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Monday, June 24, 2013

चन्द्रशेखर करगेती कुछ तो रहम करो माई बाप !

कुछ तो रहम करो माई बाप !

जो सदियों से रहे हैं वेही सदियों तक रहेंगे । पहाड़ उनसे ही आबाद रहा है उनसे ही आबाद रहेगा । लेकिन टीआरपी का खेल उनके आंगन में खेला गया और उनकी बात नहीं हुई । टीआरपी का ज्वार अब भाटे में बदल गया हैं । बड़ी-बड़ी तेज रफ्तार गाडि़यों में दिल्ली के धुरंधर पत्रकार अब अपने धरौदों की तरफ लौट रहे हैं । मसूरी और ऋषिकेश की तरफ से फरार्ट भरती ये गाडि़यों बैठे तेज तर्रार लोग बस ज्योलीग्रांट एयरपोर्ट का पता पूछ रहे हैं । कार के डैसबोर्ड (शायद यही कहते हैं।) में अपनी फूकनी (हरिद्वार के एक पत्रकार साथी टीवी पत्रकारों के मायक को यही कहते हैं।) टिकाए भाई लोग जमाने को अपनी पहचान भी बताते चल रहे हैं । कार के आगे पहले ही कागज लगाकर लिखा हुआ है । 

सेना ने भी यात्रियों, पर्यटकों और भक्तों को बचाने का काम करीब-करीब कर लिया है । अब वह भी देर सबेर लौट जाएगी । जितने यात्रा इस रास्तों में फसे थे उससे कहीं अधिक लोग इन घाटियों में सैकड़ों सालों से रह रहे हैं । पहाड़ों, सड़कों, मकानों का टूटना-गिरना और बह जाना, नदियों, नालों और खालों में बाढ़ आ जाना आदि आदि आपदाओं को ये लोग साल दर साल पीढ़ियों से झेलते आ रहे हैं और आगे भी झेलेंगे ।

टीआरपी और सबसे पहले वाले इस खेल में अगर इन गांव और गांववासियों की भी थोड़ी बात हो जाती तो इन घटनाओं के सच के थोड़ा और करीब पहुंचा जाता ? यह समझने की कोशिश होती कि किन कारणों से मंजर इतना खौफनाक हो गया, तो शायद इन लोगों के बारे में कहीं कुछ सोचने की शुरूआत होती ? वैसे पहाड़ के लोगों को इससे ज्यादा फर्क भी नहीं पड़ता ! वहां आपके देश की तरह बारिस मिमी में नहीं नापी जाती, यहाँ बरसात के लगातार होने के दिन गिने जाते हैं । बरसात और जिंदगी पहाड़ में साथ साथ चलती है, बरसात से वहां जिंदगी थमती नहीं ! काश तुम ये भी कैद कर ले जाते !

साभार : Praveen Kumar Bhatt
 — with Jagmohan Phutela and 18 others.
Like ·  ·  · 18 hours ago · 
  • Lmohan Kothiyal hardship is the spirit of hill people for centuries
    17 hours ago · Like · 1
  • Sanjay Jothe एक बड़ा और सार्थक मुद्दा उठाया है अपने ... साधुवाद ...
    17 hours ago · Like · 2
  • Lalit Joshi jay ho..........
    17 hours ago · Like · 1
  • Raj Kamal शहर की गर्मी से निजात पाने वाले पर्यटकों के लिए पहाड़ी क्षेत्र एक आकर्षण का केंद्र बन चूका है। पहाड़ की ज़िन्दगी भले ही पर्यटकों के लिए लुभावनी लगे और स्वर्ग सा प्रतीत हो, लेकिन पहाड़ के वाशिंदों के लिए पहाड़ की ज़िन्दगी अत्यंत ही दूभर होती है।

    पर्यटकों से प्राप्त हुआ विभिन मद में जो पैसा सरकार प्राप्त करती है, उसे उन पहाड़ी क्षेत्रों के उन पहाड़ियों के विकास के लिए नहीं खर्च करती बल्कि पहाड़ के साइन को चीर कर सुरंगें एवं सडकों का निर्माण करती है, पहाड़ के लोग अपनी मूलभूत आवश्यकताओं से वंचित ही रह जाते हैं क्योंकि उन्हें सडकों से उतना लाभ नहीं मिल पाता जितना उन्हें विद्यालय और चिकित्सालयों के निर्माण से मिलता। 

