समय पर भोजन
दिया जा सके।
पर स्थिति नंदप्रयाग के पास एक
छोटा सा गांव पुरसाड़ी। पांच
दिन से 22 परिवारों वाले गांव
का दूश्य बदला हुआ है। सड़क के एक
ओर टेंट लगाकर बनी रसोई में दस से ज्यादा गांवों की महिलाएं
भोजन बनाने में जुटी हैं। इनमें से कई
15 से 20 किलोमीटर पैदल
चलकर यहां पहुंच रही हैं। रसोई में
तीन शिफ्ट में दो हजार
लोगों के लिए 24 घंटे खाना पकाया जा रहा है। भोजन
बदरीनाथ राजमार्ग पर फंसे
यात्रियों के लिए है। सिर्फ
पुरसाड़ी ही नहीं, खाना 10
किलोमीटर दूर चमोली तक
पहुंचाया जा रहा है। वह भी निशुल्क।
दरअसल, मुसीबत की इस घड़ी में
पहाड़ का हर घर
दुखियारों की मदद में जुटा है।
महिलाओं ने घर और खेत के काम
छोड़ यात्रियों के लिए खाना बनाने में जुटी हैं। यह धान
की रोपाई का वक्त है, लेकिन
ग्रामीण में खेतों में जाने
की बजाए पीड़ितों के आंसू
पोछने निकल पड़े हैं। इसी कड़ी में
बदरीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग के आसपास बसे तेफना, सुनाली,
राजबगठी, मंगरोली, झूलाबगड़,
कंडारा, चमाली समेत दस से 15
गांवों की महिलाओं ने निर्णय
लिया कि इस माह धान
की रोपाई का काम छोड़ रसोई बनाई जाए। इस निर्णय के बाद
शुरू हुआ
यात्रियों की सेवा का कार्य।
रसोई में प्रशासन के पास
पहुंची भारी में मात्रा में
जमा खाद्य सामाग्री का इस्तेमाल
किया जा रहा है।
पुरसाड़ी से 12 किलोमीटर दूर
राजबगठी गांव से पैदल चलकर
भोजन बनाने आई
पुरणी देवी बताती हैं कि 'काम तीन शिफ्ट में चल रहा है। एक समूह
प्रात: चार बजे नाश्ता तैयार
करता है तो दूसरा समूह दस बजे से
दोपहर का भोजन तैयार
किया जाता है।
वहीं तीसरा समूह चार बजे से रात्रि का भोजन तैयार करने में
जुट जाता है।'
खाना बनाने में जुटी गौचर
निवासी राजेश्वरी नेगी और
मंगरोली गांव
की कमला देवी बताती हैं कि खाना चमोली तक पहुंचाने
के लिए ग्रामीणों ने अपने खर्च
पर एक वाहन किराए पर
लिया है। इससे थके मांदे
लोगों को समय पर भोजन
दिया जा सके।
कुदरत का खेल किसी ने कभी सोचा भी नि होगा — with Harish Sharma, Rohit Saxena, Vishal Rana and 32 others.
आपदा से हुए बेहाल उत्तराखण्ड — with Jiten Kohli.
चमोली जनपद के जोशीमठ में सेना आपदा प्रभावितों के लिए लगाया गया भोजन शिविर।
ये है उत्तराखंड में रोड का हाल — with Rahul Rawat, Ashish Pandey, Property Park, Devendra Rayal, Tej Thapa,Laxman Neupane and Ganga Ram Sharma.
