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Saturday, June 15, 2013

हल्दिया और कोलकाता बंदरगाहों का अस्तित्व खतरे में!

हल्दिया और कोलकाता बंदरगाहों का अस्तित्व खतरे में!


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​  


पश्चिम बंगाल में उद्योग और कारोबार का माहौल औद्योगिक नीति के मशविदा जारी होने के बाद  भी सुदधरता नजर नहीं आ रहा है। वाम जमाने में शुरु आवासीय योजनाओं की जांच कराने के फलस्वरुप इस सेक्टर में नये पूजीनिवेश की संभावना कम है। वैसे भी विनिर्माम क्षेत्र की दशा दयनीय है। विशेष आर्थिक क्षेत्रों में कोई प्रगति नहीं हुई। औद्योगिक गलियारे को केंद्र ने हरी झंडी तो दे दी है, लेकिन भूमि समस्या आड़े आ रही है। पीपीपी माडल पर राज्य में निवेश पर दारोमदार है, जो राज्य सरकार की भूमि नीति की वजह से फेल है। चालूपरियोजनाओं का काम आगे बढ़ नहीं रहा है। रेलवे परियोजनाएं खटाई में हैं। नयी परियोजनाएं शुरु नहीं हो पा रही हैं। कोयलांचल पर हड़ताल की तलवार लटक रही है। कोयला आधारित उद्योगों और खास तौर पर बिजली सेक्टर पर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं। ऐसे में सबसे बुरी खबर यह है कि बंगाल के दोनों बंदरगाहों का अस्तित्व खतरे में है।


हल्दिया और कोलकाता बंदरगाहों को पर्याप्त मात्रा में पानी फरक्का से नहीं मिल रहा है। वैसे दीदी ने सागरद्वीप में नये बंदरगाह का ऐलान किया हुआ है। इसके लिए सागरद्वीप को सड़कपथ पर जोड़ना जरुरी है और बूढ़ी गंगा पर पुल बने बिना इस बंदरगाह पर काम शुरु हो ही नहीं सकता। दीदी के इस हवाई किले के लिए केंद्र से अभी कोई बजट मंजूर नहीं हुआ है। बिना केंद्रीय मदद के नया बंदरगाह कैसे बानायेंगी दीदी, यह तो दीदी ही जानें। पर फिलवक्त तो कोलकाता और हल्दिया बंदरगाहों को बचाने के लिए केंद्र की मदद चाहिए!समुद्र में बढ़ रहे गाद के जमाव के कारण संकरे होते समुद्री मार्ग ने देश के पूर्वी और पूर्वोत्तर हिस्से के प्रमुख व्यापारिक जलमार्ग वाले हल्दिया बंदरगाह के भविष्य पर प्रश्नचिह्न् लगा दिया है।बंदरगाह में परिवहन मार्ग लगातार सिकुड़ता जा रहा है और बड़े जलयानों को यहां से गुजरने से पहले आधा से अधिक माल नजदीकी बंदरगाहों जैसे पारादीप अथवा विशाखापतनम में उतारना पड़ता है ताकि जहाज का भार कम किया जा सके।





दीदी के मुख्य सिपाह सालार ही कल तक जहाजरानी मंत्रालय संभाल रहे थे, तब कोई उपाय नहीं हुआ तो अब क्या होना है?


यह समस्या तिस्ता जल के बंटवारे को लेकर बांग्लादेश के साथ समझौता न होने की वजह से पैदा हुई है, जिसे केंद्र को ही सुलझाना है, जबकि हकीकत यह है कि गंगा जल बंटवारे पर समझौता भी दीदी की अड़ंगे बाजी से लटक गया है।तिस्ता पर समझौता न होने की वजह से बांग्लादेश फरक्का और गंगाजल पर कोई बात करने को तैयार नहीं है। चूंकि यह अतरराष्ट्रीय विवाद है, इसलिए इसे निपटाये बिना केंद्र कुछ नहीं कर सकता। दीदी इस सिलसिले में कोंद्र की कोई मदद नहीं कर सकती। भूमि की तरह जल नीति में भी दीदी की जिद राज्य में औद्योगिक माहौल को सुधारने में आड़े आ रही है।