    पहाड़ की छाती को निचोड़ कर बांधें बनायी जा रही हैं, कई शहरों में बिजली मुहैया कराया जा रहा है, लेकिन पहाड़ के लोगों को इस से क्या फायदा मिलता है, शायद कुछ भी नहीं। सरकार बिजली बेचती है और पैसा अपने खींसे में रखती है। लेकिन देखा जाए तो पहाड़ के सिने को निचोड़ने और फाड़ने से पहाड़ में रहने वालों के लिए ख़तरा बनता जा रहा है। इसके बदले में सरकार पहाड़ को समुचित विद्यालय और चिकित्सालय भी नहीं दे पाती।
    17 hours ago · Like · 1
  • Hema Dixit सार्थक और सटीक बात ... पहाड़ घूमने जाने के शौक़ीन मैदानी लोगों को इस आईने में स्वयं को देखने की बेहद सख्त जरूरत है ...
    17 hours ago · Like · 1
  • Dinesh Tiwari सारगर्भित पोस्ट
    17 hours ago · Like · 1
  • चन्द्रशेखर करगेती वर्तमान में राज्य के आपदा वाले क्षेत्र में लगभग साठ जलविद्युत कम्पनियाँ अपना विशुद्ध मुनाफे का व्यापार कर रही है, इन पहाड़वासियों के जीवन के मोल पर ? किसी भी क्षेत्र में काम करने पर एक कोर्पोरेट को का एक क्लोज का पालन करना होता जिसे " कॉर्पोरेट के सामाजिक दायित्व "(corporate social responsibility)" कहा जाता, के अंतर्गत इस आपदा में अभी तक किसी एक कम्पनी का कोइ बयान नहीं आया है कि वह आपदाग्रस्त क्षेत्र के पुनर्वास के लिए क्या काम करेगी ? इससे पूर्व भी इनके द्वारा ऐसा कोई काम नहीं किया गया हो जो इस दायोत्व का निर्वाह करता हो ? जबकि इस आपदा की भयावहता के लिए अगर कोई सीधे सीधे रूप से जिम्मेदार है तो वे ये मुनाफाखोर कंपनियां है ! राज्य की अब तक सरकारों ने, अफसरों ने, कोर्पोरेटस ने इन पहाड़ों के साथ सामूहिक "बलात्कार" जिसकी मूक तस्वीरे आनी बाकी है.......
    17 hours ago · Like · 4
  • Rakesh Kargeti पहाड का दर्द...........
    जरूरत है कि हम अपनी जमीनी बुनियाद मजबूत करें जो कि बहुत कमजोर हो गयी है...........
    प्रदेश के राजनीतिक ककहरे में आमूल बदलाव की जरूरत.........
  • चन्द्रशेखर करगेती Elements of Social Responsibility according to Poll
    • recognition and acceptance of the consequences of each action and
    decision one undertakes 
    • caring attitude towards self and others 
    • sense of control and competence 
    • recognition and acceptance of individual and cultural diversity 
    • recognition of basic human rights of self and others 
    • the ability to be open to new ideas, experiences, and people 
    • understanding of the importance of volunteering in social and community 
    activities 
    • ability to engage in experimentation with various adult roles 
    • development of leadership, communication, and social skills
    17 hours ago · Like · 2
  • Dinesh Tiwari इस सिलसिले में सहारा प्रमुख का शुक्रिया हर उत्तराखंडी को अदा करना चाहिए जिन्होंने उत्तराखंड में तबाह हुए १०००० मकानों को बनवाने का जिम्मा लिया है ,साथ ही क्रिकेटर शिखर धवन का भी जिन्होंने अवार्ड वितरण मंच से गोल्डन बैट जीतने के साथ ही इस अवार्ड को आपदा के मारे लोगों को समर्पित कर दिया ,जबकि धौनी उत्तराखंडी होने के बावजूद खामोश रहे
    17 hours ago · Like · 1
  • चन्द्रशेखर करगेती स्थानीय समुदाय के प्रति दायित्व 
    1. providing jobs 
    2. provision of childcare facilities for employees 
    3. providing wages, benefits, and tax revenues 
    4. being responsible for a number of polluting activities: noise, light, water 
    pollution, air emissions, and contamination of soil
    5. adopting local practices for environmental aware education 
    6. financing local non-profit organizations 
    7. sponsoring of local sports and cultural events 
    8. donations to charitable activities.
    17 hours ago · Like · 2
  • चन्द्रशेखर करगेती CSR tools 
    The CSR tools are standard methodologies with the scope of providing the 
    company with a set of instruments (objectives, processes, roles, responsibilities, 
    performance indicators, and so on) to follow up during the management phase. 
    Some of these tools, described in the Green Paper of the European 
    Commission, are illustrated in the following. 
    a) Code of conduct (Ethic code): the "corporate code of conduct" (a 
    completely voluntary document) refers to companies' policy statements that 
    define ethical standards for their conduct. It is a statement of minimum 
    standards together with a pledge by the company to observe them and to 
    require its contractors, subcontractors, suppliers and licensees to observe them. 
    Moreover, the code contains the company's position about the economic, social 
    and environmental policies. 
    b) Chart of Values: a written statement of the company's principles for 
    conducting business. 
    c) Social Balance (Social Report): a voluntary document that the company 
    produces in order to inform the stakeholders about the social effects of its 
    activity. 
    d) Environmental certifications: management tools containing guidelines 
    and methodologies for an environmentally-aware corporate activity. 
    e) Environmental impact assessment: a voluntary document containing the 
    analysis of the impact of a business project or operation on the environment in 
    terms of specific parameters defined by the international standard 
    organizations. 
    f) Social and safety certifications: international standards (SA 8000, ILOOSH 2001, and OHSAS 18001) defining working conditions, health and safety 
    requirements in all the economic organizations.
    g) Cause related marketing: refers to a commercial activity in which 
    companies and non-profit organizations form alliances to market an image,
    17 hours ago · Like · 1
  • Hema Dixit हमारे देश में हर तरह के दायित्वों को कचरा पेटी में डालने का चलन राज्य के नीतिनिर्देशक तत्वों की दुर्दशा की तरह ही हुआ है ... जब तक इनफोर्समेंट का डंडा सर पर ना टंगा हो ... कोई बात कार्यान्वयन में कभी आते हुए मैंने नहीं देखी ... 
    16 hours ago · Edited · Like · 1
  • चन्द्रशेखर करगेती हेमा,इस बार की आपदा ने आयना दिखाया है, मैं इन कंपनियों पर एक आरटीआई तैयार कर रहा हूँ , शयद कल उसे पोस्ट कर दूंगा.....इस बार तो इन्हें सबक सिखाना ही है....जिम्मेदारी का निर्धारण तो करवाना ही होगा ? आखिर कौन दोषी है इन बेगुनाह खत्म हुए जिंदगियो का ?
    16 hours ago · Like · 8
  • Hema Dixit चंद्रशेखर जी अनुरोध है कि कोई कदम महँगे होटल और रेस्तरा वालों के एक लीटर वाली मिनरल वाटर की बोतल बेचने पर भी रोक लगाने हेतु उठाया जाए ... यह एक बहुत बड़े कूड़े ना नष्ट होने वाले अपशिष्ट की जड़ है ... उन्हें बाध्य किया जाए कि वह आर.ओ. सिस्टम प्रयोग में लाये और अपने ग्राहकों को पीने का पानी उपलब्ध कराये ... जो लोग पैसा उन बोतलों पर खर्च करते है वो इस पानी हेतु अतिरिक्त दाम चुकाने को भी तैयार हो जायेंगे ... और ५ रुपये वाले पैकेज्ड खाद्य पदार्थ भी बेंचना प्रतिबंधित किया जाना चाहिए ... हर चीज़ के साथ दी जाने वाली एक रूपये वाली चिली एवं टोमैटो सॉस के सैशे भी प्रतिबंधित किये जाने चाहिए ... स्थानीय उपलब्धता के आधार पर खान-पान को प्रश्रय अधिक मिलना चाहिए ... पहाड़ सिर्फ मौज-मज़े के लिए नहीं है ... उनका संरक्षण वहाँ जाने वालों का भी दायित्व है ...
    16 hours ago · Edited · Like · 5
  • Hamar Nainital करगेती जी अब वक्‍त हो गया है कि पहले हम सब मिल कर चाहे हमारा बाप हो, भाई हो, या कोई और यदि वह उत्‍तराखण्‍ड की लूट खसोट में शामिल हैं, उसे नगां करें, ये अधिकारी और नेता हमारे उत्‍तराखण्‍ड के दलालों की वजह से ही उत्‍तराखण्‍ड को कलंकित कर रहे हैं, कितना ही सगा क्‍यों न हो अब यह भी जूते की भाषा समझने वाला नही, अब वो हम पर है कि जो चीज हमारी संस्‍कति में नहीं उसे अमल में लायें, पर एक कहावत है, लातों के भूत बातों से नहीं मानते, सबको फेसबुक में लाओं, नंगा करों, क्‍योंकि आखिर जब हर कोई चाहता है कि उत्‍तराखण्‍ड सुधरे तो फिर विकास के नाम पर जल, जंगल, जमीन को लूट कर आपदा का अडडा बनाने वाले आखिर ये कौन से उत्‍तराखण्‍डी हैं
    14 hours ago · Like · 4
  • Sanjay Dorvi Hema Dixit ji your idea is super
  • दिनेश बेलवाल बहुत सही कहा आपने पहाड़ के लोग तो ईसी बातावरण में जीते आये हैँ अब इन्हेँ क्या पता की सतझड़ किसे कहते हैँ,और कौन यहाँ का अशली दर्द समझ पाया इनको तो बस टीआरपी चाहिए
    14 hours ago via mobile · Like · 1
  • Kanchan Joshi साथियो फिर बारिश है, आपकी मदद की तुरंत जरूरत है क्यूंकि आप सभी जानते हैं कि सरकारी मदद फाइलों के रास्ते आती है जो बहुत घुमाव दार है| तो तुरंत दल बनाकर स्वयं सामग्री जुटें अपने भाइयों के लिए. तुरंत, क्यूंकि अभी देरी के लिए जगह नहीं है
  • Teg Chand Sharma uttarakhand ka itihas gawah tha ki logo ki madat kare par aaj logo ke munh se yah sunkar ki wahan hamari koi madat nahi huai hame sharm se sir jhukane par majbur kar rahi hai
  • Teg Chand Sharma har ek se yahi suna jaa raha hai ki ghati mai yatriyon ko loota jata tha pani ki botal tak 60-65 rs mai bechi jati thi par
  • DrMadhulika Mishra Tripathi प्रकृति के साथ सामंजस्य नही रखा जाएगा तो ये विनाशलीला यूँही चलती रहेगी,पहाड़ के निवासियों का इस लीला से पुराना परिचय है ,वो इसके आदी हैं या यूँ कहें की अनुकूलित हो गए हैं,इसलिए शायद स्थानीय लोगों की समस्याओं को टी . आर . पी . की रेटिंग में कम आँका जाता है। मीडिया सिर्फ कुछ लोगों को बिठाकर खोखले चिंतन सामने रखती है ,जनहित में उसने क्या किया इसका जवाब (.........................) ?
    13 hours ago · Like · 2
  • Teg Chand Sharma mai kahta hoon ki jo pahadon par jate hai shayad unhe pani kharidne ki jaroorat nahi padti kiyoo ki ye bani ki bottl bhi yahah k pani se bhri jati hai raste mai pani kahi na khii nale yaa gadero mai mil jata hai jo bilkul shudh hai
  • Prakash Chandra Joshi We all uttarakhandees are already aware of such devastation in the past. It has been a usual feature especially for those who are of my age. We lived it, survived it, faced it and stood against it without any complaint. Today also everybody is talkin...See More

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