Follow palashbiswaskl on Twitter

ArundhatiRay speaks

PalahBiswas On Unique Identity No1.mpg

Unique Identity No2

Please send the LINK to your Addresslist and send me every update, event, development,documents and FEEDBACK . just mail to palashbiswaskl@gmail.com

Website templates

Jyoti basu is dead

Dr.B.R.Ambedkar

Saturday, June 8, 2013

भट्ठा मालिक द्वारा दी गयी यातना के वजह से उसकी जीवन संगिनी तथा उसकी बेटी का उससे जिन्दगी भर के लिए साथ छोड़कर जाना

भट्ठा मालिक द्वारा दी गयी यातना के वजह से उसकी जीवन संगिनी तथा उसकी बेटी का उससे जिन्दगी भर के लिए साथ छोड़कर जाना

मेरा नाम पतिराज मुसहर, उम्र-50 वर्श है। मेरे पिता का नाम स्वामी रामनाथ है। मैं ग्राम-जंगलपुर, पोस्ट-कठिराव, थाना-फुलपुर, ब्लाक-बड़ागाँव, तहसील-पिण्ड्रा, जिला-वाराणसी का रहने वाला हूँ। मेरी पत्नी का नाम स्व0 चम्पा मुसहर है। मेरे दो लड़के-काषी, उम्र-18 वर्श है, जो कक्षा-5 तक पढ़ा है और अर्भी इंंट-भट्ठे पर मजदूरी करता है। दूसरा बेटा जितेन्द्र उम्र-10 वर्श का है, जो कक्षा-5 में पढ़ता है। मेरी एक लड़की सुषीला, उम्र-5 वर्श की है, जो अब इस दुनिया में नही है।

    पहले मैं गाना-गाने व बजाने का काम करता था और रिक्शा भी चलाता था, लेकिन एक साल से मैं गाना गाने के कारण सिने में दर्द से परेशान हूँ। जिसके कारण कोई काम नही कर पा रहा हूँ। गाँव में से माँगकर किसी तरह अपना जीवन बिता रहा हूँ।

    आज से चैदह महीने पहले मैं कौआ डाडे भट्ठे पर पूरे परिवार के साथ मजदूरी करने गया। भट्ठा मालिक गणेश गुप्ता ने एक हजार ईंटा पाथने को कहा, दो सौ रुपये देने को कहा। हम लोगों ने मालिक से कोई दादनी नही ली, लेकिन भट्ठा मालिक हमाको खुराकी के लिए हफ्ते में दो सौ रुपया देता था। मेरी पत्नी मेरे दोनों लड़के हफ्ते में आठ हजार ईंटा पाथते थे। मेरे सिने में दर्द होने के कारण मैं ऊपर का काम करता था। चार महीने तक मेरे बच्चे पत्नी मालिक के यहाँ मेहनत-मजदूरी से ईंटा पाथते थे। लेकिन मालिक ने हमें खुराकी के अलावा कोई पैसा नही दिया। तभी (मार्च 2010) में अचानक एक दिन मेरी बेटी ठंड लगने से बिमार हो गयी और पखाना करने लगी। जब हम लोग दवा के लिए मालिक से पैसा माँगे तो कहाँ तुम लोगों के दवा के लिए मेरे पास पैसा नही है। तीन दिन तक मेरी बेटी पखाना करती रही। हमारे बार-बार कहने पर भी भट्ठा मालिक को दया नही आई और उसने बेटी के ईलाज के लिए एक पैसा भी नही दिया। दो सौ रुपये खुराकी में एक हफ्ता चलाना मुश्किल था। फिर उसका दवा कहाँ से करते। तभी एक दिन रात में उसने दम तोड़ दिया। हम लोग हाथ मलते रहे। अपनी नन्ही सी बच्ची को बचा नही पाये। बेटी के मरने के दुःख से उसकी माँ भी बीमार हो गयी और उसे रोते-रोते बेटी का अंतिम संस्कार रात में ही कालिकाधाम नदी के किनारे बिना कफन पहनाये किया। उस समय मैं अपनी मरी हुयी बेटी की लाश लेकर जा रहा था और सोच रहा था कि ये दुःख का पहाड़ कहाँ से मेरे ऊपर गिर गया। मालिक हमे अपने काम का पैसा देता तो मेरी बेटी जिसे मैं इस तरह ले जा रहा हूँ। वो मेरे बगल में चलती। अभी इस दुःख से निकल नही पाया था तभी पत्नी को बीमारी की चिंता सताने लगी। अब मैं उसका इलाज कहाँ से करता। हिम्मत करके भट्ठा मालिक से दवा के लिए पैसा मांगने गया तो उसने गाली देकर मुझे फिर भगाया। मैं मिन्नते करता रहा। मालिक मेरी बेटी दवा न मिलने से मर गयी। मेरी पत्नी भी कही दवा न मिलने से छोड़कर चली जाये। इतना बड़ा अनर्थ होने से बचा लो, लेकिन उसका दिल नही पसीजा। उसने मुझे भगा दिया। मैं रोता-रोता चला आया। हाथ में एक पैसा नही था। कहा जाऊ, यही सोच रहा था। मैने अपनी पत्नी की बीमारी हालत को देखकर भागना चाहा लेकिन मालिक के आदमी चारो तरफ लगे थे। मेरी पत्नी दिन पर दिन बीमारी हालत के कारण टूट गई और एक रात बेटी की तरह वो मुझे छोड़कर चली गयी। हम लोग रोने-बिलखने लगे, पत्नी को हिलाते की थोड़ी-बहुत जान उसके अन्दर हो तो आँख खोल दे, लेकिन मेरी पत्नी कहर-कहर कर खत्म हो गयी। आज भी याद करता हूँ तो आँख से आँखू गिरता है और घबराहट होती है। उसी रात एक मन लकड़ी में बिना कफन के फिर कालिकाधाम नदी पर अंतिम संस्कार करने गया। मेरे दोनो लड़के जो अपनी माँ-बहन को खो चुके थे। बिलख-बिलख कर रो रहे थे। मेरा भी छाती फट रहा था।

