देवभूमि का तमगा उत्तराखंड के महाविनाश का सबसे बड़ा कारण
पलाश विश्वास
पहाडो़ं से विपर्यय अभी टला नहीं है। लाशों की संख्या भयावह होने की चेतावनी जारी करके बाकी देश को सतर्क करके तैयार रखा जा रहा है। हजारों की तादाद में पर्यटक फंसे हैं तो लाखों की तादाद में हिमालयी जनता के वजूद के लिए खतरा बना हुआ है। मौसम विभाग ने पहले भारी वर्षा की चेतावनी जारी की तो धर्म के कारोबार में खलल न पड़े, इसलिए केदार बदरी यात्रा स्थगित करने की सबसे जरुरी कार्वाई हुई ही नहीं। वरना हमें भारतीय जवानों को राहत अभियान में खपाने की जरुरत ही नहीं पड़ती। फिर भारी बारिश की चिंता है , हिमालयी जनता के कुशल क्षेम के लिए कुछ भी नहीं बदल रहा है, सिर्फ पर्यटकों को निकालने की कवायद हो रही है समय के दस्तक के विरुद्ध और इसी बीच नरेंद्र मोदी के विपर्यय पर्यटन के साथ पहाडो़ं में भी रथयात्रा का शुभारंभ हो गया जहां अश्वमेध के घोड़े सबसे तेज दौड़ते है।मुझे माफ करें दोस्तों! आस्था पर चोट पहुंचाना मेरा मकसद नहीं है। लेकिन अब कहना ही पड़ेगा कि देवभूमि का तमगा उत्तराखंड के महाविनाश का सबसे बड़ा कारण है।
गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उत्तराखंड में बाढ़ और भूस्खलन से तबाह हुए केदारनाथ मंदिर के जीर्णोद्धार का काम गुजरात को सौंपे जाने का अनुरोध किया है।बेशक दूसरे राज्य बी उत्तराकंड की मदद के लिए पहल कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश ने 25 लाख दिये तो गुजरात ने मात्र दो लाख। लेकिन केदरनाथ मंदिर के जीर्मोद्धार के बहाने लोकसभा चुनाव से पहले राम जन्म भूमि जैसा उन्माद पैदा करने के अलावा शायद मोदी की यह महात्वांकाक्षा भी हो कि इस शीर्षस्थ धर्मस्थल के जरिये हिंदी धर्मालंबियों की आंखों में वे युगों तक अवतार मान लिये जायें!मोदी ने शनिवार को राज्य के बाढ़ तथा भूस्खलन से प्रभावित क्षेत्रों का हवाई सर्वेक्षण करने के बाद मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा से मुलाकात के दौरान यह अनुरोध किया। भारतीय जनता पार्टी के मीडिया प्रभारी श्रीकांत शर्मा ने बताया, मोदी ने बहुगुणा से मुलाकात के दौरान कहा कि केदारनाथ मंदिर के जीर्णोद्धार का काम आप हमें दीजिए और गुजरात सरकार इसे पूरा करेगी।
अंध धर्मोन्माद ने हिमालय वासियों के अपने भोगे हुए यथार्थ का अहसास भी नहीं करने देता। नेपाल में राजतंत्र के अवसान के बाद हिंदू राष्ट्र का अवसान तो हो गया, पर हिंदुत्व का भूत अब भी वहां आम जनता के पीछे पड़ा हुआ है। न संविधान लागू हो सका और न सरकार काम कर रही है। उत्तराखंड का दुर्भाग्य यह है कि पृथक राज्य बनने के बाद से वहां हिंदुत्व की राजनीति और ज्यादा मजबूत हो गयी है। हिमाचल में तो खैर देवों का ही शासन है। इसीतरह हिमालय के सबसे खूबसूरत हिस्सा कश्मीर में इस्लामी धर्मोन्माद ने वहां यथास्थिति बना रखी है।
भौतिक परिस्थितियों को हजारों साल से नजरअंदाज करते हुए आध्यात्म में निष्णात हिमालयी जनता का धर्म के कारोबारियों ने जो हाल बेहाल किया है , उसका नतीजा यह जलप्रलय है। ऊंचे पहाड़ो पर धर्म की आड़ में बेरहमी से पहाड़ के सीने पर जो अवैध निर्माण कार्य हो रहे हैं, केदार बदरी गंगोत्री और यमनोत्री से उसका मलबा निकलने लगा है। मानसरोवर तक में कारपोरेट प्रोमोटर भूमाफिया राजनीति और धर्म के दोहरे लाभ और दोहरे संरक्षण के जरिये पहाड़ का सर्वनाश कर रहे हैं।
अब इस धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद का नतीजा है कि संघ परिवार के प्रधानमंत्रित्व के दावेदार और गुजरात नरसंहार में मुख्य अभियुक्त नरेंद्र मोदी ने केदारनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण करने का ऐलान कर दिया है।भव्य राम मंदिर निर्माण के एजंडे से देशभर में जो कल्याण हुआ, उसके मद्देनजर मोदी की इस घोषणा को पहाड़ के लिए रेड अलर्ट समझना चाहिए।गौरतलब है कि मोदी ने बाढ़ और भूस्खलन से प्रभावित कुछ क्षेत्रों का हवाई सर्वेक्षण कर स्थिति का जायजा लेने के बाद ट्वीट किया था कि उन्होंने देवप्रयाग, टिहरी बांध, बद्रीनाथ, रुद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग, चमोली, गोपेश्वर, गौरीकुंड, केदारघाटी, जोशीमठ और अगस्तमुनि क्षेत्रों में बाढ़ की तबाही का मंजर देखा है।
अपनी प्रबल धार्मिक आस्था के बावजूद हिमालय पर अभी संप्रदायिक वैमनस्य का कलंक लगा नहीं है। क्योंकि हिमालयी जनता की नस्ल अलग है, हिंदू होने के बावजूद देश के बाकी हिंदुओं से वे अलग हैं। यह नस्ली भेदभाव कितना प्रबल है, उसे समझने के लिए बंगाल के पहाड़ों में बसे गोरखों और लेप्चा समुदाय के लोगों, मणिपुर समेत समूचे पूर्वोत्तर में जनता का साथ राष्ट्र के दमनकारी रवैये और बाकी हिंदू जनसमुदाय की निरलिप्तता से समझा जाता है।
उत्तराखंड के जलप्रलय को राष्ट्रीय आपदा इसलिए कहां जा रहा है कि इस बार सिर्फ पहाड़ी नहीं मारे गये। मारे जाने वाले लोगों में वृहत्तर हिंदू समाज के भूगोल के हर हिस्से का प्रतिनिधित्व है। लेकिन अब भी सरकारों और मीडिया को सिर्फ पर्यटकों को निकालने की चिंता है।
इस पर तुर्रा यह की भारत धर्म के ध्वजावाहक भावी प्रधानमंत्री तो अलग से गुजरात के पंद्रह हजार तीर्थयात्रियों को निकाल ले गये। क्या बाकी लोग उनके हिंदू राष्ट्र के निवासी नहीं है?उत्तराखंड में जारी राहत अभियान के बीच वहां पहुंचकर पंद्रह हजार गुजराती श्रद्धालुओं को रैंबो स्टाइल में वे निकाल ले गये। बाकी जो फंसे हैं, और आम हिमालयी जनता का दुर्भाग्य है कि वे गुजरात के निवासी नहीं , पर इसी भारत के वासी हैं। संघपरिवार के लिए जैसे अछूत हैं, वैसे ही हैं वनवासी और वैसे ही भारतवासी। गुजरात के लोगों का हिंदुत्व जाहिर है कि बाकी देश के मुकाबले ज्यादा मुकम्मल होगा क्योंकि उन्होंन न सिर्फ मोदी को मुख्यमंत्री बनाया बल्कि गुजरात नरसंहारके बाद भी उन्हें फिर फिर चुन रहे हैं और अब तो प्रधानमंत्री भी बना रहे हैं।
वैसे सच तो यह है कि हिमालयी जना के कमतर हिंदुत्व के लिए ही शायद केदार बदरी और गंगोत्री से भी ऊपर ऊंचे पहाड़ों मे या उफनती नदियों के आर पार फंसे लोगों की चिंता किसी को नहीं है। जो रस्सियों के पुल के सहारे जीते हैं। भूस्खलन में मारे जाते है। बाढ़ में बह जाते हैं और भूकप में जिंदा दफन हो जाते हैं। क्या इसी मृत्युभूमि का संस्कृत पर्याय देवभूमि है?
भूस्खलन , बाढ़ और भूकंप की हरमार सहने वाले लोग हिमालय के साथ मरने को अभिशप्त है और हिंदुत्व की अमोघ पहचान से इस नियति में कोई फर्क नहीं पड़ा है।
सभी लोग कांग्रेस की विजय बहुगुणा सरकार को कोस रहे हैं जैसे भाजपाइयों के सत्ता में लौटने से उत्तराखंड फिर स्वर्ग राज्य बन जायेगा।उत्तराखंड राज्य की पहली सरकार भाजपा की ही थी। नित्यानंद स्वामी, दो दो बार मुख्यमंत्री बने भुवन चंद्र खंडुरी और निशंक ने क्या गुल खिलाये, पहले इसका आकलन कर लें!
अलग राज्य बनने से पहले भी पहाड़ से उत्तरप्रदेश के चार चार मुख्यमंत्री हुए। गोविंद बल्लभ पंत, हेमवती नंदन बहुगुमा , चंद्रभानु गुप्त और नारायणदत्त तिवारी। तिवारी तो उत्तराखंड के भी मुख्यमंत्री रहे हैं और विजय बहुगुमा तो अपने पिता के पदचिन्हों पर ही चल रहे हैं। उत्तराखंड का मौजूदा हाल इनतमाम मनीषियों और विकास पुरुषों के कृतित्व का योगफल है। सारा श्रेय विजय बहुगुणा को देदेना अन्याय है। फिर आपदा प्रबंधन तो राष्ट्र की जिम्मेदारी है। लेकिन उग्रतम हिंदुत्व के सत्ता वर्चस्व में देवभूमि के लगातार होने वाले विपर्यय में अपने गहरे हिंदुत्व के बावजूद हिमालयी जनता की सुरक्षा के लिए क्या क्या इंतजाम हुए, उसकी पोलतो खुल ही गयी जब लाशें हरिद्वार से लेकर बिजनौर तक बह निकलने लगी है। अब जब टिहरी बांध का एटम बम फूटेगा, तब लाशें राजधानी दिल्ली को भी जब लाशों के महानगर में तब्दील करेंगी, तभी शायद आपदा प्रबंधन कानून को लागू करने की अनिवार्यता महसूस की जायेगी।
दरअसल पहाड़ों में स्वर्ग कहीं नहीं है और न देव भूमि है। देवभूमि की संस्कृति अनंत समृद्धि की है। बेरोजगारी और भुखमरी का आलम जहां सर्वव्यापी हो, उसे देवभूमि कहने से बड़ा छल और कोई नहीं। हिमाचल में जबतक पर्यटक फंसे थे, खबरें आती रही और अब वहां कोई विपर्यय नहीं है। गंगोत्री के उस पार टौंस घाटी और जनजातीय जौनसार भाबर इलाकों की कभी कोई खबर नहीं बनती। खबर नहीं बनती, अल्मोड़ा और पिथौरागढ़ के उन दूर दराज के इलाकों की, जहां न पर्यटन है और न तीर्थाटन है।
बाकी हाल हमारे कुछ खास मित्रों के फेस बुक वाल को देखने के बाद आप ही बांच लें!