एक अपील
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केन्द्र सरकार ने उत्तराखंड में आपदा रहत के लिए एक हज़ार करोड रुपये देने की घोषणा की है . अन्य राज्य , संस्थाएं और लोग भी व्यक्तिशः आर्थिक मदद दे रहे हैं . लेकिन क्या यह उचित नहीं है कि राज्य सरकार को पैसा देने की बजाय किसी निष्पक्ष और सक्षम केन्द्रीय एजेंसी से राहत , निर्माण और पुनर्वास कार्य करवाए जाएँ . लोगों के उजड़े घर , खेत और सडक - पुल सब कुछ बना कर दिए जाएँ . साथ ही संवेदन शील क्षेत्रों की पहचान कर उन्हें खाली कर अन्यत्र बसाया जाए . यहाँ कफ़न चोर बैठे हैं . आपदा , कुम्भ , अस्पताल , स्कूल सबका पैसा डकार जाते हैं . सब मिल कर दबाव बनाएँ कि पैसा न दिया जाए , बल्कि पुनर्निर्माण का जिम्मा केन्द्र सरकार अपने हाथ में ले . — withSmrati Kushwah, Jyoti Kushwaha, Jayati Kushwaha and13 others.
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केन्द्र सरकार ने उत्तराखंड में आपदा रहत के लिए एक हज़ार करोड रुपये देने की घोषणा की है . अन्य राज्य , संस्थाएं और लोग भी व्यक्तिशः आर्थिक मदद दे रहे हैं . लेकिन क्या यह उचित नहीं है कि राज्य सरकार को पैसा देने की बजाय किसी निष्पक्ष और सक्षम केन्द्रीय एजेंसी से राहत , निर्माण और पुनर्वास कार्य करवाए जाएँ . लोगों के उजड़े घर , खेत और सडक - पुल सब कुछ बना कर दिए जाएँ . साथ ही संवेदन शील क्षेत्रों की पहचान कर उन्हें खाली कर अन्यत्र बसाया जाए . यहाँ कफ़न चोर बैठे हैं . आपदा , कुम्भ , अस्पताल , स्कूल सबका पैसा डकार जाते हैं . सब मिल कर दबाव बनाएँ कि पैसा न दिया जाए , बल्कि पुनर्निर्माण का जिम्मा केन्द्र सरकार अपने हाथ में ले .
एक हज़ार करोड़ PM ने देनेकी की घोषणा ---------डिजास्टर तो बेचारी आम जनता के लिए ..नेताओ और बाबुओ की तो दिवाली है ....अब इस पैसे के बंदर बाँट होगी ...राहुल गाँधी अक्सर अपने सभाओ में कहते हैं की "मेरे पिताजी राजीव कहते थे कि एक रूपये में केवल पंद्रह पैसे जनता तक पहुँचते हैं" ..अब ये एक हज़ार करोड़ में से कितने पीडितो को मिलेगा ..खुद ही हिसाब लगा लो — with Manoj Sati and Karansingh Jethuri.
केदारनाथ यात्रा पर गए जालंधर के रोहित जामवाल ने फोन पर बताया, 'मैं गौरीकुंड में फंसा हूं। मुझे बचा लो। यहां चारों तरफ लाशें बिछी हैं और उनके बीच बिखरे पत्ते खाकर गुजारा कर रहा हूं। परसों हेलीकॉप्टर आया था। खाने के कुछ पैकेट गिराए। कुछ ही लोगों के हाथ आए। पानी के बाद भुखमरी फैल गई है। पहले लोगों, गाडिय़ों को सूखे पत्ते की तरह बहते देखा। जल्द इंतजाम नहीं हुए तो आदमी को भूख से मरते देखना पड़ेगा। अभी गौरीकुंड के पास गौरी गांव में हूं। गांव के एक परिवार ने हम 500 लोगों को शरण दे रखी है। दूसरे घरों में हैं। कोई मदद नहीं। कोई मददगार नहीं। हम सब मिलकर यहां हैलीपेड बनाने में लगे हैं। इस आस में कि कोई हेलीकॉप्टर यहां उतर जाए और हमें ले जाए। इस मोबाइल फोन का भी भरोसा नहीं। जाने कब बंद हो जाए। अब रखता हूं।' — with Himanshu Tiwari.
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