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Saturday, June 8, 2013

अराजक बंगाल हिंसा से रक्तस्नात, पत्रकारों पर जानलेवा हमला तो आम जनता बारुद के ढेर पर!

अराजक बंगाल हिंसा से रक्तस्नात, पत्रकारों पर जानलेवा हमला तो आम जनता बारुद के ढेर पर!


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​


अराजक बंगाल हिंसा से रक्तस्नात, पत्रकारों पर जानलेवा हमला तो आम जनता बारुद के ढेर पर!कानून और व्यवस्था के लिहाज से कोलकाता की तर्ज पर विधाननगर और बैरकपुर में पुलिस कमिश्नरेट बना दिये गाये हैं। नतीजा वहीं ढाक के तीन पात। अदालती निगरानी में पंचायत चुनाव प्रहसन के सिवाय कुछ नहीं है और सुरक्षा इंतजाम हुआ ही नहीं है। चुनाव आयोग बेबस है। आम जनता एकदम असुरक्षित है। विपक्ष को नामांकन दाखिल करने की इजाजत नहीं है। अनेक इलाकों में विपक्ष की गैरमौजूदगी में सत्तापक्ष के उम्मीदवार निर्विरोध जीत रहे हैं और ऐसी जीत का रिकार्ड बनने जा रहा है। चुनाव आयोग सुरक्षा इंतजाम की रट लगोने के अलावा बुरी तरह फेल है। यही नहीं, अंतर्कलह की वजह से सत्तादल के नेता कार्यकर्ता भी।मंत्री मदन मित्र और ज्योति प्रिय मल्लिक से लेकर खुद मुख्यमंत्री तक माकपा को जब चाहे तहब खत्म करने या विरोधियों को पोस्टर बना देने की धमकी देते रहे हैं।तृणमूल सांसद शताब्दी राय ने तो एक मिनट में पार्टी के विक्षुब्ध नेताओं को खत्म करने का खुलेआम ऐलान कर दिया। ज्योतिप्रिय के माकपाइयों से काले नाग जैसा सलूक करने के आह्वान के बाद वीरभूम के शताब्दी विरोधी तृणमूल जिलाध्यक्ष ने कांग्रेस और वाम मोर्चे के उम्मीदवारों को नामांकन दाखिल न करने का फतवा दे चुके हैं। जबकि अब अपनी ही पार्टी के विरोधी गुट के हमले के अंदेशे से वे कड़ी सुरक्षा घेरे में हैं। बंगाल में कानून का राज क्या है, उसका नजारा कमिश्नरेट मुख्यालय बैरकपुर में अदालत और थाने से सटे िलाकों में तऋणमूलियों के तांडव और पत्रकारों पर जानलेवा हमले से साफ सामने आ गया है। हालत इतनी संगीन है कि उद्योगमंत्री पार्थ चटर्जी तृममूल कार्यकर्ताओं और तृणमूल समर्थकों में अंतर बताने लगे हैं, और ऐसी तमाम घटनाओं से साफ इंकार करने वाली दीदी ने अपराधियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की घोषणा की है।


पश्चिम बंगाल के बैरकपुर में तृणमूल कांग्रेस के समर्थकों और पार्टी समर्थित बदमाशों ने शुक्रवार को एक पत्रकार को जिंदा जलाने की कोशिश की जबकि चार अन्य पत्रकारों पर हमला कर उन्हें गंभीर रूप से घायल कर दिया।ये पत्रकार हत्या के बाद हुई हिंसा की घटना को कवर करने गए थे। स्थानीय लोगों का कहना है कि तृणमूल कांग्रेस के दो गुटों के बीच हुए फसाद में एक व्यक्ति की हत्या हो गई थी। बैरकपुर के सिटी पुलिस प्रमुख संजय सिंह ने बताया कि इस मामले में तीन लोगों को गिरफ्तार किया गया है।बकौल अस्पताल में नाजुक हालत में भर्ती समाचार चैनल से जुड़े अस्तिक चटर्जी, ` उन्होंने मुझे लोहे की रॉड और लाठियों से पीटा. एक बदमाश ने लोहे की रॉड मेरे सिर पर दे मारी। मेरे सिर से खून बहने लगा। मैं जमीन पर गिरा गया, लेकिन बदमाश मुझे पीटते रहे।मैं बेहोश हो गया। इस बीच कुछ बदमाशों ने बरून सेनगुप्ता को पकड़ लिया। वे उसे पास के ही एक घर में ले गए। उन्होंने बरून को एक कमरे में बंद कर दिया। इसके बाद बदमाशों ने बरून की पिटाई शुरू कर दी। एक बदमाश ने बरूम पर पेट्रोल उड़ेल दिया। वे आग लगाने ही वाले थे तभी कुछ स्थानीय लोग वहां आ गए और उसे बचा लिया।'


मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा है कि तृणमूल कांग्रेस कार्यकर्त्ताओं के बीच कथित गुटीय झड़पों को कवर करने के लिए गए तीन मीडियाकर्मियों पर हमला करने वालों पर मामला दर्ज किया जाए।छत्तीसगढ़ में हुए नक्सलियों के घातक हमले के बाद अब पश्चिम बंगाल और मुख्‍यमंत्री ममता बनर्जी भी इस उग्रवादी संगठन के निशाने पर हैं।केन्द्र ने ममता बनर्जी समेत अन्य वीवीआईपी लोगों की सुरक्षा बढ़ाने को को कहा है। अराजकता और हिंसा के इस आलम में अब कुछ भी अप्रिय कहीं भी घट सकता है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी बुधवार को नई दिल्ली में आंतरिक सुरक्षा पर हो रहे मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन में नहीं पहुंचीं।


खुफिया सूत्रों ने संकेत दिया है कि पश्चिम बंगाल में माओवाद प्रभावित जंगलमहल में पंचायत चुनाव प्रचार अभियान के दौरान राजनीतिक नेताओं पर छत्तीसगढ के जैसा ही हमला होने की 'प्रबल संभावना' है।


वर्ष 2011 में संयुक्त बलों के साथ मुठभेड़ में किशनजी के मारे जाने और कई माओवादी शीर्ष नेताओं के गिरफ्तार किए जाने के बाद से ही माआवोदी कभी अपना गढ़ रहे इस इलाके में फिर से संगठित होने की प्रयास में जुटे हैं।


खुफिया सूत्रों ने बताया कि कदाचित चरमपंथी अपनी मौजूदगी का एहसास करने के लिए इस इलाके में बड़े हमले का प्रयास करेंगे । इस इलाके के अंतर्गत पश्मिची मिदनापुर, पुरूलिया और बांकुरा जिले आते हैं। बड़े पैमाने पर हथियारों की खरीद-फरोख्त के लिए शीर्ष माओवादी नेता पश्चिम मेदिनीपुर जिलांतर्गत खड़गपुर का रुख कर रहे हैं, जो सुगम सड़क व रेल यातायात की सुविधा के साथ ही अवैध असलहों के केंद्र के रूप में भी जाना जाता है।


राज्य खुफिया ब्यूरो (एसआईबी) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि माओवादी पिछले कुछ महीने से जंगलमहल में फिर से संगठित होने का प्रयास कर रहे हैं लेकिन अबतक उन्होंने किसी सफलता का स्वाद नहीं चखा है। इस बात की प्रबल संभावना है कि माओवादी जंगलमहल में प्रचार अभियान करने वाले राजनीतिक नेताओं पर हमला करें।


तृणमूल कांग्रेस नेता और राज्य के उद्योग मंत्री पार्थ चटर्जी ने कहा, ''मुख्यमंत्री ने पुलिसकर्मियों को मीडियाकर्मियों से दुर्व्यवहार करने वाले (दोषियों) को गिरफ्तार करने का निर्देश दिया है।'' चटर्जी ने कहा कि मुख्यमंत्री ने घायल पत्रकारों के जल्द ठीक होने की कामना की और उनके उपचार में सरकार की सहायता का भी आश्वासन दिया है।


मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने गुरुवार को पश्चिम बंगाल के राज्यपाल एमके नारायणन से अगले महीने होने वाले पंचायत चुनाव के लिए नामांकन भरने के दौरान सत्तारूढ़ दल तृणमूल कांग्रेस द्वारा विपक्षी उम्मीदवारों पर कथित हमले को लेकर हस्तक्षेप करने की मांग की।


विपक्ष के नेता सूर्यकांत मिश्रा ने कहा, "हमारे पास नामांकन भरने के दौरान विपक्षी उम्मीदवारों एवं कार्यकर्ताओं पर हमले और उन्हें डराने-धमकाने की घटनाओं की जिलेवार सूची है। इस मामले में राज्यपाल से हस्तक्षेप की मांग की है।" मिश्रा ने आगे बताया कि राज्यपाल का ध्यान विपक्षी उम्मीदवारों को चुनावी मुकाबले से हट जाने के लिए उन्हें मिल रही धमकियों की ओर भी आकृष्ट किया गया है। उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य सरकार के मन में संविधान के प्रति रत्तीभर सम्मान नहीं है और वह विपक्षी उम्मीदवारों को सुरक्षा मुहैया कराने में असमर्थ है।


देशभर में बंगाल के पत्रकारों की हालत सबसे फटेहाल है।ज्यादातर पत्रकार दिनभर उपहार और पोस्तो बटोरने में लगे रहते हैं और उनकी पहचान पत्रकारिता के लिए नहीं, बल्कि उनकी दलाली में अति सक्रियता के काऱम है। कुणाल घोष अकेले नहीं है। तमाम जगह कुणाल घोष और देवयानियों का साम्राज्य है। उनका महत्व कितना ज्यादा है , वह कुणाल के पुनर्वास के लिए मुख्यमंत्री की पहल से साफ जाहिर है।इससे पहले शारदा कांड से उत्तेजित दीदी ने भविष्य में किसी पत्रकरा को टिकट न देने का ऐलान किया था। पर हावड़ा संसदीय उपचुनाव में जीत के बाद चिटफंडिया अपराधबोध सिरे से गायब है। जनादार के अटूट होने ौर बिना प्रतिद्वंद्विता पंचायत चुनाव में देहात बांग्ला फतह करके वामसत्ता के रिकार्ड को ध्वस्त करने के प्रति आश्वस्त दीदी ने बाकी सांसदों के साथ कुणाल घोष को लेकर राइटर्स में बैठक भी कर ली।उन्हें तिरस्कृत भी नहीं किया गया। सांसद मुकुल राय, सांसद सृंजय राय, सांसद शताब्दी राय, शुबोप्रसन्नो, अर्पिता घोष,मंत्री मदन मित्र, मंत्री ज्योतिप्रिय मल्लिक,मंत्री फिरहाद हाकिम के खिलाफ, मेयर शोभनदेव के खिलाफ तमाम तरह के आरोप हैं, वे सभी अपना राजकाज जारी रखे हुए हैं। पर कुतरे गये तो अनुशूचितों केमामले के मंत्रालय से संबद्ध उपेन विश्वास के या फिर राज्य के उद्योगमंत्री पार्थ चटर्जी के, जिनके विभागों की बागडोर दीदी ने खुद संबाल रखी है।


बंगाल के प्रेस क्लब में किसी संपादकीय पत्रकार की सदस्याता निषिद्ध है और तमाम फर्जी पत्रकार सदस्यौर पदाधिकारी बने हुए हैं। अपना वर्चस्व बनाये रखने के लिए नय़ी सदस्यता के लिए बाकायदा स्क्रीनिंग की जाती है। वहां गैर पत्रकारों का आशियाना बना हुआ है। दीदी ने हाल में शारदा समूह के दो टीवी चैनल के अधिग्रहण की घोषणा की है।जिसे केंद्र सरकार ने अवैध करार दिया है। दर्जनों अखबार और टीवी चैनल बंगाल में जब तक खुलते और बंद होते रहते हैं। लेकिन सरकार कोई कार्रवाई नहीं करती। पत्रकार संगठनों में इन्ही बंद अखबारों के कर्मचारी नेता पत्रकारों का ही वर्चस्व है,जो मालिकों और सरकार और सत्तापक्ष और कारपोरेट घरानों की दलाली के सिवाय कुछ नहीं करते। सीमावर्ती इलाकों में तो ऐसे मान्यता प्राप्त पत्रकारों की भरमार है जो प्रेस का स्टिकर लगाकर अपनी गाड़ी से तमाम तरह की तस्करी करते हैं, पत्रकारिता नहीं। इन नेताओं को तमाम सुविधाएं हासिल हैं। पोश इलाकों में उनके बंगले बन गये हैं। लेकिन आम पत्रकारों के लिए राजधानी कोलकाता या और कहीं एक भी प्रेस कालोनी नहीं है, जबकि जिलों में पत्रकार संगठनों और प्रेस क्लबों की भरमार है।इन्हीं परिस्थितियों में ईमानदार पत्रकारों के लिए जान हथेली पर रखकर काम करने के अलावा कोई चारा ही नहीं है। कहां पर भी उनकी पिटाई हो जाती है। इलाके के काउंसिलर से लेकर प्रोमोटर सिंडिकेट तक पत्रकारों को तरह तरह सबक सिखाते रहते हैं। बैरकपुर में कुछ भी नया नहीं हुआ है।


