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Monday, June 24, 2013

हम न ब्राजील है और न हम भारत हैं, हम तो खुले बाजार में मीडिया के गुलाम हैं!

हम न ब्राजील है और न हम भारत हैं, हम तो खुले बाजार में मीडिया के गुलाम हैं!


पलाश विश्वास


हम न ब्राजील है और न हम भारत हैं, हम तो खुले बाजार में मीडिया के गुलाम हैं! हमारे कप्तान कूल महेंद्र सिंह धोनी लंदन में चैंपियन कप जीतकर विश्वेविजेता और सर्वकालीन श्रेष्ठ भारतीय कप्तान बन गये। रातोंरात आईपीएल  मिक्सिंग, फिक्सिंग और सेक्सिंग का पाप धुल गया। रोज रोज जिस मीडिया के पर्दाफाश और गर्मागर्म सुर्खियों से आम जनता का गुस्सा उबाल खा रहा था, वहीं मीडिया धोनी की टीम को आसमान पर चढ़ा रही है। हमारा सारा गुस्सा काफूर हो गया। आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी के वर्षाबाधित फाइनल में सिर्फ 129 रन बनाने के बाद भारतीय कप्तान महेंद्रसिंह धोनी ने अपने खिलाड़ियों से कहा कि उन्हें विश्व चैंपियन की तरह खेलकर कम स्कोर पर भी मैच जीतना है।


यह ठीक वैसा है कि जैसे राष्ट्रशक्ति की दमनकारी मशीनरी क रुप में देशभर में नस्ली भेदभाव के सिकार प्रकृति से जुड़ी मनुष्यता पर बर्बर अत्याचार करने वाली भारतीय सेना को केदार बदरी में फंसे श्रद्धालुओं को निकालने की युद्धस्तरीय तत्परता से हमारी राष्ट्रीयता की भावना उमड़ने घुमड़ने लगी है और हिमालय के संकट को समझने की कोशिश किये बिना मीडिया की सूचनाओं के मुताबिक राजनीतिक समीकरण में उलझने लगे हैं हम। नरेंद्र मोदी वहा केदार नाथ मंदिर बनवाने की इजाजत मांग रहे हैं जबकि बाढ़ में बह गये साठ गांवों के लोगों की खबर लेने वाला कोई नहीं।


सैन्य दमन अगर दंडकारण्य में बेदखली का माहौल बनाता है तो प्राकृतिक आपदा पहाड़ों में कारपोरेट कब्जा मजबूत करती है। केदार नाथ मंदिर के अलौकिक तरीके से बच जाने की सर्वत्र चर्चा हो रही है, लेकिन विपदजनक नदी किनारे नदी पथ को बाधित करने वाले असुरक्षित अवैध बहुमजिली कंक्रीट के जंगल पर हम खामोश है।


हम देवभूमि के तमगे के साथ हिमालय की चर्चा उसीतरह करते हैं जैसेकि लातिन अमेरिका की चर्चा फुटबाल के मद्देनजर ही होती है। विपर्यस्त रक्त मांस की मनुष्यता हमारे ध्यान मे ही नहीं आती। हम टिहरी के डूब में गायब पुरानी टिहरी, उत्तरकाशी घाटी और भिलंगना घाटी, सैकड़ों गावों की त्रासदी पर विचार कर ही नहीं सकते।क्यंकि मीडिया हमें अपने सनसनीखेज मनोरंजक कवरेज से उबरने का मौका ही नहीं देता।


संकट बस तब तक है, जबतक मीडिया संकट बनाये रखता है। घोटाल तब तक घोटाला है जबतक मीडिया उसे घोटाला बनाये रखता है। सरकारें तो घोटालों को दफा रफा करने में वक्त भी लगाती है! मीडिया के लिए नई खबर पर्याप्त बहाना है।अब सवाल ये है कि सरकार और मीडिया की प्राथमिकता से वो आदमी कहां गायब है, जो इन इलाकों का मूल निवासी थी...वो आदमी जिसने अपने नुकसान के बीच तीर्थ यात्रियों की भी मदद की...वो 4000 खच्चरवाले कहां गए...वो जो छोटी दुकानें चला कर परिवार पाल रहे थे...वो जो आस पास के गांवों में रहते थे...वो जो लोगों का सामान पीठ पर लाद कर पहाड़ चढ़ जाते थे..वैसे ऋषिकेश और हरिद्वार में भी बहुत से गांव पानी की चपेट में हैं...उनके बारे में ख़बर कौन ले रहा है...सोचिएगा कि आखिर सरकार और मीडिया की सूची में से उत्तराखंड..खासकर गढ़वाल के ग्रामीण और स्थानीय लोग क्यों गायब हैं...ज़रा जाकर पूछिए, वो विस्थापन मांग रहे हैं...वो बांध का विरोध कर रहे हैं...वो फैक्ट्रियों का विरोध कर रहे हैं...जो तीर्थयात्री नहीं करते...इसलिए उनका सामने आना अच्छा नहीं है...उनकी लाशें बह कर बांध में मिल जाएंगी...जंगलों-मलबों में सड़ जाएंगी...उत्तराखंड में आपदा के वक्त सिर्फ तीर्थयात्री थे...वहां स्थानीय लोग रहते ही कहां थे...


डीएस बी में हमारे गुरु भूगर्भ  शास्त्र विभाग के डॉ खड्ग सिंह वल्दिया,मानद प्रोफेसर, जेएनसीएएसआर ने हिमालय के संकट पर बीबीसी को दिये इंटर ब्यू में जो खुलासा किया है, तनिक उसपर गौर करें!


`आख़िर उत्तराखंड में इतनी सारी बस्तियाँ, पुल और सड़कें देखते ही देखते क्यों उफनती हुई नदियों और टूटते हुए पहाड़ों के वेग में बह गईं?


जिस क्षेत्र में भूस्खलन और बादल फटने जैसी घटनाएँ होती रही हैं, वहाँ इस बार इतनी भीषण तबाही क्यों हुई?


उत्तराखंड की त्रासद घटनाएँ मूलतः प्राकृतिक थीं. अति-वृष्टि, भूस्खलन और बाढ़ का होना प्राकृतिक है. लेकिन इनसे होने वाला


अंधाधुंध निर्माण की अनुमति देने के लिए सरकार ज़िम्मेदार है. वो अपनी आलोचना करने वाले विशेषज्ञों की बात नहीं सुनती. यहाँ तक कि जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के वैज्ञानिकों की भी अच्छी-अच्छी राय पर सरकार अमल नहीं कर रही है.


वैज्ञानिक नज़रिए से समझने की कोशिश करें तो अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि इस बार नदियाँ इतनी कुपित क्यों हुईं.


नदी घाटी काफी चौड़ी होती है. बाढ़ग्रस्त नदी के रास्ते को फ्लड वे (वाहिका) कहते हैं. यदि नदी में सौ साल में एक बार भी बाढ़ आई हो तो उसके उस मार्ग को भी फ्लड वे माना जाता है. इस रास्ते में कभी भी बाढ़ आ सकती है.


इस छूटी हुई ज़मीन पर निर्माण कर दिया जाए तो ख़तरा हमेशा बना रहता है.


नदियों के फ्लड वे में बने गाँव और नगर बाढ़ में बह गए.

केदारनाथ से निकलने वाली मंदाकिनी नदी के दो फ्लड वे हैं. कई दशकों से मंदाकिनी सिर्फ पूर्वी वाहिका में बह रही थी. लोगों को लगा कि अब मंदाकिनी बस एक धारा में बहती रहेगी. जब मंदाकिनी में बाढ़ आई तो वह अपनी पुराने पथ यानी पश्चिमी वाहिका में भी बढ़ी. जिससे उसके रास्ते में बनाए गए सभी निर्माण बह गए.


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केदारनाथ मंदिर इस लिए बच गया क्योंकि ये मंदाकिनी की पूर्वी और पश्चिमी पथ के बीच की जगह में बहुत साल पहले ग्लेशियर द्वारा छोड़ी गई एक भारी चट्टान के आगे बना था.


नदी के फ्लड वे के बीच मलबे से बने स्थान को वेदिका या टैरेस कहते हैं. पहाड़ी ढाल से आने वाले नाले मलबा लाते हैं. हजारों साल से ये नाले ऐसा करते रहे हैं.


पुराने गाँव ढालों पर बने होते थे. पहले के किसान वेदिकाओं में घर नहीं बनाते थे. वे इस क्षेत्र पर सिर्फ खेती करते थे. लेकिन अब इस वेदिका क्षेत्र में नगर, गाँव, संस्थान, होटल इत्यादि बना दिए गए हैं.


यदि आप नदी के स्वाभाविक, प्राकृतिक पथ पर निर्माण करेंगे तो नदी के रास्ते में हुए इस अतिक्रमण को हटाने के बाढ़ अपना काम करेगी ही. यदि हम नदी के फ्लड वे के किनारे सड़कें बनाएँगे तो वे बहेंगे ही.'


हम राष्ट्रमंडल खेल को भूल गये। अब ओलंपिक के आयोजन का सपना देख रहे हैं।इसके विपरीत ब्राजील में फुटबॉल वर्ल्ड कप के खिलाफ करीब 10 लाख लोग सड़कों पर विरोध प्रदर्शन के लिए उतरे, वह देश में फैले भ्रष्टाचार और खराब सार्वजिनक यातायात से नाराज हैं। 80 शहरों में लोग विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।सबसे बड़ा प्रदर्शन रियो दे जनेरो में गुरुवार को हुआ। जहां तीन लाख लोग विरोध प्रदर्शन के लिए आए। एक ही दिन पहले शहर के मेयर ने लोगों की मांग मानते हुए सार्वजनिक यातायात का किराया कम करने की घोषणा की।ब्राजील की राजधानी ब्राजिलिया में भी विरोध प्रदर्शन शुरू हुए। यहां करीब 20 हजार लोगों ने कांग्रेस के सामने विरोध प्रदर्शन किया। भीड़ को संसद की इमारत में चढ़ने से रोकने के लिए पुलिस ने बैरिकेड लगाए. प्रदर्शनकारी विदेश मंत्रालय की इमारत में घुस गए थे।



देखते देखते हम आईपीएल घोटाला भूल गये। घोटाला अधिराज श्रीनिवासन अब आईसीसी में भी भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे और पुनर्वास हो जायेगा ललित मोदी का भी। जैसकि शशि थरुर का हुआ।ब्राजील की राष्ट्रपति डिल्मा रुसेफ ने जापान दौरा रद्द कर दिया है। वह 26 से 28 जून को जापान यात्रा पर जाने वाली थीं।सप्ताह की शुरुआत में उन्होंने कहा कि विरोध प्रदर्शनकारियों का संदेश समाज और नेताओं तक और साथ ही सरकार के सभी धड़ों तक पहुंच गया है। लेकिन अभी तक इस पर कोई कार्रवाई नहीं हो सकी है।


स्पॉट फिक्सिंग के चलते अब महेंद्रसिंह धोनी भी सवालों के घेरे में आने लगे हैं। अभी तक किसी को शायद ही इसका पता हो कि धोनी क्रिकेटर के साथ अब बिजनेसमैन भी बन गए हैं। अपने दोस्त की एक कंपनी में उनकी 15 फीसदी हिस्सेदारी है।


इकनॉमिक टाइम्स में छपी एक रिपोर्ट अनुसार महेंद्रसिंह धोनी ने अपने दोस्त अरुण पांडे की कंपनी की 15 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदी है। इस कंपनी का नाम है रीति स्पोर्ट्स मार्केटिंग फर्म।


यह कंपनी क्रिकेटरों की प्रोफेशनल लाइफ का कामकाज देखती है। स्पोर्ट्स मार्केटिंग फर्म का मैनेजमेंट 4 और क्रिकेटर्स को मैनेज करता है। ये क्रिकेटर सुरेश रैना, रविंद्र जडेजा, प्रज्ञान ओझा और आर.पी. सिंह हैं। यह कंपनी क्रिकेटरों के विज्ञापन और ब्रेंड के कामकाज का ध्यान रखती है।


इस हिस्सेदारी से माना यह जा रहा है कि खिलाड़ियों के चयन में धोनी की भूमिका अहम होती है, क्योंकि इससे कंपनी के हित जुड़े हैं। खिलाड़ियों की ब्रांड वेल्यू बनाए रखने के लिए यह जरूरी है।


इस बारे में पूछे जाने पर बीसीसीआई के जॉइंट सेक्रेटरी अनुराग ठाकुर ने कहा, 'मैं यह पहली बार सुन रहा हूं। यह चिंता वाली बात है। हम मामले की जांच कर सकते हैं।'


धोनी ने 31 मई को ई-मेल से भेजे गए सवालों का जवाब नहीं दिया और पांडेय ने इसके बारे में कुछ भी कहने से इनकार किया है।


कंपनी के कई बिजनेस एसोसिएशंस हैं, जिससे धोनी की हिस्सेदारी के चलते कम से कम 2 मामले में प्रोपराइटी और हितों के टकराव की स्थिति बनती है। पहली स्थिति में धोनी क्रिकेट के तीनों फॉर्मेट के लिए इंडियन टीम के कप्तान हैं। दूसरे रूप में धोनी को आईपीएल टीम सीएसके के कप्तान के तौर पर देखते हैं। इससे हितों के टकराव की स्थिति बनती है।


स्पॉट फिक्सिंग पर धोनी अब तक चुप्पी साधे हुए हैं। इससे महेंद्र सिंह धोनी भी अब सवालों के घेरे में आ गए हैं।


हमारे रगों में खून नहीं दौड़ता। दौड़ता है पानी। ज थोड़ा सा तापमान पाकर उबाल खाने लगता है फिर जलवायु परिवर्तन के साथ ठंडा पड़ जाता है।


धर्म स्थल केदार बदरी के मुकाबले उत्तरकाशी,टौंस घाटी, अल्मोड़ा या पिथौरागढ़ या तमाम नदियं के आर पार संकटग्रस्त अपर्यटक मनुष्यता की खबर से हमें क्या वास्ता है?


ब्राजील में बढ़ रहे जनाक्रोश के कारण कन्फेडरेशंस कप के आयोजन पर पड़ने वाले खतरे को देखते हुए फीफा ने ब्राजील सरकार से सुरक्षा का आश्वासन मांगा। ब्राजील के कई बड़े शहरों के व्यापक स्तर पर फैले जनाक्रोश के प्रभाव में आने के ठीक एक दिन बाद फीफा के महासचिव जेरोम वाल्के ने कन्फेडरेशंस कप के बाधित होने की संभावनाओं से इनकार किया है।


वाल्के ने शुक्रवार को कहा, "हमने टूर्नामेंट को अंत तक जारी रखने के लिए सुरक्षा व्यवस्था की मांग की है।"


उन्होंने आगे कहा, "मुझे इन सबके 2014 तक खत्म होने की कोई उम्मीद नहीं है। इस मुसीबत का हल निकालना ब्राजील की सरकार की जिम्मेदारी है, न कि फीफा की। हमें गलत निशाना बनाया गया है।"



ब्राजील एक बार नहीं पांच पांच बार विश्वकप फुटबाल के विजेता है। ब्राजील के नेईमार  धुंआधर खेल रहे हैं।कंफेडरेशन कप के सेमीफाइनल में है ब्राजील। हो सकता है कि कप भी जीत जाये। ब्राजील और उरुग्वे का सेमीफाइनल में मुकाबला है।कन्फेडरेशंस कप में ग्रुप चरण के मुकाबले में यहां शनिवार को ब्राजील ने फ्रेड द्वारा मध्यांतर के बाद किए गए दो गोल की सहायता से इटली को 4-2 से हराकर ग्रुप ए में शीर्ष स्थान हासिल कर लिया।इटली चार बार का विश्वविजेता है। हम तो वन जे विश्व कप अभी दो ही बार जीते हैं। लेकिन दशकों से हाकी का विश्वकप और ओलंपिक जीतनेका गौरव हमें अबउत्तेजित नहीं करता क्योंकि हाकी के पीछे बाजार नहीं है। मीडिया भी नहीं है। हमारी नजर में महंद्र सिंह धोनी से ज्यादा करिश्माई ध्यान चंद तो थे नहीं। लेकिन ब्राजील के  शहरों में भ्रष्टाचार, पुलिस दमन और खस्ताहाल सार्वजनिक सेवाओं के खिलाफ लाखों लोग प्रदर्शन कर रहे हैं. प्रदर्शन की वजह मुख्य रूप से फुटबॉल वर्ल्ड कप के आयोजन पर किए जा रहे अरबों डॉलर का खर्च है।उन्हं अब फुटबाल का विश्वविजेता का खिताब नहीं चाहिए। न कंफेडरेशन कप।बेहतर जिंदगी और जीवन स्तर की मांग को लेकर ब्राजील में शुरू हुए प्रदर्शन की आग अब सड़कों से निकलकर सोशल मीडिया तक फैल गई है। इंटरनेट की दुनिया पर ट्वीट्स, फेसबुक कमेंट्स के अलावा इंस्टाग्राम पर तस्वीरों की बाढ़ सी आ गई है। दरअसल, ये लोग 2014 में देश में होने वाले फुटबॉल विश्व कप की मेजबानी में अरबों डॉलर खर्च किए जाने का विरोध कर रहे हैं। इसके साथ-साथ भ्रष्टाचार और ट्रांसपोर्ट के संसाधनों को लेकर तो गुस्सा है ही।पिछले दो हफ्तों में देश भर में हजारों लोग, जिनमें मुख्य तौर पर युवा शामिल हैं, रैलियां निकाल रहे हैं। इन लोगों ने एक हाथ में तख्तियां थाम रखी हैं, तो वहीं दूसरे हाथ में स्मार्टफोन ले रखा है। इस फोन के जरिए ये अपने प्रदर्शन को दुनिया के कोने-कोने तक पहुंचा रहे हैं। बता दें कि 2011 में अरब स्प्रिंग का मामला हो या हाल में टर्की में हुई हिंसा, सोशल एक्टिविस्ट्स ने सोशल मीडिया का जबर्दस्त इस्तेमाल किया है। इसके जरिए लोगों की भीड़ इकट्ठी किए जाने के अलावा इवेंट्स भी प्लान हो रहे हैं।


हमारे पड़ोस में बांग्लादेश  में पिछले दिनों धर्मांध राष्ट्रवाद के विरुद्ध लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता के लिए युवा पीढ़ी ने सोशल मीडिया के जरिये शहबाग आंदोलन के जरिये आक्रामक कट्टरपंथी राजनीति से जमकर लोहा लेते रहे, वह आंदोलन महीनों से जारी है। हम तकनीक के मामले में महाशक्ति बन चुके है। थ्री जी फोरजी में चल रहे हैं। टूजी घोटाला ने तकनीकी विकास रोका नहीं है, जैसे रेलगेट या कलगेट या कप्टार गेट ने विकासगाथा और बारत निर्माण अवरुद्ध नहीं किया है। हर हात में मोबाइल है। पांच से लेकर दस करोड़ लोग आनलाइन है और हम लोकगणराज्य के स्वतंत्र नागरिक हैं। लेकिन अपनी सोशल नेटवर्किंग से या तो हम देवभूमि की अलौकिकता का बखानकर रहे हैं या फिर नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्रित्व का माहौल बना रहे हैं। हमारी तकनीक सामाजिक यथार्थ से हमें कहीं नही जोड़ती, बल्कि तोड़ती रहती है।हालांकि, ब्राजील में सरकारी तंत्र भी सोशल मीडिया की ताकत को समझ चुका है, इसलिए इंटेलिजेंस और सिक्युरिटी से जुड़े लोगों ने एक कदम आगे रहने के लिए इंटरनेट की दुनिया की कड़ी निगरानी शुरू कर दी है। अधिकारियों का कहना है कि सोशल साइटों की निगरानी से प्रदर्शन की तारीखों का पता चल जाता है। प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच कई बार हुई तीखी झड़पों के मद्देनजर इस किस्म की जानकारी भीड़ को नियंत्रित करने की दिशा में काफी उपयोगी साबित हो रही है। एक लोकल डेली की मानें तो अधिकारियों ने अपनी निगरानी का दायरा वॉट्सएप जैसी मैसेंजर सविर्सेज तक फैला दिया है।