Rising Rahul : उत्तराखंड आपदा: राष्ट्रीय दामाद रॉबर्ट वढेरा ने 1 नवंबर 2007 में सीधे बद्रीनाथ-केदारनाथ की हवाई सेवा शुरू की थी। ब्लू ब्रिज ट्रेडिंग प्राइवेट लिमिटेड के बैनर तले इस कंपनी का रजिस्ट्रेशन नंबर U52100DL2007PTC170055 है।
राष्ट्रीय दामाद जी 1 नवंबर 2007 से 4 जनवरी 2015 तक इसके डायरेक्टर हैं। यह वही कंपनी है जो उत्तराखंड में जिंदा लोगों को निकालने के लिए दो लाख रुपये और लाशों को निकालने के लिए एक लाख रुपये का चार्ज वहां फंसे लोगों से वसूल रही है। राष्ट्रीय बेटा जी अपने जीजाजी के साथ इन दिनों लाशों की सौदागरी से मिले पैसे से विदेश यात्रा का आनंद ले रहे हैं।
पत्रकार राहुल पांडेय के फेसबुक वॉल से.
Prem Chand Gandhi : अगर देश के तमाम मंदिरों में बेवजह जमा पड़े सोने और चांदी के आभूषणों को नीलाम कर देवभूमि उत्तराखण्ड के पुनर्निर्माण लगा दिया जाए तो किसी के सामने हाथ फैलाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। आखिर देवी-देवताओं का धन देवी-देवताओं के ही काम नहीं आएगा तो फिर किसके काम आएगा... आस्थावान लोगों को भी इससे शायद ही कोई आपत्ति होगी... यह बात मैं इसलिए कह रहा हूं कि पिछले दिनों राजस्थान के एक प्रसिद्ध मंदिर के प्रबंधन से जुड़े व्यक्ति ने बताया कि मंदिर के पास हज़ारों टन सोना-चांदी है, लेकिन सरकार इसे बेचने नहीं देती।
साहित्यकार प्रेमचंद गांधी के फेसबुक वॉल से.
Rajiv Nayan Bahuguna : वस्तु स्थिति को समझिए... आप यदि राहत के नाम पर कोई खाद्य सामग्री या वस्त्र भेज रहे हैं, तो वह ज़रूरतमंदों तक नहीं पहुंच रहा. जब वहां के रास्ते ही बंद हैं तो पंहुच कैसे सकती है? उसकी कहीं बीच में ही बन्दरबाँट हो रही है... इसलिए किसी को भी पैसा न भेजें. कई एनजीओ का धंधा ही यही है. उनकी मौज आ जाती है. जब रास्ते खुलेंगे, तो खुद जाकर आकलन कीजिए और फिर किसी गाँव य परिवार को गोद लें..
आपदा पीड़ितो को भी नकदी न दें, मेरा कटु अनुभव है कि वह पैसा दारु के ठेकों पर जाता है. इधर मदद आती है, और उधर शराब माफिया दुर्गम गांवों में जाकर दारू की होम डिलीवरी स्टार्ट कर देता है... लोग फिर से आनन-फानन में मलबे के ढेर या आपदा प्रवण जगह पर घर बना लेते हैं.. अभी चुप बैठिये. आर्मी को अपना काम करने दीजिए. उसके सिवा अभी कोई कुछ नहीं कर सकता. आप यहाँ आकर केवल आर्मी को डिस्टर्ब करेंगे..
केन्द्र सरकार पर दबाव डालें कि सम्पूर्ण हिमालय क्षेत्र के लिए अलग संरक्षण वादी नीति बनाये, ताकि आपदाओं का स्थायी हल हो... फिर से नम्र निवेदन है कि पैसा न भेजें, वह लोगों को भ्रष्ट, परजीवी, अकर्मण्य और चटोरा बनाएगा... इस सारी आपदा के मूल में पैसे का लालच है, चाहे वह सरकारों का हो, या स्थानीय लोगों का...
उत्तराखंड के वरिष्ठ पत्रकार और लोक गायक राजीव नयन बहुगुणा के फेसबुक वॉल से.
Jitendra Dixit : विजय बहुगुणा पर्वत की प्रलय लीला का आंकलन करने में चूक गए। इसी चूक के चलते बचाव और राहत में देरी हुई। सेना ने मोर्चा संभाला तो लोगों को बचाकर सुरक्षित निकालने का काम शुरू हुआ। याद कीजिए पहले दिन मुख्यमंत्री जी बोले-पहाड़ में संचार व्यवस्था ठप हो गई। अगले दिन बयान था कि सभी जिलाधिकारियों को वीडियो कांफ्रेंसिंग से निर्देश दिए गए।
संचार व्यवस्था अभी तक बहाल नहीं हुई, ऐसे में वीडियो कांफ्रेंसिंग कैसे हुई, यह जवाब तो विजय बहुगुणा ही दे सकते हैं? विजय बहुगुणा सरकार की लापरवाही आपदा से पहले मौसम पूर्वानुमान न देने से लेकर बाद में राहत कार्य में देरी तक उजागर हो चुकी है। विजय बहुगुणा में अपने पिता हेमवंती नंदन बहुगुणा जैसी समझ नहीं है। स्व. एच.एन. बहुगुणा हालात से निपटना बखूबी जानते थे। इसके लिए विरोधी भी उनकी प्रशंसा किया करते थे।
बात तब की है जब यूपी में मुख्यमंत्री थे। लखनऊ विवि के छात्रों का प्रदर्शन मुख्यमंत्री निवास की ओर बढ़ा। अफसरों ने लाठी-गोली का इंतजाम कर मोर्चा संभाल लिया। इसकी सूचना मिलते ही बहुगुणा जी ने आंदोलनकारी छात्रों को मुख्यमंत्री निवास तक आने देने को कहा। जब मुर्दाबाद के नारे लगाता हुआ प्रदर्शन निवास पर पहुंचा तो बहुगुणा जी प्रदर्शनकारियों के बीच आ गए। बोले-मैं भी छात्र संघ अध्यक्ष रह चुका हूं। आपकी दिक्कतों से वाकिफ हूं। शांति के साथ विस्तार से समस्या बताइए। समाधान करूंगा। इसी बीच अफसरों को सबके लिए चाय-पानी का इंतजाम करने को कहा।
फिर क्या था बहुगुणा जिंदाबाद के नारे लगने लगे। एक और वाकया है जेपी आंदोलन का। यूपी में संपूर्ण क्रांति आंदोलन का आगाज करने जेपी लखनऊ आए। उस समय यूपी के सर्वाधिक भ्रष्ट मंत्रियों की जो सूची तैयार की गई थी, उसमें सबसे ऊपर बहुगुणा जी के खास राजमंगल पांडे का नाम था। जेपी हवाई अड्डे पर उतरे तो सबसे पहले माला पहनाकर स्वागत करने वाले हेमवती नंदन बहुगुणा थे। जेपी का स्वागत कर कहा-भ्रष्टाचार मिटाना चाहता हूं। आंदोलन के बजाय इस काम को सब मिलकर करें। उस समय प्रधानमंत्री इंदिरा जी को बहुगुणा की यह पहल पसंद नहीं आई थी, पर विरोधी आंदोलन की धार एकबार को कुंद पड़ गयी थी। काश विजय बहुगुणा अपने पिता से कुछ सीखे होते तो शायद आज उनकी इतनी किरकिरी नहीं होती।
वरिष्ठ पत्रकार जितेंद्र दीक्षित के फेसबुक वॉल से.
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