बहरहाल कम से कम एक यूनियन इंडियन जर्नलिस्ट एसोसिएशन (आईजेए) ने बैरकपुर में टेलीविजन पत्रकारों पर हमले की आज निंदा की और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करने का आग्रह किया। एसोसिएशन के अध्यक्ष एस. सबा नायकन ने यहां जारी एक बयान में ड्यूटी पर रहने वाले पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का आग्रह किया।इस बीच पश्चिम बंगाल कांग्रेस के नेताओं ने कहा कि तृणमूल कांगेस का झंडा लिये लोगों द्वारा तीन मीडियाकर्मियों पर कथित हमला और कुछ नहीं बल्कि सत्ताधारी पार्टी द्वारा बुरे कार्यों को छुपाने का एक प्रयास है।

पश्चिम बंगाल प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रदीप भट्टाचार्य ने कहा,' यह हमला संसदीय लोकतंत्र के लिए एक खतरनाक संकेत हैं और यह ऐसे समय में हुआ है जब विपक्षी पार्टियां पंचायत चुनाव के लिए नामांकन दाखिल करने के दौरान तृणमूल कांग्रेस की ओर से हमले का सामना कर रही हैं।'


निंदा वाममोर्चे और दूसरे राजनीतिक दलों के नेता भी कर रहे हैं। लेकिन बंगाल में सर्वव्यापी हिंसा के माहौल को खत्म करने की पहल किसी ओर से नहीं हो रही है।


घटना का ब्यौरा देखें तो बंगाल के ताजा हालात का अंदाजा लगाया जा सकता है।पश्चिम बंगाल के बैरकपुर में तृणमूल कांग्रेस के समर्थकों और पार्टी समर्थित बदमाशों ने शुक्रवार को एबीपी न्‍यूज के एक पत्रकार को जिंदा जलाने की कोशिश की जबकि चार अन्य पत्रकारों पर हमला कर उन्हें गंभीर रूप से घायल कर दिया। ये पत्रकार हत्या के बाद हुई हिंसा की घटना को कवर करने गए थे। स्थानीय लोगों का कहना है कि तृणमूल कांग्रेस के दो गुटों के बीच हुए फसाद में एक व्यक्ति की हत्या हो गई थी। बैरकपुर के सिटी पुलिस प्रमुख संजय सिंह ने बताया कि इस मामले में तीन लोगों को गिरफ्तार किया गया है। बैरकपुर सदर बाजार इलाके में गुरूवार को उस वक्त हिंसा शुरू हुई जब स्थानीय अपराधी जितूलाल हटी मृत मिला। बताया जाता है कि हटी स्थानीय तृणमूल नेता शिबू यादव का करीबी था। वह गैम्बलिंग अड्डा चला रहा था।

हटी की हत्या के बाद स्थानीय गुडों ने स्थानीय तृणमूल पार्षद रबिन भट्टाचार्य के दफ्तर और चैम्बर पर हमला किया। भट्टाचार्य पेशे से वकील हैं। वह स्थानीय बार एसोसिएशन के अध्यक्ष बनने वाले थे। बदमाशों ने भट्टाचार्य के दफ्तर में तोड़फोड़ की और फर्नीचर को आग के हवाले कर दिया। इसके बाद उन्होंने भट्टाचार्य के साले दुलाल करमाकर के घर पर हमला किया।

गुंडों ने करमाकर और उनके परिजनों की बुरी तरह पिटाई की। रबिन को शिबू यादव के कैम्प के विरोधी के रूप में जाना जाता है। शुक्रवार को कुछ पत्रकार घटनास्थल पर गए जहां रबिन भी मौजूद थे। एक समाचार चैनल से जुड़े अस्तिक चटर्जी ने बताया कि हम लूटे गए रबिन के दफ्तर की शूटिंग कर रहे थे,तभी देखा कि कुछ युवक हाथों में लोहे की रॉड,तृणमूल कांग्रेस का झंडा और लाठियां लिए हमारी ओर बढ़ रहे हैं। उन्होंने हमें घेर लिया। उकसावे की कार्रवाई के बगैर उन्होंने हमें गालियां देनी शुरू कर दी। हमें घटना स्थल से जाने के लिए कहा।

उन्होंने रबिन पर भी हमला करने की कोशिश की जो हमसे बात कर रहे थे। एक अन्य पत्रकार बरून सेनगुप्ता ने बताया कि हमने युवाओं की गैंग का विरोध किया। हमने उन्हें हमारे काम में दखल नहीं देने को कहा। इससे वे उग्र हो गए और उन्होंने लोहे की रॉड और लाठियों से हमला कर दिया। हम जान बचाने के लिए वहां से भागने लगे। बदमाशों की गैंग ने हमारा पीछा किया और अस्तिक को पकड़ लिया।

बकौल अस्तिक उन्होंने मुझे लोहे की रॉड और लाठियों से पीटा। एक बदमाश ने लोहे की रॉड मेरे सिर पर दे मारी। मेरे सिर से खून बहने लगा। मैं जमीन पर गिरा गया लेकिन बदमाश मुझे पीटते रहे। मैं बेहोश हो गया। इस बीच कुछ बदमाशों ने एबीपी न्‍यूज के बरून सेनगुप्ता को पकड़ लिया। वे उसे पास के ही एक घर में ले गए। उन्होंने बरून को एक कमरे में बंद कर दिया। इसके बाद बदमाशों ने बरून की पिटाई शुरू कर दी। एक बदमाश ने बरून पर पेट्रोल उड़ेल दिया। वे आग लगाने ही वाले थे तभी कुछ स्थानीय लोग वहां आ गए और उसे बचा लिया।


तृणमूल कांग्रेस के बीरभूम जिला अध्यक्ष अनुब्रत मंडल ने एक रैली के दौरान पार्टी कार्यकर्ताओं को विवादास्पद निर्देश दे डाला।

उन्होंने कहा कि वे पंचायत चुनावों के लिए नामांकन दाखिल करें और दूसरों को ऐसा न करने दें।


रामपुरहाट में आयोजित पार्टी की रैली के दौरान मंडल ने कहा, ''याद रखो, माकपा हमारी दुश्मन है, कांग्रेस हमारी दुश्मन है। सोमवार से आप लोग नामांकन दाखिल करेंगे और दूसरों को नामांकन दाखिल नहीं करने देंगे। मैं आपके साथ रहूंगा।''


इस बैठक में दो मंत्री नूर आलम चौधरी और चंद्रनाथ सिन्हा, पार्टी सांसद शताब्दी रॉय और रामपुरहाट से पार्टी के विधायक आशीष बनर्जी मौजूद थे।


मंडल मीडिया से बात किए बिना ही बैठक से निकल गए लेकिन बाद में उन्होंने फोन पर स्पष्टीकरण देते हुए कहा, ''मैं यह कहना चाहता था कि पिछले 34 वर्षों में माकपा ने पंचायतों को बलपूर्वक बंधक बना रखा था और उसने लोगों के लिए कुछ नहीं किया। उन्हें खुद ही आगामी चुनावों को लड़ने से दूर रहना चाहिए।''


कलकत्ता उच्च न्यायालय ने मंगलवार को पश्चिम बंगाल सरकार को निर्देश दिए कि वह (पश्चिम बंगाल सरकार) न्यायालय द्वारा पंचायत चुनाव पर इससे पहले दिए गए उसके (न्यायालय) निर्देशों का पालन करे।


मुख्य न्यायाधीश अरुण मिश्र और न्यायमूर्ति जोयमाल्या बागची की खंडपीठ ने राज्य निर्वाचन आयोग (एसईसी) द्वारा दाखिल याचिका की सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिया कि आयोग द्वारा 14 मई को दाखिल याचिका पर इससे पहले न्यायालय द्वारा दिए गए निर्देशों का राज्य सरकार पालन करे।


मुख्य न्यायाधीश मिश्र ने कहा, "इसमें कोई शक नहीं कि चुनाव कराने का अधिकार एसईसी के पास है और उसके अधिकार पर संदेह नहीं किया जा सकता।" इसके अलावा बंगाल सरकार को तीन चरणों में होने वाले चुनाव के लिए नामांकन प्रक्रिया के दौरान समुचित सुरक्षा मुहैया कराने के निर्देश भी दिए गए। पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनाव दो, छह तथा नौ जुलाई को होने हैं।


इसके अतिरिक्त न्यायालय ने आयोग द्वारा बताए गए 40 निरीक्षकों की कमी का समाधान निकालने के लिए भी राज्य सरकार को निर्देश दिए। न्यायालय की इसी पीठ ने 14 मई को आदेश दिया था कि पंचायत चुनाव को तीन चरणों में 15 जुलाई से पहले सम्पन्न करा लिया जाए। इसके अलावा न्यायालय ने एसईसी को चुनाव की तारीखों के संबंध में नोटिस जारी करने तथा चुनाव निरीक्षकों की सूची जमा करने का निर्देश दिया। न्यायालय ने राज्य सरकार को सुरक्षाकर्मियों की कमी होने पर दूसरे राज्यों या केंद्र सरकार के सुरक्षा बलों द्वारा इसकी पूर्ति करने का निर्देश भी दिया।


एसईसी ने सोमवार को न्यायालय के समक्ष एक नई याचिका दाखिल कर दावा किया था कि नौ जिलों में दो जुलाई को होने वाले पहले चरण के चुनाव के लिए उम्मीदवार सुरक्षाकर्मियों की कमी के कारण नामांकन दाखिल करने से बच रहे हैं। सरकार की तरफ से पेश हुए वकील ने मंगलवार को न्यायालय के समक्ष तर्क दिया कि न्यायालय इस मामले में कोई आदेश जारी नहीं कर सकता। इस पर न्यायालय ने कहा कि कोई नया आदेश नहीं दिया जा रहा है, बल्कि पूर्व आदेश का पालन करने का निर्देश दिया जा रहा है। न्यायालय इस मामले की सुनवाई अब चार सप्ताह बाद करेगा।


शीर्ष माओवादी  नेता वेणुगोपाल और झारखंड के डुमरिया व गुड़ाबांधा का एरिया कमांडर मंगल सिंह मुंडा उर्फ मंगल मुड़ा उर्फ कानू मुंडा उर्फ अर्जुन के कुछ दिन पहले खड़गपुर आने की चर्चाओं की सत्यता जांचने के क्रम में खुफिया सूत्रों को कुछ महत्वपूर्ण जानकारी मिली है। सूत्रों के मुताबिक ये माओवादी आश्रय नहीं, बल्कि हथियारों की खरीद के लिए यहां आए थे, क्योंकि सुरक्षित आश्रय स्थल के रूप में माओवादी हमेशा दुर्गम क्षेत्र वाले सीमावर्ती क्षेत्रों का ही चुनाव करते हैं, ताकि खतरा होने पर सुरक्षित पलायन किया जा सके। बताया जाता है कि खड़गपुर अवैध असलहों की खरीद-फरोख्त का बड़ा केंद्र बन चुका है। सूत्रों के मुताबिक यहां सक्रिय अवैध असलहों के सौदागरों के तार झारखंड समेत दूसरे प्रदेशों तक ही नहीं, बल्कि नेपाल तक जुड़े हुए हैं। यदा-कदा पुलिस इस रैकेट से जुड़े लोगों को गिरफ्तार भी करती रही है। प्राप्त जानकारी के मुताबिक ऑपरेशन ग्रीन हंट से तगड़ा झटका लगने के बाद माओवादियों के पास हथियारों की कमी हो गई है। इस बीच नए सिरे से संगठित होने के प्रयास के तहत माओवादी अपने पास फिर हथियार जमा करना चाहते हैं। बताया जाता है कि पश्चिम बंगाल पुलिस की पंचायत चुनाव में व्यस्तता का लाभ उठाते हुए जंगल महल में फिर से सक्रिय होने की कोशिशें भी माओवादियों ने शुरू कर दी है। इसके लिए माओवादियों के झारखंड स्क्वायड ने जंगल महल के बचे-खुचे माओवादियों में श्यामल महतो और मदन महतो से संपर्क साधा है। साथ ही बड़े माओवादी नेताओं के जंगल महल के कुछ क्षेत्रों का दौरा किए जाने की भी सूचना है। शीर्ष माओवादी नेता वेणुगोपाल और झारखंड के मंगल मुंडा के शहर आने की अटकलों के बाबत मिली सूचना के मुताबिक 30 मई की दोपहर एपी 31 जे नंबर वाली काले रंग की स्कॉर्पियो और जेएच नंबर प्लेट वाला सफेद रंग का बोलेरो राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-6 पर खड़गपुर लोकल थाना क्षेत्र के साहाचक में देखा गया था। हालांकि खड़गपुर के अपर पुलिस अधीक्षक डॉ. वरुण चंद्रशेखर का कहना है कि आधिकारिक तौर पर उन्हें इसकी जानकारी नहीं है। सूचना मिलने पर जांच की जाएगी।


छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं पर हमले के बावजूद नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में राजनीतिक गतिविधियां तेज होंगी। नक्सल प्रभावित राज्यों के मुख्यमंत्रियों की अलग से हुई बैठक में इन इलाकों में आम जनता को मुख्य धारा से जोडऩे के लिए राजनीतिक गतिविधियां तेज करने का फैसला किया गया है। सभी मुख्यमंत्रियों ने इन इलाकों में राजनीतिक रैलियों को पूर्ण सुरक्षा मुहैया कराने का वायदा किया है।


बैठक में पिछड़े इलाकों में नक्सलियों की मौजूदगी के तीन कारण गिनाए गए। सुरक्षा बलों की गैरमौजूदगी, विकास कार्य न होना और राजनीतिक गतिविधियों की कमी से स्थानीय लोगों का नक्सलियों की ओर झुकाव। क्षेत्र से माओवादियों के प्रभाव को खत्म करने के लिए सबसे अहम कदम है स्थानीय लोगों को राजनीति की मुख्यधारा से जोडऩा।


इसके लिए पश्चिम बंगाल के जंगल महल का उदाहरण सामने रखा गया, जहां किशन के नेतृत्व में नक्सलियों का वर्चस्व था, लेकिन ममता बनर्जी के मुख्यमंत्री बनने के बाद वहां राजनीतिक गतिविधियां तेज हुई और लोग धीरे-धीरे नक्सलियों से दूर हो गए। अंतत: किशन भी सुरक्षा बलों के हाथों मारा गया। गृह मंत्रालय के अफसरों का कहना था कि नक्सल क्षेत्रों में राजनीतिक गतिविधियां तेज होने से आम लोगों, खासकर युवाओं को मुख्यधारा से जोडऩे में सफलता मिलेगी। छत्तीसगढ़ जैसी घटना से बचने के लिए गृह मंत्रालय ने ऐसी रैलियों और नेताओं की सुरक्षा के लिए राज्य पुलिस मुख्यालय में नोडल अधिकारी नियुक्त करने का सुझाव दिया।


इस अधिकारी पर रैलियों-नेताओं पर खतरे का आकलन करने और उसके अनुरूप सुरक्षा मुहैया कराने की जिम्मेदारी होगी।

बैठक में नक्सलियों की फंडिंग को रोकने के लिए तेंदू पत्ता चुनने का काम सरकारी एजेंसियों (सरकारीकरण) से कराने का फैसला किया गया। फिलहाल तेंदू पत्ता चुनने को राज्य सरकारें कंपनियों को ठेका दे देती हैं,जो नक्सलियों को मोटी रिश्वत देकर पत्ते चुनती हैं। नक्सलियों की फंडिंग का सबसे बड़ा स्रोत इसी को माना जाता है। अवैध खनन भी फंडिंग का अहम स्रोत है। सभी मुख्यमंत्रियों ने अपने राज्य में अवैध खनन बंद कराने के पुख्ता इंतजाम का वायदा किया है।


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