    मैं इतना टूट गया था कि अपने बच्चों को सहारा नही दे पा रहा था। मालिक के कारण मेरी पत्नी व बेटी दोनो मेरे पास नही हैं। इसका जिम्मेदार वही हैं। मैं सोच रहा था, मुझे मालिक पर गुस्सा आ रहा था। लकड़ी न होने के कारण मेरी पत्नी की शरीर का कुछ भाग जला कुछ नही। उसे कुत्ते नोच-नोचकर खा रहे थे। ये सब देखकर मुझे अपनी गरीबी का अहसास हो रहा था। मालिक मेरी पत्नी की मेहनत की मजदूरी देता तो आज वह इस दुनिया में रहती। वहाँ से आने पर हम लोग बुरी तरह थक चुके थे। लेकिन भट्टा मालिक को फिर भी दया नही आयी और मेरे बच्चे बिना खाये-पिये ईंटा पाथने लगे। मैं भी थके-हारे पौरूख से ऊपर का काम करने लगा। अपनी मरी हुई पत्नी और बेटी का क्रिया-कर्म भी नही कर पाये। भट्टे पर एक-एक पल गुजारना मेरे
लिए मुश्किल था। मैं सोचता कि मैं यहाँ नही आता तो मेरी पत्नी व बेटी मुझे छोड़कर नही जाती।

    इसके बाद भी मालिक हमसे चार महीने (जून) तक जबरदस्ती काम करवाया। इस घटना के बाद मैं टूट चुका था। दिन-रात चिंता रहती है। घर में कोई खाना देने वाला नही है। मेरा बड़ा बेटा जो शादी के लायक है। माॅ के मरने के कारण मैं उसका शादी नही कर पाया। मेरा छोटा बेटा माॅ के लिए तरसता है। उसे देखकर मुझे बहुत तकलीफ होती है। रात भर मैं सोता नही हूँ। भट्ठा मालिक के कारण मेरी घर-गृहस्थी में आग लग गई है। सोचता हूँ कि कैसे क्या करू। उस घटना को याद करता हूँ तो मुझे डर लगता है, इसलिए अब किसी भी भट्ठे पर जाने से डरता हूँ। अब मैं चाहता हूँ कि भट्ठा मालिक के खिलाफ कार्यवाही हो और मुझे न्याय मिले। 


टेस्‍टीमनी मनो-सामाजिक कार्यकर्ता कुमारी मीना द्वारा लिया गया।

No comments: