आज के समय में प्रसांगिक
उत्तराखंड के जनकवि गिर्दा की यह कविता
-------- ------- ----- -------- -------- -----------
"बोल व्योपारी तब क्या होगा -- ??"
सारा पानी चूस रहे हो,
नदी-समन्दर लूट रहे हो,
गंगा-यमुना की छाती पर
कंकड़-पत्थर कूट रहे हो,
उफ!! तुम्हारी ये खुदगर्जी,
चलेगी कब तक ये मनमर्जी,
जिस दिन डोलगी ये धरती,
सर से निकलेगी सब मस्ती,
महल-चौबारे बह जायेंगे
खाली रौखड़ रह जायेंगे
बूँद-बूँद को तरसोगे जब -
बोल व्योपारी – तब क्या होगा ?
नगद – उधारी – तब क्या होगा ??
आज भले ही मौज उड़ा लो,
नदियों को प्यासा तड़पा लो,
गंगा को कीचड़ कर डालो,
लेकिन डोलेगी जब धरती – बोल व्योपारी – तब क्या होगा ?
वर्ल्ड बैंक के टोकनधारी – तब क्या होगा ?
योजनकारी – तब क्या होगा ?
नगद-उधारी तब क्या होगा ?
(सौजन्य = संध्या नवोदिता )
Tuesday, June 25, 2013
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment