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Saturday, June 8, 2013

इस बार गिर्दा को श्रीनगर में याद किया गया

इस बार गिर्दा को श्रीनगर में याद किया गया

girda-in-uttarakhand_thumbगिरीश तिवाड़ी 'गिर्दा' की दूसरी पुण्यतिथि पर 22 अगस्त को अखिल भारतीय किसान महासभा द्वारा श्रीनगर के नगरपालिका सभागार में एक संगोष्ठी आयोजित की गई। संगोष्ठी के आयोजन के लिये उत्तराखंड लोक वाहिनी, उत्तराखंड महिला मंच, चेतना आन्दोलन, क्रियेटिव उत्तराखंड और पहाड़ द्वारा भी अपनी सहमति दी गई थी। चूँकि गिर्दा एक जुझारू और आन्दोलनों को आगे रह कर नेतृत्व देने वाले संस्कृतिकर्मी थे और इस समय उत्तराखंड में जल विद्युत परियोजनाओं को लेकर बनाया जा रहा भ्रम तथा आतंक का माहौल सबसे बड़ी चुनौती है, इसलिये गोष्ठी में चर्चा हेतु रखा गया विषय था, 'उत्तराखंड में जलविद्युत परियोजनाएँ और जनपक्षीय विकास का सवाल'। किसान महासभा द्वारा इससे पूर्व 28-29 जुलाई को जोशीमठ में भी ऐसी गोष्ठी आयोजित की गयी थी।

गोष्ठी की शुरूआत जन संस्कृति मंच के राष्ट्रीय पार्षद मदन मोहन चमोली द्वारा चमोली जनपद के सीमान्त गाँव में रहने वाले धन सिंह राणा द्वारा लिखे गये गढ़वाली जनगीत 'नानातीना और बुड्या बीमार, नर नारी ज्वान होवा तैयार' गाने के साथ हुई। इसके बाद जल विद्युत परियोजनाओं पर योगेन्द्र कांडपाल द्वारा एक तथ्याधारित आधार पत्र का पाठ किया गया। अतुल सती ने विष्णुप्रयाग और पीपलकोटी तथा त्रेपन सिंह चौहान ने फलेंडा में बन रही जल विद्युत परियोजनाओं में की जा रही पर्यावरणीय मानकों की अनदेखी, झूठी जन सुनवाइयों, जनता के संघर्ष और प्रशासन और कम्पनियों द्वारा किये जा रहे संयुक्त दमन का विस्तार से वर्णन किया। चैहान ने विगत दिन (21 अगस्त) को उत्तराखंड उच्च न्यायालय द्वारा दिये गये निर्णय का भी जिक्र किया, जिसमें अदालत ने फलेंडा में स्वाति पॉवर कम्पनी द्वारा बनाई गई परियोजना में मनमानी की बात स्वीकार करते हुए 18 सितम्बर को वहाँ पुनः जन सुनवाई करने के आदेश दिये हैं। अखिल भारतीय किसान महासभा के प्रदेश अध्यक्ष कामरेड पुरुषोत्तम शर्मा ने कहा कि भारतीय लोकतंत्र का कारपोरेटीकरण हो गया है। प्राकृतिक संसाधनों पर कब्जे की होड़ के चलते उत्तराखंड में अब लड़ाई पिछली सभी लड़ाइयों से अधिक जटिल हो गयी है, इसलिए जन पक्षधर वाम-जनवादी ताकतों को साझा रणनीति बनानी होगी। डॉ. भरत झुनझुनवाला पर हमले का संदर्भ लेते हुए उत्तराखंड लोक वाहिनी के अध्यक्ष डॉ. शमशेर सिंह बिष्ट ने कहा कि दक्षिण भारत से आये स्वामी मन्मथन के संघर्ष से बने विश्वविद्यालय की जमीन पर किसी के मुँह पर कालिख पोता जाना विश्वविद्यालय के अध्यापकों और विद्यार्थियों के मुँह पर कालिख पोता जाना है। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में ठेकेदारों और बिचैलियों का विकास हो रहा है। पिछले बारह सालों में बारह लाख से अधिक लोग पहाड़ी क्षेत्रों से पलायन कर गए हैं।

