विपदा बन बरसे बदरा
जिस समय केदारनाथ में मलबा आया था उस समय मंदिर परिसर में ही हजारों लोग मौजूद थे, जिन्हें अपनी जान बचाने का कोई मौका नहीं मिला. केदारनाथ से पहले पड़ने वाले पड़ाव स्थल रामबाढ़ा का तो पूरी तरह नामोनिशान ही मिट गया है. इस भयानक तबाही में मरने वालों की संख्या बीस हजार से भी ज्यादा होने का अनुमान है. . .
नरेन्द्र देव सिंह
उत्तराखण्ड में समय से पहले आया मानसून और पश्चिमी विक्षोभ की सक्रियता के गठजोड़ ने ऐसा कहर बरपाया कि बादल आफत बनकर बरसे. केदारनाथ धाम पूरी तरह से तबाह हो गया तथा पिथौरागढ़ जिले के धारचूला, बलुवाकोट तथा जौलजीबी क्षेत्र में तबाही मच गयी. मरने वालों का आंकडा कहां तक पहुंचेगा, यह अभी नहीं कहा जा सकता. 62 हजार यात्री और स्थानीय लोग सड़कें बंद हो जाने के कारण फंस गये हैं. सरकार ने सेना तथा आइटीबीपी की भी मदद राहत कार्यों के लिए ले रखी है. मुख्यमंत्री बहुगुणा ने इसे राज्य पर बड़ी मुसीबत करार दिया है. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने राहत कार्यों के लिए एक हजार करोड़ रुपये की मदद राज्य को दे दी है.
केदारनाथ से करीब तीन किलोमीटर ऊपर स्थित गांधी सरोवर सुबह 8 बज 10 मिनट पर फट गया तथा अगले 15 मिनट में पूरा केदारनाथ क्षेत्र तबाह हो गया. केदारनाथ मंदिर को जबरदस्त नुकसान होने के कारण यह यात्रा अगले दो-तीन सालों के लिए बंद करवा दी गयी है. मंदिर समिति के अध्यक्ष और श्रीनगर के विधायक गणेश गोदियाल ने कहा है कि 'इसे वैज्ञानिक तरीके से ठीक करने में दो तीन साल लग जायेंगे. ' उनका यह भी कहना है कि अकेले केदारनाथ क्षेत्र में हुये नुकसान को ठीक करने के लिए हजार करोड़ रुपये की दरकार है.
उत्तराखण्ड के सीमान्त कुमाऊं क्षेत्र में भी बरसात ने बवाल मचा दिया. पिथौरागढ़ जिले के सीमांत क्षेत्र जौलजीबी को नेपाल से जोड़ने वाला पुल काली नदी में समा गया. इसी के साथ सेना के तीन बैरक भी काली नदी में समा गये. धारचूला में बादल फटने के कारण 9 लोगों की मौत हो गयी तथा जौलजीबी से 14 किमी आगे बलुवाकोट में काली नदी से सटी लगभग सभी इमारतें क्षतिग्रस्त हो गयीं हैं. कुछ इमारतें तो पूरी तरह से काली नदी में समा गयीं.
पिछले वर्ष भी उत्तरकाशी में बादल फटने के कारण भारी तबाही हुयी थी. तब राज्य के आपदा प्रबंधन विभाग के साथ-साथ सरकार के कई मंत्रियों व विधायकों की संवेदनहीनता की पोल खुल गयी थी. कैबिनेट मंत्री इंदिरा हृदयेश समेत कई माननीय मंत्री उस समय लंदन में ओलम्पिक देखने में व्यस्त थे. आपदा प्रबंधन मंत्री यशपाल आर्य के विभाग का यह हाल था कि आपदाग्रस्त लोगों से फफूंद लगी ब्रेड बंटवा दी. इससे पहले 2010 में कुमाऊं क्षेत्र में बरसात के समय बादल फटने के कारण कई लोगों की जान गयी थी. तात्कालिक निशंक सरकार पर भी आपदा राहत में पैसों की बंदरबांट के आरोप लगे थे.
इस वर्ष आयी भीषण आपदा के शिकार राज्य के सीमांत क्षेत्र हुये हैं, जो पहले से ही विकास के मोर्चे पर उपेक्षा झेल रहे हैं. आपदा के कारण केवल राज्य का परिवहन यानी आवागमन ही नहीं रुकता है, बल्कि पूरी अर्थव्यवस्था चैपट हो जाती है. इस समय आपदाग्रस्त उत्तराखण्ड में स्थिति से निपटने के लिए सभी पार्टियों को एक होकर काम करना चाहिए. कम से कम इस समय तो ये लोग संवेदनाओं की राजनीति न ही करें. मुसीबत में चारधाम यात्री तो हैं ही, साथ ही में स्थानीय लोग भी इस आपदा के कारण बर्बादी की कगार पर पहुंच चुके हैं. मुख्यमंत्री बहुगुणा वैसे भी प्रवासी मुख्यमंत्री कहे जाते हैं. अब देखना यह है कि दिल्ली से उत्तराखण्ड को कितनी मदद मिलती है.
सरकारी आंकड़े अभी भी मृतकों की संख्या काफी कम बता रहे हैं. जिस समय केदारनाथ में मलबा आया था उस समय मंदिर परिसर में ही हजारों लोग मौजूद थे, जिन्हें जान बचाने तक का मौका नहीं मिला. इसी तरह केदारनाथ धाम से पहले पड़ने वाले पड़ाव स्थल रामबाढ़ा का पूरी तरह से नामोनिशान मिट गया है. अगर सरकारी आंकड़ांे से इतर स्थानीय लोगों की मानें तो इस आपदा में मरने वालों की संख्या 20 हजार के ऊपर पहुंचेगी.
उत्तराखण्ड में आयी आपदा देश में आयी बड़ी प्राकृतिक आपदाओं में से एक है. उत्तराखण्ड को इससे उबरने में सालों साल लग जायेंगे, लेकिन राज्य में अब तक आयी आपदाओं के बाद पुर्नवास के लिए किये गये सरकारी कामों को देखकर यह स्पष्ट है कि आपदा के कारण केन्द्र सरकार से जुटी सरकारी सम्पदा पर माननीय और उनके चहेतों की नजर लग चुकी होगी.
आपदा के बाद बचे हुये लोगों ने एक ही बात कही है कि प्रशासन की तरफ से उन्हें कोई मदद नहीं मिली. धारचूला क्षेत्र में भी काली नदी सब कुछ तहस नहस कर रही थी और तीन दिन बाद भी प्रशासन की तरफ से कोई एक्शन नहीं लिया गया. इसी तरह केदारनाथ में लोगों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया.
केदारनाथ और रामबाड़ा में मौत का तांडव मचा हुआ है. एक आपदा पीडि़त ने तो एक टीवी चैनल पर यहां तक कह दिया कि अगर सरकार कुछ नहीं कर सकती, तो वहां पर बम गिरा दे. कम से कम लोग भूखे तो नहीं मरेंगे. सेना और आईटीबीपी राहत कार्यों में लगी हुई है. सेना और आईटीबीपी के अलावा सरकार के पास अपनी तरफ से बचाव कामों के लिए कोई तंत्र भी नहीं है.
नरेन्द्र देव सिंह राजनीतिक संवाददाता हैं.
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