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Wednesday, June 12, 2013

‘हम बदनसीब थे कि उनकी लाश आयी’

'हम बदनसीब थे कि उनकी लाश आयी'


भारतीय जासूस होने के आरोप में पाकिस्तान के विभिन्न जेलों में करीब 24 साल तक बंद रहे सरबजीत सिंह की कोट लखपत जेल में 2 मई को हुए हमले में मौत हो गयी. सरबजीत की मौत से जहां भारत-पाक संबंधों में खटास आयी, वहीं सरबजीत की वतन वापसी का इंतजार कर रहे उनके परिवार को गहरा सदमा लगा. सरबजीत की मौत के दो दिन पहले पाकिस्तानी अस्पताल में मिलने गये उनके परिवार में बड़ी बेटी स्वपनदीप भी शामिल थीं. पिता से जुड़ी यादों और उनके सपनों को लेकर उनसे हुई बातचीत के प्रमुख अंश :

शहीद सरबजीत सिंह की बेटी स्वपनदीप कौर से अजय प्रकाश की बातचीत


पिता की मौत के बाद अब आपका परिवार सरकार से क्या चाहता है?
चाहने को अब क्या बचा है. पापा को तो उनके जीते-जी सरकार भारत वापस ला न सकी, अब उनके सामानों को ही हमें पाकिस्तान से दिलवा दे तो मेहरबानी होगी. गिरफ्तारी के वक्त जो कपड़ा, बेल्ट, घड़ी, चश्मा और जूते जमा हुए थे, वे हमें वापस चाहिए. मेरे पापा डायरी लिखते थे, उनके पास एक कैंची थी. वे खाली वक्त में मोतियां पिरोते थे. मोतियों से चूडि़यां बनाते थे. हमें डायरी, कैंची, मोतियां, धागे और वे सूइयां चाहिए. हमें उनका अंडवरवियर, तौलिया यहां तक कि उनकी हर मामूली चीज चाहिए, जिनमें हम उन्हें महसूस कर सकें, हमेशा अपने दिलों में जीवित रख सकें. 

लेकिन आपके परिवार ने पिता पर हमला करने वालों के बारे में भी कुछ मांगें रखी हैं? swapandeep-kaur-sarbjeet-singh-daughter
हां, पाकिस्तान सरकार मेरे पिता के हमलावरों को भारत सरकार को सौपे और भारत उन पर अपने तरीके से कानूनी कार्यवाही करे. दूसरा, पाकिस्तान में जो भारतीय कैदी बंद हैं, उनको सरकार रिहा कराने की सक्रिय कोशिश करे और जब तक वे रिहा नहीं होते, उनके जान-माल की सुरक्षा की पाकिस्तान गारंटी दे. यही मेरे पापा के लिए भारत सरकार की ओर से सच्ची श्रद्धांजलि होगी.

आपका परिवार बार-बार कहता रहा है कि भारत सरकार ने आपके पापा को छुड़ाने का गंभीर प्रयास नहीं किया?
इसमें कोई शक नहीं कि एक परिवार के तौर पर हम लोगों ने जितना प्रयास किया, अगर सरकार ने थोड़ी भी गंभीरता दिखायी होती तो आज हमें यह दिन देखने नहीं पड़ते. सरकार कभी पापा की रिहाई को लेकर गंभीर हुई ही नहीं. वह हमेशा टालने के अंदाज में रही. हां, उनकी हत्या के बाद जरूर हमारी सरकार जागी, लेकिन क्या फायदा?

आपके पिता गिरफ्तार हुए तब आप कितने वर्ष की थीं और पहली बार उनसे कब मिलीं?
मैं और मेरी बुआ दलबीर कौर पहली बार पापा से वर्ष 2008 में मिले थे. पापा जब बॉर्डर से गिरफ्तार हुए थे, तब मेरी उम्र करीब ढाई वर्ष थी और मैं उनसे 17 साल बाद मिल रही थी. पापा की गिरफ्तारी के बाद लंबे समय तक मां, बुआ और दूसरे लोग यही बताते थे कि पापा जल्दी रिहा हो जायेंगे. सबको भरोसा भी यही था. दोनों देशों की आजादी के दिन एक-दूसरे देश के कैदियों को छोड़ने का रिवाज है, इसलिए हम पाकिस्तान की आजादी के दिन 14 अगस्त को हर साल इंतजार करते थे कि पापा इस बार आ जायेंगे. लेकिन हम बदनसीब थे और हमारे इंतजार में उनकी लाश आयी, उन्हें एक दुखद अंत मिला.

अपने देश के बारे में सरबजीत क्या कहते थे?
वे देश नहीं, पंजाब के बारे में ज्यादा बातें करते थे. हम लोगों से मुलाकात के दौरान वे वहां के लोगों के बारे में बातें करते थे. उन्होंने अपने एक पत्र में बताया था कि पाकिस्तान की जेल में बंद कुछ कैदी मुझे आतंकवादी बनाना चाहते हैं. वे कहते हैं कि तुम हमारा कैंप ज्वाइन करो और भारत में बम धमाकों का जिम्मा लो तो हम तुम्हें रिहा करा देंगे. एक बार उन्होंने लिखा था कि अगर उन्होंने मुझे ज्यादा तंग किया तो मैं उनके कैंप में पहुंचकर उनके देश के खिलाफ ही धमाके करुंगा.

क्या आपके पिता को रिहा कराने के लिए पाकिस्तान के पूर्व मानवाधिकार मंत्री अंसार बर्नी ने घूस की मांग की थी?
पिछले वर्ष अप्रैल में अंसार बर्नी भारत आये थे. उन्होंने मेरे सामने हुई मुलाकात के दौरान कहा कि वे पापा को रिहा करा देंगे, लेकिन उन्हें भारत की सीमा में पहुंचने से पहले ही किसी पाकिस्तानी आतंकी गुट ने मार दिया तो? ऐसे में बर्नी ने पापा को सुरक्षित पहुंचाने के बदले 25 करोड़ रुपये की मांग की. बर्नी ने हमें बताया कि यह रकम वे पुलिस महकमे और दूसरी व्यवस्थाओं पर खर्च करेंगे, जिससे सबरजीत अपने मुल्क कुशलता से पहुंच सकें. लेकिन हमने कहा कि यह रकम हमारे बस की नहीं है, फिर वे 2 करोड़ पर राजी हो गये, लेकिन वह रकम भी हमारे बूते की बात नहीं थी. हमलोग यह बात मीडिया को इसलिए नहीं बता सके कि बर्नी ने कहा था कि अगर यह बात लीक हुई तो 500 करोड़ में भी वे सुरक्षित वापस नहीं आ सकेंगे. साथ ही बर्नी ने यह भी कहा कि बात का खुलासा होने के बाद उनके रिहा होने की सारी संभावना खत्म हो जायेगी.

ajay.prakash@janjwar.com  

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