सुप्रसिद्ध लोकगायक नरेन्द्र सिंह नेगी ने बिजली परियोजनाओं से उजड़ते पहाड़ पर केंद्रित अपनी लोकप्रिय रचना 'देव भूमि को नौ बदली भूमि कैर्याली जी, उत्तराखंड की धरती, योंन डामुन डाम्याली जी' का पाठ किया। माकपा के राज्य कमेटी सदस्य और मन्दाकिनी घाटी में परियोजनाओं के विरुद्ध संघर्षरत कामरेड गंगाधर नौटियाल ने उदाहरण देकर बताया कि प्रदेश में अदालतें तक कंपनियों के अधीन काम कर रही हैं। बिना पंचायतों और वन पंचायतों की स्वीकृति तथा जनता की जानकारी के फर्जी दस्तावेजों के आधार पर परियोजनाएँ बनायी जा रही हैं। नैनीताल समाचार के संपादक राजीव लोचन साह ने कहा कि देश में पहली बार एक अकेली कम्पनी, 'इंडिया बुल्स' ने एक प्रदेश में अपना मुख्यमंत्री बैठाया है। जाहिर है कि विजय बहुगुणा परियोजनायें बनाने की हड़बड़ी में हैं। उत्तराखंड महिला मंच की संयोजक कमला पन्त ने कहा राज्य आंदोलन में लोगों की कोई व्यक्तिगत हित की आकांक्षा नहीं थी, बल्कि समग्र विकास का सपना था। गैरसैण राजधानी की माँग के पीछे भी प्रकारान्तर से जल, जंगल, जमीन जैसे संसाधनों पर जनता के स्वामित्व की बात थी। पानी से बिजली बने अवश्य, लेकिन वह स्थानीय ग्रामीण बनायें न कि कम्पनियाँ। गोष्ठी में गढ़वाल विश्वविद्यालय के भूगर्भ विज्ञान विभाग में शोध अधिकारी डा.एस.पी. सती, चकबंदी आंदोलन के नेता गणेश सिंह 'गरीब', 'उत्तरा' की संपादक डॉ. उमा भट्ट, रीजनल रिपोर्टर के संपादक बी. शंकर थपलियाल, गढ़वाल विश्वविद्यालय शिक्षक संघ के महासचिव डा.महावीर सिंह नेगी, प्रो.आर.सी.डिमरी, उत्तराखंड महिला मंच की निर्मला बिष्ट, जलविद्युत परियोजना विरोधी आंदोलन में पैंसठ दिन जेल में बिताने वाली सुशीला भंडारी, हिमालय बचाओ के समीर रतूड़ी व मुजीब नैथानी, पत्रकार एल.मोहन कोठियाल, डा. अरविन्द दरमोड़ा, आइसा के आशीष कांडपाल, उत्तराखंड लोक वाहिनी के पूरन चंद्र तिवारी आदि ने भी विचार व्यक्त किये. इस सत्र का संचालन इन्द्रेश मैखुरी ने किया।

'जनसरोकारों की बात, गिर्दा के साथ' विषयक गोष्ठी के दूसरे सत्र में संस्कृतिकर्मी डॉ. डी. आर. पुरोहित के संचालन में उपस्थित लोगों ने गिरदा के संस्मरण सुनाये। नरेन्द्र सिंह नेगी द्वारा गिर्दा का प्रसिद्ध जनगीत ''जैंता एक दिन त आलो उ दिन यो दुनी में'' और नैनीताल समाचार के महेश जोशी द्वारा ''हम लड़ते रयाँ भुलू, हम लड़ते रूँलो'' सुनाया गया।

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