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Friday, August 13, 2010

पहले राजकिशोर की बोली लगी, अब विक्रम सिंह बिक गये


पहले राजकिशोर की बोली लगी, अब विक्रम सिंह बिक गये

http://mohallalive.com/
13 August 2010
7 Comments

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अभी अभी जो रविवार बीता, उसमें वर्षों तक चले जनसत्ता के अपने स्‍तंभ से हिंदी में पहचाने गये के विक्रम सिंह ने विभूति के शब्‍द प्रयोग के संदर्भ में कुछ बातें की। उन्‍हें जितनी आपत्ति महिला लेखिकाओं को संबोधित विभूति के छिनाल शब्‍द से नहीं थी, उससे कहीं अधिक आपत्ति जनसत्ता के उस संपादकीय से थी, जिसमें विभूति नारायण राय को एक कमइल्‍म कुलपति बताया गया था और रवींद्र कालिया को एक कमजर्फ संपादक बताया गया था। अभी परसों सुबह पता चला कि वे एफटीआईआई, पुणे में एक संगोष्‍ठी में हिस्‍सा लेने के लिए हवाई जहाज से जा रहे हैं, जहां पंकज राग डाइरेक्‍टर हैं। राग परिवार का विभूति-कालिया गिरोह से लगाव और समझौते के कई किस्‍से हैं – ले‍किन यहां जिक्र इस बात का कि के विक्रम सिंह के विभूति-विभोर होने के फौरन बाद ही उन्‍हें ये सुअवसर क्‍यों दिया गया? इस पूरे प्रकरण को जातीय गठजोड़ की सतह पर देखेंगे तो और भी चीजें साफ होंगी – मालूम हो कि पंकज राग भूमिहार जाति से आते हैं, जिस जाति के विभूति नारायण राय और भारत भारद्वाज हैं। खबर यह भी है कि वहां से लौटने के बाद के विक्रम सिंह वर्धा जाएंगे और थिएटर पर क्‍लासेज लेंगे। संभव है, दोनों कार्यक्रम पहले से तय हों और कमइल्‍म-कमजर्फ की तुलना में छिनाल को कम-आपत्तिजनक घोषित करने की सौदेबाजी का खाका पहले से तैयार हो गया हो।

विभूति नारायण राय की यह खासियत हो न हो, हमारे बुद्धिजीवियों की यह भयानाक त्रासदी जरूर है कि वे बिकने में ज्‍यादा वक्‍त नहीं लगाते। पहले आलोकधन्‍वा वर्धा गये और अब कहते फिर रहे हैं कि विभूति ने सच्‍चे दिल से माफी मांगी है… (जैसे उन्‍होंने विभूति के दिल में झांक कर देखा हो)। वर्धा से उनके रिश्‍ते पर तंज कसने वाले पत्रकार राजकिशोर को भी विभूति ने जल्‍दी ही खरीद लिया – उन्‍हें राइटर इन रेजीडेंस बनाकर। राजकिशोर भी निर्लज्‍जता की सारी हदें पार कर यह कहते हुए वर्धा चले गये कि उन्‍हें मान नहीं, मानदेय की जरूरत है।

के विक्रम सिंह की तो खैर पहले से कोई ऐसी वकत नहीं थी। पुराने आईपीएस अधिकारी थे और बाद में दूसरी नौकरी में चले गये। फिल्‍म बनाते रहे हैं, लेकिन उनकी कृतियों से दुनिया कम ही परिचित है। जनसत्ता में उनके स्‍तंभ ने उनको हिंदी में ख्‍याति दी। लेकिन जब उनका स्‍तंभ बंद हुआ, उसके बाद से लगातार वे किसी न किसी बहाने इसकी खुन्‍नस निकालते नजर आते हैं। कमइल्‍म-कमजर्फ की उनकी व्‍याख्‍या भी इसी खुन्‍नस की कूड़ा-कथा है।

यह भी अजीब है कि विभूति के छिनाल-प्रकरण को दैनिक हिंदुस्‍तान ने दो बार अपने पन्‍नों पर जगह दी और दोनों ही बार आक्रोश और प्रतिरोध की खबर को ब्‍लैकआउट किया। पहली बार कालिया का बयान छापा कि मुद्रण में कुछ घपला हुआ है और विभूति ने ऐसा कुछ नहीं कहा है। और दूसरी के विक्रम सिंह का फर्रा छापा कि कैसे छिनाल शब्‍द उतना बुरा नहीं है, जितना कि कमजर्फ और कमइल्‍म।