गौरतलब है कि मनमोहन सिंह की बांग्लादेश यात्रा के दौरान बहु प्रतीक्षित तिस्ता जल बंटवारा समझौता नहीं हो सका। सितंबर , 2011 में  प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह दो दिन के दौरे पर बांग्लादेश पहुंच गए। इस दौरे में उनके साथ बांग्लादेश की सीमा से जुड़ने वाले 4 राज्यों असम, त्रिपुरा, मिज़ोरम और मेघालय के मुख्यमंत्री भी थे। वहीं, पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी पीएम के साथ दौरे पर नहीं गईं। दौरे में ममता के रूख की वजह से जहां तीस्ता नदी के पानी के बंटवारे पर समझौता नहीं हो सका।इसके अलावा इस दौरे में सबसे अहम मुद्दा था सीमा विवाद सुलझाने के लिए 1974 के इंदिरा-मुजीब समझौते को पूरी तरह से लागू करना।बांग्लादेश और भारत की संयुक्त सीमा 4096 किलोमीटर की है। इसमें 6.1 किलोमीटर की सीमा अभी भी चिह्नित नहीं है। सीमा के दोनों ओर करीब 162 जमीन का पट्टा है जिनमें 111 भारतीय पट्टे बांग्लादेश के भीतर है। ये पट्टें भारतीय उपमहाद्वीप के विभाजन के बाद से ही विवाद का कारण बने हुए हैं।यह मामला भी सीधे बंगाल के हितों से संबंधित था। दीदी बांगलादेश में काफी लोकप्रिय रही हैं। पर तिस्ता समझौता उनकी वजह से लटक जाने की वजह से सीमा विवाद का भी अभी तक कोई हल नहीं निकला और न बांग्लादेश से घुसपैठ रोकने में कामयाबी मिली।


विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने कहा है कि उन्हें उम्मीद है कि भारत बांग्लादेश के साथ तीस्ता नदी के जल बंटवारे के मुद्दे का हल सितंबर तक कर सकता है जब बांग्लादेश की प्रधानमंत्री भारत का दौरा करने वाली हैं।


लेकिन अब तो बंगाल के दोनों बंदरगाहों का संकट चरम पर है। दोनों बंदरगाहों की ओर से राज्य सरकार को अल्टीमेटम दे दिया गया है कि पानी की समस्या न सुलझने की वजह से कभी भी वहां काम ठप हो सकता है, जिससे एक लाख से ज्यादा लोग तत्काल बेरोजगार हो जाएंगे।


इस सिलसिले में कोलकाता बंदरगाह के तत्काकालीन कार्यवाही अध्यक्ष मनीश जैन ने केंद्रीय जहाज रानी मंत्रालट को दस्तावेज और आंकड़ों समेत विस्तृत पत्र पिछले साल 30 जुलाई को ही लिख दिया था।


केंद्रीय जहाज रानी मंत्री रहने के बावजूद मुकुल राय इस समस्या को हल करने में कोई मदद नहीं कर सके।


कोलकाता बंदरगाह के मौजूदा चेयरमैन राजपाल सिंह चौहान ने भी केंद्र सरकार को पत्र लिख दिया है और तत्काल राहत की मांग की है।तिस्ता समझौते पर दीदी की जिद की वजह से यह समस्या हो रही है, दोनों बंदरगाहों के अफसरान यह मानते हैं , पर खुलकर बोल नहीं सकते।


इन बंदरगाहों से सालाना चार करोड़ मीट्रिक टन माल का परिवहन होता है। मालूम हो कि इन बंदरगाहों की वजह से रतन टाटा ने दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में टाटा मोटर्स का बाजार तैयार करने ी रणनीति के तहत सिंगुर में नैनो कारखाने की शुरुआत की थी। इन बंदरगाहों में कामकाज ठप होने से भारी परिवहन संकट केमद्देनजर निवेशक यहां भविष्य में पूंजी लगाने को तैयार होंगे या नहीं, यह सवाल मुंह बांए सामने है।


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