उत्तराखंड: ...कई घरों में मर्द ही नहीं बचे
उत्तराखंड से आ रही ख़बरें देश की धड़कनें बढ़ा रही हैं. मौसम ने संचार और संपर्क के तमाम माध्यम ध्वस्त कर दिए हैं ऐसे में ख़बरें इकट्ठा करना और उन्हें लोगों तक पहुँचाना जोख़िम का काम बन गया है. बीबीसी हिंदी ने बात की प्रभावित इलाके में काम कर रहे स्थानीय पत्रकारों से...
संदीप थपलियाल (अमर उजाला), रुद्रप्रयाग से
मंदाकिनी नदी में बाढ़ आने के बाद हमने क्षेत्र का दौरा कर जायजा लेने का प्रयास किया लेकिन हम रुद्रप्रयाग शहर से ही बाहर नहीं निकल सके. मुख्य पुल पर पानी उतर रहा था. गांव तक सिर्फ पैदल रास्ते ही पहुँच रहे हैं जिन पर चलना बहुत खतरनाक है.
स्थानीय प्रशासन मुख्य मार्गों को जोड़ने का प्रयास तो कर रहा है लेकिन कई गाँव पूरी तरह बाहरी दुनिया से कट गए हैं. कई किलोमीटर पैदल चलने के बाद ही गाँवों तक पहुँचा जा रहा है. अगस्त्यमुनि से रुद्रप्रयाग तक सिर्फ एक झूला पुल बचा है. कई स्थान ऐसे हैं जहां पता नहीं चल पा रहा है कि सड़क कहां थी और घर कहां थे. सड़कें नदियों में समा गई हैं. पहाड़ चढ़कर, नदी के किनारे चलकर ही लोगों तक पहुँचा जा रहा है. रास्ते में मिले बुजुर्गों ने बताया कि उन्होंने अपने जीवन में ऐसी त्रासदी कभी नहीं देखी है.
बिजली न आने की वजह से संचार उपकरण भी काम नहीं कर रहे हैं. कई गाँवों की खबर किसी भी तरह से नहीं मिल पा रही है, उदाहरण के तौर पर उखीमठ घाटी में भौंडर गांव है जिससे 14 जून के बाद से कोई संपर्क नहीं हो पा रहा है. इस गांव के बारे में न स्थानीय लोगों को कोई खबर है और न ही प्रशासन को.
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आशा प्रसाद सेमवाल(अमर उजाला), गुप्तकाशी से
16 जून को त्रासदी हुई थी. चार दिन तक संचार तंत्र पूरी तरह ठप्प था. आसपास का हाल भी नहीं मिल पा रहा था. सड़क मार्ग और गाँवों को जोड़ने वाले पुल टूट गए थे. ऐसा लग रहा था जैसे हम सत्रहवीं सदी में पहुँच गए हैं.
प्रशासन और शासन का पूरा ध्यान इस समय केदारनाथ और वहां फँसे यात्रियों को निकालना है लेकिन घाटी में सैंकड़ों गाँव ऐसे हैं जहाँ मातम पसरा है. विद्युत व्यवस्था पूरी तरह से ठप्प है. कालीमठ घाटी जाने का कोई ज़रिया नहीं रह गया है. यहाँ एक दर्जन गाँव पूरी तरह कटे हुए हैं.
प्रभावित लोगों तक पहुँचने में टूटे रास्ते बाधा बन गए हैं. संचार व्यवस्था ठप्प पड़ जाने के कारण गांवों से सूचनाएं भी नहीं मिल पा रही हैं जिससे रिपोर्टिंग में दिक्कत आ रही है. हम बहुत मशक्कतों के बाद कुछ गाँवों में पहुँचने में कामयाब रहे.जिन गाँवों में हम पहुँचे वहां अफरा-तफरी और कोहराम का माहौल था.
लोग अपनी बात कहने की स्थिति में भी नहीं है, हर जगह विलाप मचा है. त्रासदी के शिकार ज्यादातर लोग युवा हैं जो यात्रा सीजन के कारण केदारनाथ गए थे. कुछ परिवार ऐसे हैं जिनमें अब सिर्फ महिलाएं ही बची हैं. कमाने बाहर गए पुरुष त्रासदी का शिकार हो गए हैं.
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अभिनव कलूड़ा (यूएनआई), रुद्रप्रयाग से
आपदा प्रभावित लोगों तक पहुँचना सबसे बड़ी चुनौती है. जोख़िम भरे रास्तों से गुजरगर प्रभावित गांवों तक पहुँचा जा रहा है. एक गांव तक पहुँचने के लिए नदी किनारे बेहद मुश्किल हालात में चलना पड़ा. ऊपर से पत्थर गिर रहे थे और नीचे पानी बह रहा था. कठिन रास्तों से डर तो लगा लेकिन स्थानीय लोगों को उन रास्तों से गुजरता देखकर हिम्मत बंधी.
संचार माध्यमों के ठप्प हो जाने के कारण सुबह की खबर शाम को मिल पा रही है. रुद्रप्रयाग में ही हमें दो दिन से अखबार पढ़ने को नहीं मिला है. टैक्सी और यातायात के अन्य साधनों के किराये में बेतहाशा बढ़ोत्तरी हुई है. हालांकि पिछले तीन दिनों से संचार माध्यम फिर से चलने लगे हैं.
तिलवाड़ा तक आठ किलोमीटर की दूरी तय करने के लिए मुझे 60 किलोमीटर का सफर करना पड़ा. जिन गाँवों में मैं गया वहाँ जनहानि तो नहीं लेकिन मालहानि बहुत हुई है.
प्रलय दिन के वक्त आया इसलिए लोग अपनी जान तो बचा सके लेकिन संपत्ति को नहीं बचा सके. लोगों ने बताया कि उनके घर उनकी आंखों के सामने बह गए और वह बेचारगी से देखते रहे.
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http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2013/06/130625_uttrakhand_local_villages_hard_time_dil.shtml
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