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Sunday, June 23, 2013

झूठ बोलने वाले और लापरवाह आदमी हैं मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा

झूठ बोलने वाले और लापरवाह आदमी हैं मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा


Jitendra Dixit : विजय बहुगुणा पर्वत की प्रलय लीला का आंकलन करने में चूक गए। इसी चूक के चलते बचाव और राहत में देरी हुई। सेना ने मोर्चा संभाला तो लोगों को बचाकर सुरक्षित निकालने का काम शुरू हुआ। याद कीजिए पहले दिन मुख्यमंत्री जी बोले-पहाड़ में संचार व्यवस्था ठप हो गई। अगले दिन बयान था कि सभी जिलाधिकारियों को वीडियो कांफ्रेंसिंग से निर्देश दिए गए।

संचार व्यवस्था अभी तक बहाल नहीं हुई, ऐसे में वीडियो कांफ्रेंसिंग कैसे हुई, यह जवाब तो विजय बहुगुणा ही दे सकते हैं? विजय बहुगुणा सरकार की लापरवाही आपदा से पहले मौसम पूर्वानुमान न देने से लेकर बाद में राहत कार्य में देरी तक उजागर हो चुकी है। विजय बहुगुणा में अपने पिता हेमवंती नंदन बहुगुणा जैसी समझ नहीं है। स्व. एच.एन. बहुगुणा हालात से निपटना बखूबी जानते थे। इसके लिए विरोधी भी उनकी प्रशंसा किया करते थे।

बात तब की है जब यूपी में मुख्यमंत्री थे। लखनऊ विवि के छात्रों का प्रदर्शन मुख्यमंत्री निवास की ओर बढ़ा। अफसरों ने लाठी-गोली का इंतजाम कर मोर्चा संभाल लिया। इसकी सूचना मिलते ही बहुगुणा जी ने आंदोलनकारी छात्रों को मुख्यमंत्री निवास तक आने देने को कहा। जब मुर्दाबाद के नारे लगाता हुआ प्रदर्शन निवास पर पहुंचा तो बहुगुणा जी प्रदर्शनकारियों के बीच आ गए। बोले-मैं भी छात्र संघ अध्यक्ष रह चुका हूं। आपकी दिक्कतों से वाकिफ हूं। शांति के साथ विस्तार से समस्या बताइए। समाधान करूंगा। इसी बीच अफसरों को सबके लिए चाय-पानी का इंतजाम करने को कहा।

फिर क्या था बहुगुणा जिंदाबाद के नारे लगने लगे। एक और वाकया है जेपी आंदोलन का। यूपी में संपूर्ण क्रांति आंदोलन का आगाज करने जेपी लखनऊ आए। उस समय यूपी के सर्वाधिक भ्रष्ट मंत्रियों की जो सूची तैयार की गई थी, उसमें सबसे ऊपर बहुगुणा जी के खास राजमंगल पांडे का नाम था। जेपी हवाई अड्डे पर उतरे तो सबसे पहले माला पहनाकर स्वागत करने वाले हेमवती नंदन बहुगुणा थे। जेपी का स्वागत कर कहा-भ्रष्टाचार मिटाना चाहता हूं। आंदोलन के बजाय इस काम को सब मिलकर करें। उस समय प्रधानमंत्री इंदिरा जी को बहुगुणा की यह पहल पसंद नहीं आई थी, पर विरोधी आंदोलन की धार एकबार को कुंद पड़ गयी थी। काश विजय बहुगुणा अपने पिता से कुछ सीखे होते तो शायद आज उनकी इतनी किरकिरी नहीं होती।

वरिष्ठ पत्रकार जितेंद्र दीक्षित के फेसबुक वॉल से.

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