[13 Aug 2010 | 7 Comments | ]
पहले राजकिशोर की बोली लगी, अब विक्रम सिंह बिक गये
बीते रविवार को के विक्रम सिंह ने हिंदुस्‍तान में विभूति के शब्‍द प्रयोग के संदर्भ में कुछ बातें की। उन्‍हें जितनी आपत्ति महिला लेखिकाओं को संबोधित विभूति के छिनाल शब्‍द से नहीं थी, उससे कहीं अधिक आपत्ति जनसत्ता के उस संपादकीय से थी, जिसमें विभूति नारायण राय को एक कमइल्‍म कुलपति बताया गया था और रवींद्र कालिया को एक कमजर्फ संपादक बताया गया था। अभी परसों सुबह पता चला कि वे FTTI में एक संगोष्‍ठी में हिस्‍सा लेने के लिए हवाई जहाज से जा रहे हैं, जहां विभूति-कालिया के करीबी माने जाने वाले पंकज राग डाइरेक्‍टर हैं। खबर यह भी है कि वहां से लौटने के बाद के विक्रम सिंह वर्धा जाएंगे और थिएटर पर क्‍लासेज लेंगे।
डेस्‍क ♦ के विक्रम सिंह वर्धा जा रहे हैं। हमारे बुद्धिजीवियों की भयानाक त्रासदी यह है कि वे बिकने में ज्‍यादा वक्‍त नहीं लगाते। पहले आलोकधन्‍वा वर्धा गये। फिर राजकिशोर को भी खरीद लिया गया।
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नज़रिया »

[13 Aug 2010 | No Comment | ]
जाति गणना के नाम पर भ्रम फैला रही है सरकार

जनहित अभियान ♦ केंद्र सरकार का यह फैसला बेतुका और निरर्थक है कि बायोमैट्रिक कार्ड बनवाने के लिए आने वालों से उनकी जाति पूछ ली जाएगी। यह बेहद भ्रामक प्रस्ताव है। इस तरह आंकड़ा जुटाने से जाति आधारित जनगणना से हासिल होने वाले ज्यादातर लक्ष्य पूरे नहीं हो पाएंगे। जनगणना के फॉर्म में व्यक्ति की सामाजिक आर्थिक और शैक्षणिक स्थिति को समझने वाले कॉलम होते हैं। इन सूचनाओं के बगैर यूनिक आईडेंटी कार्ड बनाते समय एक अलग फॉर्म में जाति पूछ लेने भर से जाति और उनकी आर्थिक सामाजिक तथा शैक्षणिक स्थिति के अंतर्संबंधों को नहीं समझा जा सकता है। इस तरह तो पूरी कवायद सिर्फ जाति की संख्या जानने तक सीमित हो जाएगी।

असहमति, विश्‍वविद्यालय, शब्‍द संगत »

[13 Aug 2010 | One Comment | ]
लेखक समाज को वीएन राय का बहिष्‍कार करना चाहिए

मुकुल सरल ♦ मोहल्ला लाइव के संदर्भ में आपसे दो निवेदन करने थे। पहला तो ये कि वीएन राय मामले में आप जो अपनी खबरों-बयानों के साथ "छिनाल प्रकरण" शीर्षक की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं, मेरी समझ से उससे बचा जा सकता है। क्योंकि ये केवल अपमानजनक ही नहीं, असहनीय और पीड़ादायक भी है। इसकी जगह हम "राय प्रकरण" या "अभद्र-अशोभनीय टिप्पणी का मामला" जैसे शब्द इस्तेमाल कर सकते हैं। हम क्यों उसी शब्द को बार-बार दोहराएं, जिसको लेकर हमारा विरोध और आपत्ति है। मुझे लगता है इसे बदले जाने में कोई हर्ज नहीं है… वीएन राय मामले में मेरा पहले दिन से ही स्पष्ट मत है कि उन्होंने जो कहा, वो न केवल निंदनीय है बल्कि आपराधिक है और इसके लिए उनपर मुकदमा चलना चाहिए।

मोहल्ला पटना, मोहल्ला लखनऊ, विश्‍वविद्यालय, शब्‍द संगत »

[12 Aug 2010 | 5 Comments | ]
पटना से लेकर लखनऊ तक फूटे विरोध के स्‍वर

संजय कुमार ♦ छिनाल प्रकरण पर देर से ही सही, बिहार की राजधानी से विरोध के स्वर फूटे हैं। महिला लेखिकाओं के खिलाफ अपशब्द बोलने को लेकर बिहार के मीडिया में लेखकों का बयान आया। लखनऊ जसम के मुताबिक राय का यह स्त्री विरोधी रूप अचानक प्रकट होने वाली कोई घटना नहीं है। पिछले दिनों बतौर कुलपति श्री राय ने जिस दलित विरोधी सामंती सोच का परिचय दिया है, 'नया ज्ञानोदय' में महिला लेखिकाओं पर उनकी टिप्पणी उसी का विस्तार है। वक्ताओं ने 'नया ज्ञानोदय' के संपादक की भी आलोचना की। उनका कहना था कि समाज व जीवन के ज्वलंत व जरूरी सवालों व सरोकारों से साहित्य को दूर ले जाकर उसे मात्र मसालेदार बनाने की दिशा में रवींद्र कालिया काम कर रहे हैं।

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[12 Aug 2010 | 4 Comments | ]
राठौर भी पुरस्कृत था, राय की तरह माफ क्यों नहीं कर देते?

जितेंद्र कुमार ♦ बड़े लोगों ने अपने जीने के लिए बड़ी चालाकी भरी पद्धति अपना रखी है। यह कि प्रगतिशीलता की एक छवि बना लें और उसकी आड़ में जो चाहॆं, करें। धर्मनिरपेक्षता की आड़ में जातिवाद, भ्रष्टाचार की क्या इजाजत दी जा सकती है? इसी तरह कानूनी फर्ज निभाने के एवज में उसके सभी अपराधों को सही तो नहीं ठहराया जा सकता है? यह तो इसी तरह का कुतर्क है कि नरेंद्र मोदी के हाथ जितने भी मुसलमानों के खून से रंगे हों, अपने राज्य गुजरात का विकास बहुत अच्छी तरह किया है। या फिर यह कह लीजिए कि जिस तरह विकास के लिए सांप्रदायिक मोदी को बर्दाश्‍त करना आपकी मजबूरी हो, उसी तरह धर्मनिरपेक्षता के लिए महिलाओं का अपमान और दलितों के ऊपर अत्याचार सहना भी हमारी मजबूरी हो गयी है।

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[11 Aug 2010 | 21 Comments | ]
बर्खास्‍तगी के बाद भी ये क्‍या कुछ इज्‍जत पा सकेंगे?

गीतांजलिश्री ♦ जिस तरह के ऊल-जलूल शीर्षक के सहारे नया ज्ञानोदय को लोकप्रियता दिलाये जाने का प्रयास किया जाता रहा है, और जिस छद्म भाषा में ये निंदनीय साक्षात्‍कार दिया गया है, दोनों उसी गहरे पैठी पुरुष-मानसिकता के प्रतिमान हैं, जो सदियों से चली आ रही है। न जाने दंभ में या कि बेवकूफी में, ये बातें कही गयीं, मगर इससे फर्क नहीं पड़ता। बल्कि इरादा क्‍या था/है, उससे भी कोई फर्क नहीं पड़ता। चूंकि जब तक आपकी मानसिकता नहीं बदलेगी और औरत के प्रति नजर वही पुरानी चलेगी, तब तक आप उसके पक्ष में हों, या विपक्ष में, आपकी भाषा यही रहेगी। क्‍योंकि आपके पास कोई और भाषा है ही नहीं। मजाक, गंभीर विवाद, गाली, तारीफ, सबके लिए शब्‍द-संपदा एक होगी। भद्दे शब्‍द, बेहूदा शैली, फूहड़ अंदाज।

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[11 Aug 2010 | 11 Comments | ]
कालिया ने माफी मांगी, नया ज्ञानोदय बाजार से उठाया

डेस्‍क ♦ नया ज्ञानोदय के संपादक रवींद्र कालिया ने माफी मांगी है। इसी सिलसिले में उन्होंने एक चिट्ठी जनसत्ता को भेजी है। माफी इसलिए नहीं कि उनसे भूल हुई। वो छिनाल कांड से हिंदी साहित्य जगत को कितनी शर्मिंदगी होगी, इसका अंदाजा नहीं लगा सके। बल्कि माफी इसलिए कि विभूति नारायण राय का इंटरव्यू उन्होंने पढ़ा नहीं था और वो हू-ब-हू छप गया। मतलब साफ है, रवींद्र कालिया झूठ बोल रहे हैं। उनमें तो इतना नैतिक साहस भी नहीं कि गलती कबूल करें और संपादक होने का फर्ज अदा करें। वो अपना गुनाह दूसरों पर थोप रहे हैं। ठीक वैसे ही, जैसे विभूति नारायण राय ने गुनाह कबूल करने से पहले कहा था कि उन्होंने छिनाल शब्द का प्रयोग ही नहीं किया था। मतलब कालिया विभूति नारायण राय की तरह ही कायर भी हैं।

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[11 Aug 2010 | 10 Comments | ]
क्‍या साहित्‍यकारों का हाल वेश्‍याओं से भी बुरा है?

विष्‍णु खरे ♦ जहां तक मेरा आकलन है, हिंदी साहित्य में राय-कालिया की प्रतिष्ठा यदि कभी थी भी तो आज फूटी कौड़ी की नहीं रह गयी है। लेकिन अधिकांश ऐसे प्राणी, उनके सरपरस्त और समर्थक गंडक-चर्म में वाराहावतार होते हैं। उन्हें न व्यापै जगत-गति। फिर जिस समाज में हत्यारे, बलात्कारी, डकैत, स्मग्लर, करोड़ों का गबन करने वाले संसद तक पहुंच रहे हों वहां हिंदी, जो खुद गरीब की जोरू की तरह सबकी भौजाई या साली है, भले ही उसका एक गांधी विश्वविद्यालय हो, उसकी लेखिकाओं को छिनाल कह देना तो एक होली की ठिठोली से ज्यादा कुछ नहीं। हिंदी साहित्य को अब ज्ञानोदय-ज्ञानपीठ से कुलटा, रखैल, समलिंगी, हिजड़ा, 'निंफोमैनिएक' सुपर-विशेषांकों और ग्रंथों की विकल प्रतीक्षा रहेगी।

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[11 Aug 2010 | 13 Comments | ]
हितेंद्र पटेल चाहते हैं कि विष्‍णु खरे माफी मांगें

हितेंद्र पटेल ♦ विभूति नारायण राय ने तो माफी मांग ली अब देखना है विष्णु खरे क्या करते हैं। विभूति नारायण राय ने 'छिनाल' शब्द का आपत्तिजनक प्रयोग किया और उन्हें प्रतिवाद के सामने अंतत: माफी मांगनी पड़ी। जिसने भी वह इंटरव्यू ठीक से पढ़ा होगा उन्हें यह पता होगा कि उस टिप्पणी का एक संदर्भ था, लेकिन उनके वक्तव्य से युवा लेखिकाओं की भावना को ठेस लगती है इस आरोप के कारण ही राय को प्रतिवाद के सम्मुखीन होना पड़ा। इस तर्क को अगर माना जाए तो विष्णु खरे के लेख से तो हिंदी समाज के तमाम लोगों का ही अपमान करने की कोशिश की गयी है। जिस असभ्य तरीके से खरे ने पूर्वांचल के युवा लेखकों के बारे में एक आपत्तिजनक शब्द का प्रयोग किया है, उसकी जितनी भी भर्त्सना की जाए कम है।

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[10 Aug 2010 | 2 Comments | ]
विभूति नारायण साहित्‍य का हिटलर है : मृणाल पांडे

वर्धा स्ट्रिंगर ♦ दैनिक भास्कर को एक अनौपचारिक भेंटवार्ता के दौरान वरिष्ठ पत्रकार व प्रसार भारती की अध्यक्ष मृणाल पांडे ने महिला लेखिकाओं को छिनाल कहने के विभूति नारायण के विवादास्पद बयान पर लताड़ते हुए कहा कि जिस अंदाज में यह बात विभूति नारायण ने कही है, इससे उनके महिलाओं के बारे में असली नजरिये का पता चलता है। इसके पीछे लोकप्रियता हासिल करने की चाहत काम कर सकती है। विभूति नारायण के अपमानजनक बयान से हिटलर की याद आ गयी। जर्मन तानाशाह हिटलर ने कहा था कि औरतों को अपने अस्तित्व के बारे में नहीं सोचना चाहिए, यह मुझे चिड़चिड़ा देता है। मृणाल पांडे ने कहा कि दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि जिस व्यक्ति ने यह बयान दिया है, वह एक बेहद जिम्मेदारी वाले पद पर है।

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Palash Biswas
Pl Read:
http://nandigramunited-banga.blogspot.com/

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