Follow palashbiswaskl on Twitter

ArundhatiRay speaks

PalahBiswas On Unique Identity No1.mpg

Unique Identity No2

Please send the LINK to your Addresslist and send me every update, event, development,documents and FEEDBACK . just mail to palashbiswaskl@gmail.com

Website templates

Jyoti basu is dead

Dr.B.R.Ambedkar

Sunday, June 23, 2013

उत्‍तराखंड त्रासदी पर चैनलों का बेहूदा तमाशा, निर्लज्‍ज रिपोर्टिंग

उत्‍तराखंड त्रासदी पर चैनलों का बेहूदा तमाशा, निर्लज्‍ज रिपोर्टिंग

उत्तराखण्ड त्रासदी के जरिये टीवी चैनलों ने एक्सक्लूसिव की नई परिभाषा गढ़ दी है। टीवी चैनलों के कर्ता-धर्ता, उनके रिपोर्टर गला फाड़-फाड़ कर बता रहे हैं कि वे ही सबसे पहले केदारनाथ पहुंचे और उन्होंने ही अपनी जान जोखिम में डालकर इतनी जनसेवा का रिस्क उठाया। वे उत्तराखंड को बचाने के लिए यहां दौड़े चले आए हैं। हालांकि, यह बात अलग है कि इन टीवी चैनलों को मौके पर पहुंचने में छह दिन लगे और वो भी हेलीकॉप्टर जैसी सवारी मिलने पर।

उत्तराखंड की त्रासदी मीडिया, खासतौर से निजी चैनलों के लिए अपनी रेटिंग बढ़ाने का जरिया बन गई है। जिन लोगों ने बीते सप्ताह में टीवी चैनलों पर रिपोर्टिंग देखी है और अगर वे लोग उत्तराखंड के बारे में थोड़ी भी जानकारी रखते हैं तो उन्हें अच्छी प्रकार समझ में आ गया हो कि टीवी चैनल क्या कर रहे हैं।

लोगों की मौत, जिंदगी-मौत के बीच में फंसे हजारों लोगों के लिए राहत की अनुपब्धता टीवी चैनलों के लिए कोई बड़ा मामला नहीं है, उनके लिए सबसे बड़ा मामला यह है कि किस प्रकार उन्होंने दूसरे टीवी चैनलों को मात दे दी और वे सबसे पहले मौके पर पहुंच गए। बेशर्मी के साथ यह दावा किया जा रहा है कि आपदा के पहले फोटो और वीडियो को सबसे पहले हमने ही दर्शकों तक पहुंचाया। जबकि, ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं है आपदा के अगले दिन से ही तमाम फोटो उत्तराखंड के स्थानीय अखबारों में छप रहे हैं और बहुत सारी वीडियो आम लोगों ने विभिन्न साइटों पर अपलोड की हुई हैं।

21 जून को आईबीएन7 के अंग्रेजी सहयोगी सीएनएन-आईबीएन ने यह दावा कि वे ही सबसे पहले मौके पर पहुंचे हैं। इसके बाद इंडिया टीवी ने इस दावे को हड़प लिया। रही-सही कसर न्यून24 ने पूरी कर दी। इस चैनल ने शाम और रात के बुलेटिनों में अपने रिपोर्टरों के मौके तक पहुंचने को इस तरह दिखाया मानो हादसे के बाद पहली बार कोई इंसान केदारनाथ पहुंचा है। इस चैनल ने जब रिपोर्टिंग टीम को हांफते हुए किसी पहाड़ी रास्ते पर चढ़ते हुए दिखाया तो शायद वे बात को एडिट करना भूल गए कि उनके पीछे एक आम महिला भी अपना सामान लिए आराम से चली आ रही है, जबकि रिपोर्टर ऐसा दिखा रहे थे कि चढ़ाई के कारण उसकी सांसें उखड़ी हुई हैं।