ब्राजील के शहरों में भ्रष्टाचार, पुलिस दमन और खस्ताहाल सार्वजनिक सेवाओं के खिलाफ लाखों लोग प्रदर्शन कर रहे हैं। प्रदर्शन की वजह मुख्य रूप से फुटबॉल वर्ल्ड कप के आयोजन पर किए जा रहे अरबों डॉलर का खर्च है। देश के बड़े शहरों साओ पाओलो और रियो में दसियों हजार लोगों ने प्रदर्शन किया। प्रदर्शन के दौरान हिंसा भी हुई।


लोग आरोप लगा रहे हैं कि फुटबॉल वर्ल्ड कप और ओलंपिक खेलों से पहले अरबों डॉलर स्टेडियम बनाने पर खर्च किए जा रहे हैं लेकिन सार्वजनिक सेवाओं को नजरअंदाज किया जा रहा है और कीमतें बढ़ाई जा रही है। साओ पाओलो में बस किराया बढ़ाए जाने के बाद 20 साल में पहली बार बड़े विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए थे।


अधिकारी प्रदर्शनकारियों को मनाने की कोशिश भी कर रहे हैं। कम से कम पांच शहरों में सार्वजनिक परिवहन सेवा के टिकटों के दाम कम कर दिए गए हैं। इनमें राजधानी के पोर्तो अलेग्रे और रेशिफ इलाके भी शामिल हैं।साओ पाओलो के मेयर ने भी कहा है कि टिकटों की कीमत घटाने पर विचार किया जा रहा है। लेकिन फिलहाल प्रदर्शन जारी हैं और सरकार ने कंफेडरेशन कप के दौरान सुरक्षा के लिए सेना भेजने का फैसला किया है। कानून मंत्रालय ने कहा है कि सेना आयोजक शहरों में पुलिस की मदद करेगी। सैनिक टुकड़ियों को फोर्टालेजा, सल्वाडोर, बेलो होरिसोंटे, ब्राजिलिया और रियो दे जनेरो भेजा गया है।


अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल संगठन फीफा के अध्यक्ष जेप ब्लाटर ने प्रदर्शनकारियों के लिए सहानुभूति जताई है और कहा है, "मैं समझ सकता हूं कि लोग खुश नहीं हैं। लेकिन मैं समझता हूं कि उन्हें अपनी मांगों पर जोर देने के लिए फुटबॉल का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए।" उन्होंने कहा कि हमने ब्राजील पर वर्ल्ड कप थोपा नहीं है, वह इसका आयोजन करना चाहता था। उन्हें पता था कि वर्ल्ड कप पाने के लिए स्टेडियम भी बनाने होंगे, लेकिन इनका इस्तेमाल सिर्फ वर्ल्ड कप के लिए नहीं होगा। इसके अलावा रोड, होटल और हवाई अड्डे भी बनेंगे। ब्लाटर ने कहा, "ये भविष्य के लिए विरासत होंगे, सिर्फ वर्ल्ड कप के लिए नहीं।"



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