सभी चैनल एक्सक्लूसिव का दावा करते हुए यह बताते रहे कि किस प्रकार उनके रिपोर्टर अपनी जिंदगी को दांव पर लगाकर केदारनाथ पहुंचे। लेकिन ज्यादातर चैनलों ने इस तथ्य को गोल कर दिया कि वे हेलीकॉप्टर से केदारनाथ आए हैं। सामान्य दर्शक के मन में भी यह सवाल उठा है कि आखिर एक ही दिन में एक ही वक्त पर दर्जनभर चैनलों के रिपोर्टर अचानक कैसे मौके पर पहुंच गए और ये लोग पांच दिन से कहां थे। तब इन्हें अपनी जान हथेली पर रखने की सुध क्यों नहीं आई। इंडिया टीवी, न्यूज24 और जी-न्यूज के रिपोर्टरों ने दावा किया केदारनाथ में वीराना है और यहां कोई मौजूद नहीं है। ठीक उसी वक्त एनडीटीवी की फुटेज में केदारनाथ में सेना का हेलीकॉप्टर और उसमें चढ़ते हुए पीड़ित दिखाई दिए। पर, एनडीटीवी-हिंदी भी भगवान के प्रताप और उनकी महिमा के वर्णन में खो गया। रात नौ बजे प्राइव टाइम एनडीटीवी की एंकर कादंबरी भगवान केदारनाथ के चमत्कार का वर्णन करना नहीं भूली। इसी अवधि में इंडिया टीवी का रिपोर्टर यह बताने में जुटा था कि आखिर मंदिर ही क्यों सुरक्षित बचा।

उत्तरारखंड त्रासदी की रिपोर्टिंग को ध्यान से देखने पर यह बात साफ पता चल रही थी कि विभिन्न चैनलों पर चल रहे वीडियो में कोई विशेष अंतर नहीं है। यह बात उस वक्त भी पकड़ में आई जब टीवी पर दिख रहे चेहरों में भी अंतर नहीं दिखा। कुछ खास लोगों के इंटरव्यू किसी न किसी बुलेटिन में सभी चैनलों पर समान रूप से दोहराए गए। केवल इतनी विविधता जरूर थी कि सबने इस घटना की कहानियों को अपनी सुविधा के अनुरूप पकड़ा और उसकी व्याख्या की।

चैनलों ने ऐसे लोगों को भी रिपोर्टिंग के लिए भेज दिया जिन्हें न जगहों के नाम ठीक से पता थे और न ही वहां तक पहुंचने के रास्ते। राह में हुई घटनाओं के पता होने का तो सवाल ही नहीं था। ज्यादातर चैनल और रिपोर्टर उन्हीं आंकड़ों को दोहराते रहे जो दून में बैठे अधिकारियों ने उन्हें रटवाए थे। न शब्दों की गंभीरता का कुछ पता था और न उनके इस्तेमाल को लेकर कोई संवदेना थी। इसीलिए एक चैनल पर बाढ़ का हॉरर शो चलता नजर आया तो आजतक पर जल-प्रलय की विनाशलीला। उससे भी बुरी बात यह है कि घांघरिया के नाम पर ऋषिकेश और गोविंदघाट के नाम पर श्रीनगर की फुटेज दिखाई गई। दर्शक के पास कोई विकल्प भी नहीं है कि वो चैनलों के इस अमानवीय, गैरसंवेदनशील, निर्लज्ज और भौंड़े प्रदर्शन के खिलाफ आवाज उठा सके। वस्तुतः टीवी चैनल बेहूदा तमाशा दिखा रहे हैं, रिपोर्टर आपा खो चुके दिख रहे हैं, रिपोर्टिंग के नाम पर चीख-चिल्ला रहे हैं।

लेखक डॉ. सुशील उपाध्याय उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय, हरिद्वार से जुड़े हुए हैं. उनसे संपर्क 09997998050 के जरिए किया जा सकता है.

http://bhadas4media.com/print/12498-2013-06-22-09-02-53.html

No comments: